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50 best Moral stories for kids in hindi | बच्चो के लिए नैतिक कहानियाँ

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Moral stories for kids in hindi – नमस्कार दोस्तों मै हरजीत मौर्या स्वागत करता हूं आप सब का बच्चो के लिए ज्ञान से भरी कहानियों की इस रोचक दुनियां मे.

यहां हम हर उम्र के बच्चो  के लिए ऐसी प्रेरणादायक और  शिक्षा प्रद कहानियाँ खोज कर लाते है जिसे पढ़ कर बच्चो के मन का विकास होता है  वह सही बुरे की परख करना जान जाते है अतः उनके चरित्र का का सुंदर निर्माण होता है.

तो चलिए शुरू करते है बच्चो के लिए मनपसंद कहानियों का रोचक सफर. hindi Moral stories for kids

 

50+ moral Stories for kids – स्वार्थी गड़रिया

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किसी गांव में एक गड़रिया रहता था। वह बहुत लालची स्वभाव का था, वह हमेशा यही सोचा करता था कि किस प्रकार वह गांव में सबसे अमीर हो जाये। उसके पास कुछ बकरियां और उनके बच्चे थे। जो उसकी जीविका के साधन थे। 

 

एक बार वह गांव से दूर जंगल के पास पहाड़ी पर अपनी बकरियों को चराने ले गया। अच्छी घास ढूँढने के चक्कर में आज वो एक नए रास्ते पर निकल पड़ा। 

 

अभी वह कुछ ही दूर आगे बढ़ा था कि तभी अचानक तेज बारिश होने लगी और तूफानी हवाएं चलने लगीं। 

 

तूफानी बारिश  से बचने के लिए गड़रिया कोई सुरक्षित स्थान ढूँढने लगा। 

उसे कुछ ऊँचाई पर एक गुफा दिखाई दी। गुफा के सामने  एक घना पेड़ था. 

गड़रिया अपनी बकरियो को लेकर  उस गुफा तक पहुचा|

 

गड़रिये ने  बकरियों को वहीँ पेड़ से बाँध दिया.तभी गड़रिये को कुछ भेड़ो की आवाज़े सुनाई देने लगी.

गड़रिया सोचने लगा की यहां भेड़े कहाँ से आगई. गड़रिया भेड़ो की आवाज़ का पीछा करते हुए ज़ब गुफा के अंदर पंहुचा तो हक्का बक्का रह गया. 

 

उसके सामने 20 से 40 जंगली भेड़े थीं जो बारिश से बचने के लिए गुफा मे आई थी. इतनी भेड़े देख कर उसकी आँखे चमक गई. उसके मन मे आया की इतनी भेड़े. अरे इससे तो अब मै गांव का सबसे अमीर आदमी बन सकता हूँ |

 

मोटी- तगड़ी भेड़ों को देखकर गड़रिये के मन मे लालच आ गया। उसने सोचा कि अगर ये भेड़ें मेरी हो जाएं तो मैं गांव में सबसे अमीर हो जाऊंगा। इतनी अच्छी और इतनी ज्यादा भेड़ें तो आस-पास के कई गाँवों में किसी के पास नहीं हैं।

 

उसने मन ही मन सोचा कि मौका अच्छा है मैं कुछ ही देर में इन्हें बहला-फुसलाकर अपना बना लूंगा। फिर इन्हें साथ लेकर गांव चला जाऊंगा।

 

यही सोचते हुए वह वापस नीचे उतरा। बारिश में भीगती अपनी दुबली-पतली कमजोर बकरियों को देखकर उसने सोचा कि अब जब मेरे पास इतनी सारी हट्टी-कट्टी भेडें हैं तो मुझे इन बकरियों की क्या ज़रुरत उसने फ़ौरन बकरियों को खोल दिया और बारिश में भीगने की परवाह किये बगैर कुछ रस्सियों की मदद से घास का एक बड़ा गट्ठर तैयार कर लिया.

 

गट्ठर लेकर वह  गुफा में पहुंचा और काफी देर तक उन भेड़ों को अपने हाथ से हरी-हरी घास खिलाता रहा। जब तूफान थम गया, तो वह बाहर निकला। उसने देखा कि उसकी सारी बकरियां उस स्थान से कहीं और जा चुकी थीं।

 

गड़ेरिये को इन बकरियों के जाने का कोई अफ़सोस नहीं था, बल्कि वह खुश था कि आज उसे मुफ्त में एक साथ इतनी अच्छी भेडें मिल गयी हैं।  

 

यही सोचते-सोचते वह वापस गुफा की ओर मुड़ा लेकिन ये क्या… बारिश थमते ही भेडें वहां से निकल कर दूसरी तरफ जाने लगीं।  

 

वह तेजी से दौड़कर उनके पास पहुंचा और उन्हें अपने साथ ले जाने की कोशिश करने लगा।

 

 पर भेडें बहुत थीं, वह अकेला उन्हें नियंत्रित नहीं कर पा रहा  था… कुछ ही देर में सारी भेडें उसकी आँखों से ओझल हो गयीं।

 

गड़रिया बोला तुम्हारे लिए मैंने अपनी बकरियों को बारिश में बाहर छोड़ दिया। इतनी मेहनत से घास काट कर खिलाई… और तुम सब मुझे छोड़ कर चली गयी… सचमुच कितनी स्वार्थी हो तुम सब।

 

गड़रिया बदहवास होकर वहीं बैठ गया। गुस्सा शांत होने पर उसे समझ आ गया कि दरअसल स्वार्थी वो भेडें नहीं बल्कि वो खुद है, जिसने भेड़ों की लालच में आकर अपनी बकरियां भी खो दीं।

 

Moral from this short story of kids

इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है की, लालच बुरी बला है. लालच से सही फैसले लेने की क्षमता खत्म हो जाती है. 

 

लालच की वजह से इंसान स्वार्थी हो जाता है. वह सामने वाले का उपकार ,अपना पराया ,प्यार मोहोब्ब्त सब भूल जाता है उसे सिर्फ अपना ही स्वार्थ नजर आता है. 

 

फिर इसी स्वार्थ की वजह से हम वो भी खो देते है जो हमारे पास बहुमूल्य होता है. इसी स्वार्थ की वजह से ही रिश्तों मे दरार पड़ जाते है. 

  जैसा की इस कहानी मे अपने निजी स्वार्थ और लालच मे अंधा हो  कर गड़रिया सही फैसला ना ले पाया  जिस वजह से  वह भेड़े  और बकरियाँ दोनों को खो बैठा |

 

तो दोस्तों उम्मीद करता हूं ये moral story for kids आपको बहुत पसंद आई होंगी. यदि ऐसा है तो इस  अद्भुत moral story को शेयर जरूर करे |

 

तो चलिये बढ़ते है अगली Moral short story of kids की तरफ 

 

  सबसे बड़ा भिखारी – 50+ Moral stories for kids

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एक ब्राह्मण व्यक्ति सुबह उठकर मंदिर की ओर जा रहा था। वहां उसे रास्ते में ₹1 का सिक्का मिलता है। उस ब्राह्मण के मन में विचार आता है कि यह ₹1 रुपये में किसी भिखारी को दे देता हु। 

 

ब्राह्मण  पूरे नगर में  भिखारी को ढूंढता है, उसे कोई दरिद्र और भिखारी नहीं मिलता है। थक हार कर ब्राम्हण घर चला जाता है. 

 हर रोज की तरह सुबह ब्राह्मण मंदिर की ओर प्रस्थान करते हुए आ रहे थे । 

 

रास्ते मे उस नगर के राजा एक बहुत बड़ी सेना लेकर दूसरे नगर  की ओर जा रहे थे. 

राजा जैसे ही उस  ब्राह्मण व्यक्ति को देखता है वह उसे प्रणाम करता है और कहता है की हे  महात्मा  ! मैं युद्ध करने जा रहा हूं, आप मुझे आशीर्वाद दीजिए कि मैं दूसरे नगर के राज्यों को भी जीत सकूं और ज़ादा धन अर्जित कर सकू। 

 

यह सुनते ही ब्राह्मण व्यक्ति ₹1 का सिक्का राजा के हाथ में थमा देता है। राजा आश्चर्यचकित हो जाता और पूछता है कि आपने यह ₹1 का सिक्का मेरे हाथ में क्यों थमाया ?

 

 ब्राह्मण व्यक्ति उत्तर देते हुए कहते हैं कि, मैं कई दिनों से कोई दरिद्र व्यक्ति ढूंढ रहा हूं जिसे ₹1रुपय दे सकूं।

 

पूरे नगर में ऐसा कोई दरिद्र और भिखारी व्यक्ति नहीं मिला जिसे में एक रुपये दे सकता हु। सिर्फ और सिर्फ आप ही मुझे ऐसे दरिद्र व्यक्ति मिले जिनके पास सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं है. आपसे बेहतर तो भिखारी है जो मांगता है आपकी भाति किसी का कह नही मारता चाइना छपती एवं आक्रमण करके बेगुनाह इन्सानो को नुकसान नहीं pahunchata

 

ओर हाँ जिसकी इच्छाए असीमित है लोभ मोह मे तृप्त हो.. तो उसकी  अपेक्षा हमेशा अधिक से अधिक पाने की रहती है।

 

 इसलिए मैं यह ₹1 का सिक्का आपको देना चाहता हूं क्योंकि हम जिस दरिद्र व्यक्ति की तलाश में थे.  वह साक्षत मेरे सामने खड़ा है। 

 

यह सुनकर राजा का मस्तिष्क शर्म से झुक जाता है और वह अपनी सेना को वापस जाने का आदेश देता है।

 

चलिए जानते है इस छोटी सि कहानी (short story for kids) से हमें किआ शिक्षा मिलती है. 

 

इस short story for kids से हमें यह शिक्षा मिलती  है की भिखारी वो नहीं जिसके पास कुछ बल्कि असली भिखारी ओर दरिद्र तो वो होता है जिसके पास सब कुछ होते हुए भी वो लोगो कक लूटता फिरता है मांगता फिरता है. जो दूसरों का हक मार कर दूसरों के मेहनत की खाता हो. वो सबसे दरिद्र होता है. 

 

तो दोस्तों उम्मीद करता हूं ये moral story for kids आपको बहुत पसंद आई होंगी. यदि ऐसा है तो इस  अद्भुत moral story को शेयर जरूर करे |

 

 

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Short moral story for kids – चालाक मछली 

 

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एक गांव मे एक मछुआरा रहता था जो रोज गांव के पास के तालाब मे जाल बिछा कर मछलियां पकड़ता. रोज सुबह से  दिन भर 20 से 25 मछलियां पकड़ पाता. 

उन मछलियों को बाजार लेजा कर बेच देता उनसे थोड़े बहुत पैसे कमाता. 

एक बार मछुआरा रोज की तरह मछलियां पकड़ने तालाब के पास गया. जाल बिछाए घंटो बैठा रहा लेकिन कोई मछली जाल मे नहीं फंसी. 

तभी अचानक कुछ सरसराहट हुई. मछुआरे ने फटाफट जाल अपनी  ओर खींचा. जाल मे सिर्फ तीन मछलियां ही फंसी थीं.

तीनो मछलियों ने शांत मन से योजना बनाई और मछुआरे से बोली की हमें छोड़ दो  हम तीन मछलियो से आपका क्या होगा ?

हम आपके लिए अपनी साथी मछलियों को आपके जाल तक लें कर आएंगी. 

 

मछुआरा बोला नहीं नहीं मै कैसे विश्वास करू. 

मछलियां बोली की आप हमारा विश्वास करो चाहो तो आप दिन भर यही बैठे रहो देख लेना कोई मछली नहीं आएगी तुम्हारे जाल मे क्योंकि सभी साथी मछलियों को  पता लग चुका है यहां तुम जाल बिछाते हो. 

 

जरा सोचो ! तुम – “हम तीन मछलियों से” क्या कमाई कर लोगे. ग़र रोज 100 – 200 मछलियां लें कर जाओगे तो खूब कमाई होगी. 

 

यह सुन मछुआरे के कान खड़े हो गए वो सोचने पर विवश हो गया की !  हाँ यार बात तो सही कह रही है. 

 

तो मछुआरे ने कहा = की ठीक है तुम जाओ और अपने साथ सभी मछलियों को लाओ. 

 

जैसे ही मछुआरे ने मछलियों को जाल से आज़ाद किया तुरंत मछलियां तेज़ी से तालाब मे बहुत दूर चली गई. 

 

तो दोस्तों चलिए जानते है इस कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है -Moral from this short story of kids

इस कहानी स्वागत हमें यह शिक्षा मिलती है की मुसीबत के वक़्त शांत मन से विचार करके उसका हल खोजना चाहिए. जैसे मछलियों ने किया. 

चिंता, गुस्सा और घबराहट की वजह से कभी भी परेशानियों का हल नहीं निकाला जा सकता. 

हर परेशानी का हल निकाला जा सकता ग़र शांत मन से विचार करें.  

 

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शिक्षाप्रद कहानी – चरवाहे की बुद्धि 

 

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एक बार एक अमीर सेठ को किसी मीटिंग मे जाना था उस दिन उसे और भी कई कार्य पूरे करने थे. 

सेठ अपनी कार से मीटिंग के लिए रवाना हुआ. मीटिंग के लिए उसको एक गांव के कच्चे पुल से होकर जाना था. वो पुल एक किलोमीटर लम्बा था. 

 

तो ज़ब वो पुल  से अपनी कार क्रॉस कर ही रहा था की  बदकिस्मती से उसकी कार का एक टायर पंचर हो जाता है और उसकी कार उसी पुल के बीचो बीच खड़ी हो जाती है. 

 

सेठ फटाफट कार से बाहर निकलता है और गुस्से से तिलमिलाता हुआ ये बोलने लगता है की इस टायर को भी अभी और इसी जगह पर खराब होना था. अब मकेनिक शॉप भी पता नहीं यहां से कितनी दूर होगी. 

 

सेठ खुद ही टायर बदल कर नया टायर लगाने की तैयारी शुरू कर देता है. सेठ फटाफट टायर के  चारो स्क्रू खोल कर एक तरफ किनारे रख देता है. 

 

इतने मे एक तेज़ रफ्तार मोटर उस कच्चे पुल को हिलाते हुए बगल  से निकल जाती है. पुल मे पैदा हुई तेज बाइब्रेशन से वो चारो स्क्रू नीचे नदी मे गिर जाते है. 

 

यह देख अब सेठ और पागल हो जाता है गुस्से से किस्मत को कोसने लगता है इतने मे एक चरवाहा वहाँ आता है और बोलता है क्या हुआ साहब? आप इतने परेशान क्यों हो.  

 

सेठ बहुत गुस्से मे था इसलिए वो जवाब देता है की दिख नहीं रहा टायर पंक्चर है. ऊपर से इस टायर के चार स्क्रू निकाल कर रखें थे यही किनारे लेकिन वो नदी मे गिर गए. मीटिंग के लिए देर हो रही है ऊपर और भाई जय काम है. 

 

कुछ समझ नहीं आरहा क्या करू. 

चरवाहा बोला – अरे सेठ पहले आप शांत हो जाओ फिर विचार करो हल जरूर नकलेगा. अभी आपके मन मे जो भी है हर काम भूल जाओ 1 मिनट के लिए. ठन्डे दिमाग़ से सोचो. 

 

सेठ बोला नहीं मुझे कुछ समझ नहीं आरहा. तभी चरवाहे ने 20सेकेंड तक कुछ सोचा और बोला हाँ एक हल है. बाक़ी तीनो टायर का एक एक स्क्रू निकाल कर इसमें लगा दो कटा दिक्क़त है. 

 

सेठ ये सुन चरवाहे को देखता ही रह गया और बोला की हाँ यार बात तो सही है. सेठ ने फटा फट वहीं किया जो चरवाहे ने कहा.सेठ स्क्रू लगाते समय ये सोचता रहा की ये बात मेरे दिमाग़ मे क्यों नहीं आई. 

 

सेठ को अब अपनी गलती का एहसास हुआ की चरवाहा सही कह रहा था यदि मै शांत मन से विचार करता तो हल अवश्य मिल जाता. 

 

सेठ की कार ठीक हो गई और सेठ चरवाहे का धन्यवाद करके वहाँ से चला गया. 

 

चलिए जानते है इस कहानी से क्या सीख मिलती है- Moral from this short story of kids

हल हमारे आस पास ही होता है जैसा की आपने इस कहानी मे देखा. यदि सेठ शांत मन से विचार करता तो हल जरुरु निकलता. 

दोस्तों हर समस्या का हल है बस जरूरत है तो सिर्फ शांत मन से बिचार करने की 

 

अब आप लोग भी एक बार शांत मन से विचार जरूर करें की क्या और भी कोई हल था उस कार का. कमेंट बॉक्स मे जरूर बताना. 

 

ऐसी ही और भी शिक्षाप्रद कहानियाँ पढ़ने के लिए हमारे blog पर बने रहे. 

 

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moral story for student – पिता की सीख 

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एक राहुल नाम का लड़का था.उसकी उम्र 14 साल थीं. वो खान पान  के मामले बहुत लापरवाह था वो अक्सर ऐसी चीजें ही खाता जो उसकी सेहत को नुकसान पहुँचाती. जैसे खूब ताली और मैदे से बनी चीजें. 

 

घर मे बना साधारण खाना उसे अच्छा ही नहीं लगता. वो हर वक़्त घर मे बने खाने की बुराई करता रहता. 

 

ज़ब राहुल 22 साल का हुआ तब भी वो घर के बने खाने की अक्सर बुराई करता. राहुल की आदतों से राहुल के पिता जी की टेंशन बढ़ने लगी. 

 

राहुल के पिता ने मन ही मन सोचा की इसे भोजन की क़ीमत समझानी ही होगी ज़ब देखो भोजन का निरादर करता रहता है. 

 

 तब राहुल के पिता ने राहुल की इस बुरी  आदत को सुधारने का एक तरीका खोजा. 

 

पिता जी ने राहुल की मम्मी को अपने इस प्लान मे शामिल किया. और घर पर ये झूठा नाटक रचा गया की पिता जी ने जो पैसा जमा किया था वो चोरी हो गया. पुलिस मे रिपोर्ट करवा दी है वो चोर की तहकीकात जारी है. 

 

मोहन ने ये सब अच्छे से सुन लिया. पिता जी मोहन से बोले, बेटा कल से तू भी मेरे साथ काम पर चल और मेहनत कर. वरना खाने के भी लाले पड़ जाएंगे. पैसा बिलकुल नहीं. 

 

कल से मोहन पिता जी के साथ चला जाता है मजदूरी करने. सुबह से  ज़ब खूब मेहनत करने के बाद मोहन शाम को पिता जी के साथ भूखे प्यासे घर लौटा तो एक ही बात बोला – माँ जल्दी से कुछ खाने को दो. 

माँ बोलती है हाँ बेटा तू जल्दी से हाथ पैर धोकर बैठ मै भोजन परोस कर लती हूं. 

 

माँ रोज की तरह वहीं भोजन परोस कर मोहन के सामने रख देती है. भोजन सामने देखते ही मोहन ने आव देखा ना ताव बस फटा फट सारा भोजन चट कर गया. 

 

यह देख माता पिता बहुत खुश हुए. पिता जी ने मोहन से पूछा की क्यों मोहन आज भोजन की निंदा किये बिना ही भोजन खा गए. 

 

मोहन बोला, नहीं, मुझे तो भोजन बहुत अच्छा लगा आज. मोहन समझ गया की ये भोजन आज उसे स्वादिष्ट क्यों लग रहा था. 

 

Moral from this short story of kids

दोस्तों ज़ब  तक कोई चीज हमें रोज रोज बहुत आसानी से मिल रही होती है तो हम उसकी क़द्र नहीं करते. फिर चाहे वो भोजन हो या कोई भी वस्तु. 

 

ज़ब शारीरिक मेहनत के बाद घंटो भूखे रहने के बाद रुखा सूखा भी खाने को मिलता है तो वह भी मक्खन और बर्गर जैसा स्वाद देता है. 

दोस्तों कभी घर पर बने भोजन की निंदा ना करें. बहुत से लोगो को दो वक़्त की सूखी रोटी भी नसीब नहीं हो पाती. 

 

उम्मीद करती हूं इस moral story for kids से आपको बहुत सीख मिली होगी. तमाम लोगो मे ये  कहानी शेयर करें ताकी वह भी इन कहानियों को पढ़ कर अपने जीवन चरित्र का निर्माण कर सकें. 

 

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बच्चो के लिए शिक्षाप्रद कहानी –  मेहनत का फल  

 

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एक गांव मे एक मछुआरों का बहुत बड़ा तोला हुआ करता था. उन सब मे एक सबसे अधिक उम्र वाला मछुआरा था जो की बहुत बुद्धिमान था. सभी मछुआरे उसकी बात मानते थे और उसी के मार्गदर्शन मे काम करते थे. 

 

हर बार की तरह मछुआरे अपनी बड़ी सि नांव पर सवार हो कर समुद्री लहरों से लड़ते हुए दूर मछलियां पकड़ने गए. 

 

खूब दूर जाने के बाद मछुआरों ने समुंदर मे अपना बड़ा साथ जाल बिछाना शुरू किया. जाल बिछाने के बाद मछुआरों खूब देर तक मछलियों के फस जाने का इंतज़ार किया. 

 

कुछ समय बाद जाल भारी हो गया. सभी मछुआरों ने पूरी जोर लगाकर जाल को खींचना शुरू किया. सभी मछुआरे ये सोच कर पूरी ख़ुशी और उत्साह पूर्वक जाल को खींचे जा रहे थे की आज तो जाल खूब सारी मछलियों से भरा हुआ लगता है. 

 

लेकिन ये क्या, वो जैसे जैसे जाल को खींचते गए मछलियां तो दिखाई ही नहीं दे रही थीं जाल मे. मछुआरे जैसे जैसे जाल खींच रहे थे वैसे वैसे उनका मन निराशा से भरता जा रहा था.मनोबल टूट रहा था. 

 कुछ मछुआरे तो इस तरह हिम्मत हार चुके थे की वो कहने लगे की अरे रहने दो जाल को वापिस पानी मे छोड़ देते है कोई फायदा नहीं इतनी मेहनत करके लेकिन कुछ मछुआरे ऐसा भी बोले की नहु छोड़ना मत थोड़ा साथ और खींचो ऊपर   , आखिर देखें तो सही क्या फसा है जाल मे जो इतना भारी लग रहा है. 

 

बूढ़ा मछुआरा दूर बैठा यह सब देख रहा था. 

 

तो ज़ब जाल थोड़ा साथ  ऊपर आगया तो मछुआरों ने देखा की जाल मे बहुत कम मछलियां ही फंसी है और बाक़ी खूब सारा मलबा, किसी पुराने टूटे जहाज टूटी फूटी वस्तुए लकड़िया औजार फसे हुए है. जिस वजह से जाल बहुत भारी हो गया था. 

 

यह देख सभी मछुआरे बहुत निराश हो गए और उन्होंने जाल को वापिस पानी मे छोड़ने का फैसला किया.. पर इतने मे वो बूढ़ा मछुआरा बोला – इतनी मेहनत के बाद जाल को ज़ब इतना ऊपर खींच ही लिया है तो निराश हो कर काम को  इस तरह अधूरा मत छोड़ो थोड़ी और मेहनत करके जाल पूरा ऊपर खींचो. 

हो सकता है जाल के मलबे से कुछ काम की जरुरी वस्तु मिला जाए. 

 

बूढ़े मछुआरे की बात मानते हुए सभी मछुआरों ने फिर से पूरी जोर लगा कर जाल को खींचा.. और जहाज पर लाया गया. 

जाल मे फसे मलबे को ज़ब साफ किया गया तो उसमे से एक बड़ा साथ पुराना संदूक निकला. 

 

खूब मशक्क़त के बाद ज़ब उस संदूक को खोला गया तो उसमे खूब सारे बहुमूल्य हीरे, मोती, स्वर्ण मुद्राए, और कई कीमती रत्न भरे हुए थे. मछुआरों की तो आँखे फ़टी की फ़टी रह गई उनकी किस्मत ही बदल चुकीं थीं. 

 

Moral from this short story of kids

दोस्तों इस कहानी से हमें सीख मिलती है की किसी भी कार्य को अधूरा नहीं छोड़ना चाहिए. हर कार्य को पूरा करो ताकी उसके मिलने वाले परिणामो से हम सीख लें सकें. 

 

जैसा की अपने इस कहानी मे देखा की काम पूरा करने पर ही उनको मेहनत और संयम का कितना शामदार फल मिला और  ग़र सभी मछुआरे उस जाल को पुनः समुन्द्र मे छोड़ देते तो उनको वो संदूक ना मिला पाता. 

 

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Hindi story for kids – घमंडी तितली 

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एक बहुत खूबसूरत जंगल था जहाँ बहुत सारे जानवर पक्षी जीव जंतु रहते थे. उस जंगल मे एक बहुत ही खूबसूरत तितली रहती थीं. उसे अपनी खूबसूरती पर इतना अहंकार था की वो हर छोटे बड़े जीव जंतु से अपनी सुंदरता का मुकाबला करती रहती और उनपर अपनी सुंदरता का रौब झाड़ती रहती. 

 

इसे लगता था की सुंदरता ही सब कुछ है. और वो दुनियां की सबसे सुंदर जीव है. 

 

एक बार सुंदर तितली उड़ती हुई हाथी के सूंड पर जा बैठी. 

हाथी बोला तुम कौन हो. तितली बोली, अरे ! तुम मुझको नहीं जानते?  

 

सारा जंगल मेरी सुंदरता से जलता है. मैं दुनियां की सबसे सुंदर जीव हूं. इस तरह घंटो हाथी के सूंड पर बैठ कर अपनी सुंदरता के बखान करती रही. लेकिन हाथी को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था वो बस सर हिला रहा था.

 

सिर्फ यही नहीं, तितली हाथी की खूब निंदा करते हुए बोला की तुम कितने मोटे और बेकार दिखाई देते हो. मैं कहीं भी उड़ कर जा सकती हूं, किसी भी फुल का रस चूस सकती हूं. 

इतने मे एक जोर दार आंधी आई तितली खुद को  संभाल ना पाई वो दूर जा कर झाड़ियों मे फ़स गई. तितली की हालत खराब हो चुकीं थीं. 

 

तब हाथी उसके पास गया और हसते हुए बोला, क्यों अब क्या हुआ, कहा गई वो तुम्हारी सुंदरता अब बुलाओ अपनी सुंदरता को और कहो की बचाए मुझे. 

एक हवा के झोंके से तुम्हारा ये हाल हो गया मुझे देखो कितना भी तूफान आजाए हम मजे से घूमते रहते है. 

 

तितली अब कुछ ना बोल पाई उसका सारा घमंड चूर चूर हो गया. 

 

कहानी से सीख – Moral from this short moral stories for kids

तो दोस्तों इस कहानी से हमें सीख मिलती है की हमें कभी अहंकार नहीं करना चाहिए. ईश्वर ने हर किसी को किसी ना किसी  अद्भुत कला से नवाज़ा है. 

 

किसी को बहुत सुंदर बनाया है तो किसी को बहुत ताकतवर. किसी को बहुत सुरीला बनाया है तो किसी को बहुत बुद्धिमान. 

कभी किसी के रंग रूप का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए. 

 

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moral stories for kids – मूर्ति ने दिया अद्भुत ज्ञान 

 

एक मिडल क्लास परिवार मे रहने वाला मनोज नाम का 13 साल का बच्चा पढ़ाई को लेकर हमेशा आना तानी करता रहता. 

 

स्कूल जाने और स्कूल का होमवर्क करने के नाम पर हमेशा बहाने बनाता. स्कूल से बहुत डाट पड़ती. 

 

घर मे एक लाल रंग की छोटी सि गणेश भगवान की मूर्ति थीं जिससे गणेश बहुत प्यार करता था रोज स्कूल से आकर उस मूर्ति के संग खेलता खूब बातें करता. 

 

सोते वक़्त उस मूर्ति को साथ लेकर सोता. उसी के साथ बैठकर भोजन करता. यानी गणेश जी की वो लाला रंग मूर्ति उसका दोस्त बन चुकीं थीं. 

 

एक दिन ज़ब मनोज उस मूर्ति को अपने साथ लेकर गहरी नींद मे था तो मनोज को एक सपना आया. सपने मे मनोज ने देखा की उसकी वो लाल रंग की मूर्ति टूट गई है. मनोज खूब रोने लगा. माँ ने बताया की सफाई करते वक़्त ये गलती से टूट गई. 

 

रो मत ये लें पैसे और जा बाजार से ऐसी ही एक और मूर्ति लें आ. 

मनोज पैसे लेकर वैसी ही मूर्ति खरीदने बाजार पहुंच गया. मनोज ने खुद इधर उधर देखा लेकिन वैसी लाल रंग की मूर्ति नहीं दिखी. 

 

मनोज वैसी ही मूर्ति खोजते खोजते कुछ और दुकानों पर गया की अचानक उसकी नजर बिलकुल वैसी ही मूर्ति पड़ पड़ी जो टूट गई थीं. मनोज ने तुरंत पैसे देकर वो मूर्ति खरीद ली. मनोज ज़ब  उस मूर्ति को को घर की तरफ जा रहा था तब मनोज मूर्ति से बोला की तुम इतनी खूबसूरत कैसे बनी तभी मूर्ति से आवाज़ चलो मै तुम्हे आज बताता हूं की मै इतनी खूबसूरत मूर्ति कैसे बना. 

 

मै पहले इस तरह नहीं था.. शुरू मै एक मामूली सि लाल मिट्टी था. एक मूर्तिकार आया और मुझे अपने साथ लें गया. 

 

मूर्तिकार ने पहले मुझ पर खूब पानी डाला और अपने लातो तले दबा दबा कर खूब देर तक गूथा. मुझे बहुत दर्द हो रहा था. लेकिन मैंने उस दर्द को सहन किया. 

 

फिर उसने मुझे एक गोल से चक्के पे रख दिया और जोर जोर  से गोल गोल घुमा दिया धीरे धीरे उस मूर्तिकार ने मुझे गणेश भगवान का रूप देना शुरू कर दिया. 

 

फिर इसके बाद उसने मुझे लाल रंग से रंग दिया और एक तपती हुई भट्टी मे डाल दिया ताकी मुझमे मजबूती आसके. भट्टी मे जाने के बाद तो मानो मे मर ही जाऊंगा. लेकिन इस दर्द को भी मैंने जैसे तैसे बर्दाश्त कर लिया. 

 

फिर ज़ब भट्टी से निकलने के कुछ देर बाद मुझे होश आया तो मैंने देखा की मै एक लाल रंग के बहुत ही खूबसूरत गणेश जी की सुंदर मूर्ति मे बदल चुका था. 

 

मैंने अब तक जो दर्द सहे उसी की बदौलत मै इतनी सुंदर मूर्ति मे बदल पाया. 

मनोज मूर्ति की इन बातों से बहुत प्रेरणा मिली. मनोज समझ गया की बिना मेहनत के मै बहुत जीवन मे आगे नहीं बढ़ पाउँगा. 

मूर्ति ने बताया की जितना ज्ञान और तजुर्बा हासिल करोगे जीवन मे उतना ही आगे जाओगे. 

 

इतने मे मनोज की आँखे खुलती है सुबह हो चुकीं होती है. अब मनोज रोज ईमानदारी से study करने लगा रोज स्कूल जाने लगा. अपना होमवर्क रोज पूरा करने लगा. 

 

Moral from this short story of kids

इस कहानी से हमें ये सीख मिलती है की जीवन ग़र कोई बड़ी सफलता हासिल करनी है तो बिना हिम्मत हारे तमाम मुश्किलों को पार करते हुए आगे बढ़ते रहना होगा. 

 

तो दोस्तों उम्मीद करता हूं ये moral story for kids आपको बहुत पसंद आई होंगी. यदि ऐसा है तो इस  अद्भुत moral story को शेयर जरूर करे |

 

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best moral story  – मन के भाव – एक गुरु की सीख

 

गर्मियों के दिनों में एक शिष्य अपने गुरु से सप्ताह भर की छुट्टी लेकर अपने गांव जा रहा था। तब गांव पैदल ही जाना पड़ता था। जाते समय रास्ते में उसे एक कुआं दिखाई दिया।

 

कुआँ देख कर शिष्य रुक गया, सोचा चलो प्यास बुझा लेते है. अभी रास्ता बहुत लम्बा है. 

 

शिष्य ने कुएं से पानी निकाला और अपना गला तर किया। शिष्य को अद्भुत तृप्ति मिली, क्योंकि कुएं का जल बेहद ठंडा और मीठा था।

 

शिष्य ने सोचा – क्यों ना यहां का जल अपने  गुरुजी को भी पिलाऊं. तो शिष्य ने कुएँ के ठन्डे पानी से अपनी मशक भरी और वापस आश्रम की ओर चल पड़ा। 

 

वह आश्रम पहुंचा और गुरुजी को सारी बात बताई।

 

गुरुजी ने शिष्य से मशक लेकर  जल पिया और संतुष्टि महसूस की।

 

उन्होंने शिष्य से कहा- वाकई जल तो गंगाजल के समान है। शिष्य को खुशी हुई। गुरुजी से इस तरह की प्रशंसा सुनकर शिष्य आज्ञा लेकर अपने गांव चला गया।

 

कुछ ही देर में आश्रम में रहने वाला एक दूसरा शिष्य गुरुजी के पास पहुंचा और उसने भी वह जल पीने की इच्छा जताई। गुरुजी ने मशक शिष्य को दी। शिष्य ने जैसे ही घूंट भरा, उसने पानी बाहर कुल्ला कर दिया। यानि पानी मुह से बाहर निकाल दिया |

 

शिष्य बोला- गुरुजी इस पानी में तो हल्का कड़वापन है और न ही यह जल शीतल है।तो आपने उस शिष्य की झूठी प्रशंसा क्यों की? 

 

गुरुजी बोले- बेटा, मिठास और शीतलता इस जल में नहीं है तो क्या हुआ। इसे लाने वाले के मन में तो है।

 

यानी  जब उस शिष्य ने जल पिया होगा तो उसके मन में मेरे लिए प्रेम उमड़ा। तभी वो इतनी दूर से चिलचिलाती गर्मी मे वापस बड़े प्रेम से ये जल मेरे लिए लाया. 

 

यही बात महत्वपूर्ण है। मुझे भी इस मशक का जल तुम्हारी तरह ठीक नहीं लगा पर मैं यह कहकर उसका मन दुखी करना नहीं चाहता था। 

 

और शिष्य की बात बिलकुल सच्च थीं.. क्योंकि  

हो सकता है जब जल मशक में भरा गया, तब वह शीतल हो और मशक के साफ न होने पर यहां तक आते-आते यह जल तेज गर्मी की वजह से  वैसा नहीं रहा, 

 

Moral from this short story of kids

क्या दिया जा रहा है से कहीं ज़ादा देने वाले के मन का भाव महत्व रखता है. ग़र कोई स्वार्थी हो कर बुरे मन से कोई वस्तु दे रहा है तो बहुत खतरनाक सिद्ध हो सकता है. 

 

यदि छोटे से झूठ से किसी का दिल रखा जा सकें किसी को सुख संतुष्टि प्रदान हो सकें तो वो झूठ बोलना गलत नहीं होता. 

 

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Hindi Moral Story – योग्यता व मेहनत

पुराने जमाने की बात है। एक मजदूर बिल्कुल अकेला था।कभी आवश्यकता होती तो मजदूरी कर लेता तो कभी यूं ही रह जाता। 

वो अक्सर यही सोचता रहता की ईश्वर ने उसके जीवन मे सबसे जादा  दुःख तकलीफे दे रखी है बचपन मे माँ बाप गुजर गए और अब पत्नी भी नहीं रही. सब नात रिस्तेदार चले गए मुझे इस हालत मे छोड़ कर मुझसे बड़ा दुनियां मे कोई बदनसीब नहीं  होगा.

सबसे मुश्किल जीवन मुझे मिला. 

 

एक बार उसके पास खाने को कुछ नहीं था। वह घर से मजदूरी ढूंढने के लिए निकल पड़ा।  गर्मी का मौसम था और धूप बहुत तेज थी।  उसे एक व्यक्ति दिखा जिसने एक भारी संदूक उठा रखा था।

 

वो व्यक्ति इधर उधर किसी व्यक्ति को देख रहा था जो उसकी मदद कर सकें.  मजदूरजल्दी से भागता हुआ उस व्यक्ति के पास गया  और पूछा की  – क्या आपको मजदूर चाहिए ? 

 

उस व्यक्ति को मजदूर की आवश्यकता भी थी, इस लिए उसने संदूक मजदूर को उठाने के लिए दे दिया। 

 

संदूक को कंधे पर रखकर मजदूर चलने लगा।  गरीबी के कारण उसके पैरों में जूते नहीं थे। सड़क की जलन से बचने के लिए कभी-कभी वह किसी पेड़ की छाया में थोड़ी देर खड़ा हो जाता था। 

पैर जलने से वह मन-ही-मन झुंझला उठा और उस व्यक्ति से बोला- ईश्वर भी कैसा अन्यायी है। 

 

हम गरीबों को जूते पहनने लायक पैसे भी नहीं दिए। मजदूर की बात सुनकर व्यक्ति खामोश रहा।

दोनों थोड़ा आगे बढ़े ही थे कि तभी उन्हें एक ऐसा व्यक्ति दिखा जिसके पैर नहीं थे और वह खुद को  जमीन पर घिसटते हुए चल रहा था। 

 

यह देखकर वह व्यक्ति मजदूर से बोला- तुम्हारे पास तो जूते नहीं है, परंतु इसके तो पैर ही नहीं है।

जितना कष्ट तुम्हें हो रहा है, उससे कहीं अधिक कष्ट इस समय इस व्यक्ति को हो रहा होगा।

 

तुमसे भी छोटे और दुखी लोग संसार में हैं। तुम्हें जूते चाहिए तो अधिक मेहनत करो। 

हिम्मत हार कर ईश्वर और किस्मत को दोष देने की जरूरत नहीं।

ईश्वर ने नकद पैसे तो आज तक किसी को भी नहीं दिए, परंतु मौके सभी को बराबर दिए हैं। दिमाग लगाओ और खूब मेहनत करो |

उस व्यक्ति की बातों का मजदूर पर गहरा असर हुआ। 

वह उस दिन से अपनी कमियों को दूर कर अपनी योग्यता व मेहनत के बल पर बेहतर जीवन जीने का प्रयास करने लगा।

 

Moral from this short story of kids

इसीलिए तो कहते हैं कि हमें जो मिला है हमारे भाग्य से ज्यादा मिला है। और हम जो भोग रहे है हमारे कर्मो का फल है. 

 यदि आपके पांव में जूते नहीं है तो अफसोस मत कीजिए क्योंकि दुनिया में कई लोगों के पास तो पांव ही नहीं है।

हर किसी को अपना ही दुःख दर्द सबसे ज़ादा लगता है. जबकि दुनियां मे एक से दुःख दर्द लेकर घूम रहे है. 

खुद की किस्मत को कोसने वाले पहले खुद से ये सवाल करें की उन्होंने खुद किस्मत को बनाने के लिए क्या किया… कितनी मेहनत की. 

हमारी किस्मत कैसी है ये इस बात पर निर्भर करता है की हमने अब तक कैसे कर्म किए है | रही बात जीवन मे सफल होने की तो जिसकी  इच्छा शक्ति तीव्र होती है और मेहनति होता है वो सफल हो जाता है और जिसको कुछ नहीं करना होता वो बस बहाने मारता रहता है ओर किस्मत को कोस्टा रहता है |

तो दोस्तों ये कहानियाँ आपको कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताना. उम्मीद करता हूं इन कहानियों से बहुत कुछ सीखने को मिला होगा. 

 

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जीवन की अनमोल सीख देती कहानी – आत्मा का घर -moral story 

 

एक शहर मे बहुत व्यक्ति  रहता था उसकी उम्र 29 साल की थीं उसकी बहुत लालसा थीं जीवन मे की ज़ब खूब धन कमा लूंगा तो आराम से जीवन व्यतीत करूंगा – यहां घूमूँगा वहाँ घूमूँगा – मजे से life enjoy करूंगा. 

 

वो व्यक्ति  दिन 10 साल बाद एक अमीर सेठ बन गया, अब उस व्यक्ति काम और कारोबार पहले से 10 गुना बड़ा हो गया था. 

सेठ ने नया आलीशान बंगला खरीदा. 

अब तो उसके पास बिलकुल भी समय नहीं रहता था खुद के साथ समय बिताने का.  उसकी सेहत भी दिन पर दिन अब खराब होने लगी थी | इधर उधर से द्वै खा कर कुछ समय के लिए ठीक हो जाता था ठीक से कही भी trirment नहीं करवा पाता |क्योंकि उसकी  और ज़ादा धन कमाने की लालसा उसे अपनी सेहत के प्रति बहुत लापरवाह बना चुकीं थीं. 

 

सेठ की शारीरिक हालत अब कमजोर पड़ने लगी. सेठ की हड्डिया जवाब देने लगी. सेठ अब आए दिन बीमार पड़ने लगा कमजोर होने लगा. 

 

पैसे कमाने की लालच मे इतना अंधा हो चुका था की सेठ को अपने कमजोर शरीर पर दया नहीं आती. सेठ अब भी शरीर की तरफ कुछ खास ध्यान नहीं दे रहा था. 

 

एक दिन सेठ का सर बहुत दुःख रहा सेठ जल्दी घर आया और बिस्तर पर लेट गया. नौकर खाना लेकर आया लेकिन सेठ ने मना कर दिया. 

 

कुछ ही देर बाद सेठ को एक आवाज़ आई सेठ ने आँखे खोली तो उसके सामने वही सेठ खड़ा है. सेठ चौक गया की ये क्या? कौन हो तुम.  

वो सामने खड़ी परछाई बोली मै तुम्हारी आत्मा हूं अब मै तुम्हारा शरीर छोड़ कर जा रही हूं. 

सेठ बहुत ज़ादा डर गया और बोलने लगा नहीं ऐसा मत करो अभी मै और जीना चाहता हूं. तुम ऐसा मत करो मैंने  तुम्हारे लिए इतना धन कमाया इतना खर्चा करके ये आलीशान बंगला खरीदा. 

 

आत्मा बोली – ये तुम्हारा घर है-  मेरा नहीं.

मेरा घर तो तुम्हारा शरीर था. जिस पर तुमने 30 सालों से कोई ध्यान नहीं दिया. बीमारियों के रूप मे तुम्हे बार चेतावनियां देती रही की अपने शरीर यानी मेरे घर का ख्याल रखना शुरू कर दो. वरना बहुत देर हो जाएगा. 

 

अब मै इस मरियल कमजोर शरीर मे नहीं रह सकती. बीमारियों से ग्रसित इस शरीर मे मेरा दम घुटने लगा था. 

 

इतना बोल कर सेठ की आत्मा उसे छोड़ कर वहाँ से चली गई सेठ वही मर गया. 

 

Moral from this short story of kids

धन कनाने की इतनी लालसा मत रखो की अपनी सेहत का ध्यान रखना ही भूल जाओ.

धन के साथ साथ सेहत कभी ध्यान रखो. तुम्हारा असली धन तुम्हारी सेहत है. 

क्योंकि धन तो कमा लोगे लेकिन सेहत एक वार खराब हो गई तो जल्दी ठीक नहीं होती. फिर तुम्हारा सारा कमाया हुआ धन बेकार है. 

 

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