छठी मैया | chhath puja | religious stories – छठ पूजा व्रत कथा, क्यों मनाया जाता है छठ पर्व – छठ पूजा का महत्त्व
आज हम इन्ही सवालों पर चर्चा करंगे.
दोस्तो ! भारत को त्योहारों का देश भी कहा जाता है जहां हर त्योहार न सिर्फ अपने आप मे बहुत ख़ास होता है बल्कि करोड़ो लोगो की आस्थाएँ – विश्वास और मान्यताएँ इनसे जुड़ी होती है | जिसके प्रति न सिर्फ भारतियों की बल्कि विदेशी लोगो की भी आस्थाएँ और विश्वास जुड़े होते है | इस तरह तो भारत मे छोटे बड़े पर्वो और महापर्वों को लेकर बहुत ही बड़ी लिस्ट बन जाती है |
तो इन्ही लिस्ट मे से आज हम आपको बताने वाले है एक ऐसे महापर्व के बारे मे जिसको भारत मे हर वर्स बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है करोड़ो लोगो की आस्था इस महापर्व से जुड़ी होती है जिसका हर साल बड़ी ही बेसबरी से इंतज़ार किया जाता है | इस महापर्व का नाम है “छठ पूजा” जिसमे छठी मैया की पूजा उपासना की जाती है और व्रत रखा जाता है |
तो चलिये जानते है की आखिर क्यों और कैसे मनाया जाता है यह महा पर्व ? , और कैसे शुरुआत हुई इस महापर्व की ?
छठी मैया | chhath puja | religious stories
क्यों और कैसे मनाया जाता है यह छठ महापर्व ? कैसे शुरुआत हुई छठ महापर्व की ?
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छठी मैया | chhath puja | religious stories
कैसे शुरुआत हुई इस महापर्व की ?
पुराण मे छठ पूजा को लेकर एक कहानी बहुत प्रसिद्ध है जो की राजा पृवंत को लेकर है | कहते है जब राजा पृवंत को कुछ वरसों तक कोई संतान नहीं हुई तब वह महारिशी कश्यप के पास पहुंचे | राजा पृवंत अपनी परेशानी का कारण महाऋषि कश्यप से बताते है | तब महाऋषि कश्यप एक यज्ञ करवाते है |
छठी मैया | chhath puja | religious stories
यज्ञ की समाप्ती उपरांत महाऋषि कश्यप प्रसाद स्वरूप खीर राजा पृवंत को देते हुए बोलते है की यह अपनी पत्नी को खिला देना | पत्नी खीर खा लेती है और 9 महीने बाद एक पुत्र जन्म लेता है लेकिन यह पुत्र मृत होता है | राजा रानी इस बात को लेकर बहुत दुखी होते है और मृत पुत्र के अंतिम संसार के लिए उसे लेकर शमशान पहुँच जाते है |
पुत्र वियोग का यह दुख राजा रानी के मन मे इतना प्रभाव कर जाता है की वह अपने प्राण त्यागने का निश्चय करते है | जैसे ही प्राण त्यागने वाले होते है उतने मे भगवान की मानस पुत्री देव सेना प्रगट हो जाती है | मटा ने राजा से कहा की !
क्योकि वह श्रीस्टी के मूल प्रविरिती के छठे अंश मे उत्तपन्न हुई है इसी कारण वह सष्ठी कहलाती है | उन्होने राजा को अपनी पूजा और दूसरों को भी यह पूजा करने को प्रेरित करने के लिए कहा | इस तरह राजा रानी ने देवी सष्ठी की पूजा अरनचना की जिससे राजा को पुत्र की प्राप्ति हुई | कहते है यह पूजा कार्तिक शुक्ल की सष्ठी को हुई थी | और तभी से यह छठ पूजा होती है |
इस महापर्व को मनाए जाने की एक और कथा है जिसमे , जब भगवान श्री राम , रावण की वध कर 14 वर्स का वनवास काट कर अयोध्या वापिस लौटे थे तब भगवान राम रावण वाढ के पांप से मुक्त होने के लिए उन्होने रिसियों मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया |पूजा के लिए उन्होने मुद्गल ऋषी को आमंत्रित किया |
मुद्गल ऋषि ने माँ सीता पर गंगा जल छिड़क कर उन्हे पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सष्ठी तिथि को सूर्य देव की उपासना करने का आदेश दिया | माता सीता ने यह उपासना 6 डीनो तक मुद्गल ऋषि के आश्रम माय रह कर की थी |
क्यों और कैसे मनाया जाता है यह chhath puja महा पर्व ?
4 दिनो तक चलने वाले इस महापर्व की शुरुआत कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को और समाप्ती कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी को होती है | इस दौरान व्रत करने वाले उपासक 36 घंटो तक व्रत रखते है |
पहला दिन –
पेहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी “नहाए खाए” के रूप मे मनाया जाता है | सबसे पहले पूरे घर की सफाई कर पूरे घर मे गंगा जल छिड़क कर उसे पवित्र बना लिया जाता है |
फिर अलग से घर की साफ जगह पर मिट्टी का एक चूल्हा बनाया जाता है |
इसके बाद पहले दिन उपासक सुबह नहा धो कर उसी चूल्हे पर बिना नमक का उपयोग किए शुद्ध खकाहारी पकवान बनाता है | उसके ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करता है | घर के बाकी के सदस्य उपासक के द्वारा बनाए गए भोजन को खा लेने के बाद ही भोजन ग्रहण करते है |
दूसरे दिन उपासक दिन भर भूखे रह कर शाम को शुद्ध शाकाहारी बिना नमक का बना हुआ भोजन ग्रहण करते है | इस दिन उपासक अपना भोजन गन्ने के रस मे बने हुए चावल की खीर के साथ दूध , चावल का पीतथा , और घी चुप्पी रोटी बनाई जाती है जिसमे नमक चीनी का उपयोग नहीं किया जाता |
तीसरा दिन संध्या अर्घ कहा जाता है | यानी तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल की सष्ठी को दिन मे छठ प्रसाद बनाया जाता है | जिस तरह से सैंकड़ो साल पहले यह पर्व मनाया जाता था ठीक उसी तरह अब भी मनाया जाता है | इस पूजा के लिए जो प्रसाद बनाया जाता है वह घर मे बनाया जाता है | प्रसाद बनाते समय साफ सफाई का विशेस ध्यान रखा जाता है |
प्रसाद के रूप मे ठेकुआ और कसार बनाया जाता है | ठेकुआ गुड़ और आटे से ही तैयार होता है वहीं कसार चावल के आटे से और गुड़ से तैयार होता है | इसके अलावा फलो और सब्जियों का खास महत्तव है | छठ के प्रसाद को रखने के लिए बर्तन बांस के बने होते है जो की इको फ्रेंडली होती है यानी यह पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचाती है |
अब जैसे ही शाम होने वाली होती है उससे 2 घंटे पहले ही बाँस की टोकरी मे सभी प्रसाद और अर्घ को रख दिया जाता है | फिर सभी नात रिश्ते दार परिवार जन और अगल बगल के लोग एक साथ इकट्ठा हो कर सर पर टोकरी उठाए अर्घ देने के लिए निकल पड़ते है |
छठी मैया | chhath puja | religious stories
इस प्रकार सभी छठ उपासक और उनके साथ आए तमाम लोग एक नदी , नहर या तालाब के किनारे जमा हो जाते है जिससे एक मेले जैसा बड़ा ही अद्भुत दृश्य बन जाता है |
अब शाम होते ही ढलते सूर्य को दूध और जल का अर्घ दिया जाता है तथा छठी मैया की प्रसाद से भरे सूप से पूजा की जाती है |
इसके बाद अगले दिन यानी कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी की सुबह 4 बजे फिर से सभ उपासक वापिस वैसे ही उसी स्थान पर सूर्य भगवान को अर्घ देने के लिए अकत्रित हो जाते है | अंत मे उपासक कच्चे दूध का सरबत पी कर या फल खा कर अपना व्रत पूरा करता है |
छठी मैया | chhath puja | religious stories
कौन है छठी मैया और क्यो की जाती है पूजा ?
वेदो के मुताबिक छठी मैया को ऊसा देवी के नाम से भी जाना जाता है | कहा जाता है की छठी मैया सूर्य भगवान की बहन है इस तरह छठी मैया की पूरी श्रद्धा से पूजा करने से छठ गीत गाने से सोरया भगवान बहुत प्रसन्न होते है और सभी मनोकामने पूरी करते है |
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Good thought about chhath pooja.
Very nice content.