dharmik kahani गुरु नानक देव जी की शिक्षाप्रद कहानी – दोस्तों स्वागत हैं आपका ज्ञान और शिक्षा से भरी गुरु नानक देव जी की dharmik kahani मे | गुरु नानक देव जी की इन कहानियों मे हमे सदैव सदकर्म एवं सत्कर्म करने की प्रेरणा मिलती है |गुरुनानक देव जी के जीवन कर्मो को जान कर हमे अद्भुत ज्ञान की प्राप्ति होती है|
तो हम गुरु नानक देव जी की महिमा का बखान करते हुए उनके ज्ञान को एक सच्ची कहानी के रूप मे आप तक लेकर आए है जिसे पढ़ने के बाद आपके जीवन मे सकारात्मक प्रभाव होगा |
तो चलिये जानते है ज्ञान से भरे उनके जीवन की अद्भुत गाथा के बारे मे|
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dharmik kahani गुरु नानक देव जी की शिक्षाप्रद कहानी
गाथा शुरू होती हैं, उस समय से जब भारत मे चारो तरफ अधर्म, कुकर्म और लोगो मे अन्धविश्वास फैला हुआ था. धर्म और जात के नाम पर एक दूसरे मे नफरत की आग फ़ैल चुकी थी.
उस समय भारत मे मुग़लो का शासन था.मुग़ल लोग भारतीय लोगो पर खूब अत्याचार कर रहे थे . मंदिर तोड़े जा रहे थे ,धर्म पर गहरा आघात किया जा रहा था.
लोगो का जबरन धर्म परिवर्तन करवाया जा रहा था और जो नहीं करता उसे भयानक मौत दे दी जाती.dharmik kahani
मुग़ल शासक अपनी मनमानी करतें. मुगलो के हुक्म की नाफरमानी पर या फिर जो उनके जुल्मों के खिलाफ अपनी आवाज उठाता उन लोगो को मौत के घाट उतार दिया जाता.
ऐसे मे जनता मुगलो के इस जुल्म से तंग आ चुकी थी. चारो तरफ त्राहि त्राहि थी.
ऐसे मे लोगो को सही मार्ग दिखाने, लोगो के मन मे फैले धार्मिक अंधविश्वास को दूर करने,धरती पर एक महान पुरुष ईश्वर का अवतार गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ.
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श्री गुरु नानक देव जी सिक्ख धर्म के पहले गुरु है |ईश्वर कवतर कहे जाने वाले गुरु जी का जन्म संसार मे धर्म कर्म के प्रति अज्ञानता को दूर करने अथवा लोगो मे अंधविश्वासों को दूर करने के साथ साथ लोगो को सदमार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करने हेतु हुआ | गुरु नानक देव जी का रूप बहुत ही अद्भुत और तेजस्वी है वह इस संसार मे लोगो लो सदमार्ग एवं सत्कर्म पर चलाने हेतु अवतरित हुए |
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उनके पिता जी का नाम बाबा कालूचंद्र बेदी और माता जी का नाम त्रिपता जी है |श्री गुरु नानक देव जी का जन्म 15अप्रैल,1469 में पाकिस्तान से 65 किलोमीटर दूर पश्चिम मे ,शेखपुरा डिस्टिक के एक गाँव तलवंडी साबों” मे हुआ |यह स्थान ननकाना साहिब के नाम से प्रसिद्ध अब पाकिस्तान मे हैं.
जन्म के कुछ दिन बाद बहुत ही विद्वान पंडित पिता महता कालू के घर आए. पंडित जी ने नानक जी के मुख मण्डल तेज को देखते ही बता दिया की यह ईश्वर जे अवतार हैं. लोगो को सदमार्ग पर चलाने तथा सत्कर्म करने के उद्देश्य से धरती पर इनका जन्म हुआ हैं.
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गुरु नानक देव जी से पहले माँ त्रिप्ता जी ने 3 साल पहले एक बेटी को जन्म दिया था उनका नाम नानकी था. उन्ही के नाम पर गुरु जी का नाम नानक रखा गया.
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श्री गुरु नानक देव जी का बचपन तलवंडी गांव मे गुजरा. नानक जी का मन बचपन से ही अध्यात्म और प्रभु की भक्ति मे लगा रहता था. अपने दोस्तों के साथ जब खेल कूद के लिए जाते तो कुछ देर खेलने के बाद नानक जी दूर एकांत मे जाकर बैठ जाते और आँखे बंद करके ईश्वर का चिंतन किया करते.
अपने बाल्य काल में श्री गुरु नानक जी नें कई प्रादेशिक भाषाएँ सिखा जैसे फारसी और अरबी।
7-8 साल की उम्र मे स्कूल छूट गया. क्योंकि नानक जी के प्रश्नों के आगे अध्यापक ने भी हार मान ली थी .परेशान होकर अध्यापक ने इन्हे घर भेज दिया.
तब से दोबारा नानक जी स्कूल नहीं गए तब से वह अपना अधिकतर समय ईश्वर के चिंतन और सत्संग मे ही लगाया करते.
पिता महता कालू बचपन से ही नानक की ईश्वर के प्रति अधिक समय तक इस भक्ति को देख परेशान रहने लगे.
नानक जी के पिता ने अब उन्हें भैसे चराने का काम दे दिया.नानक जी भैसों को चराने ज़ब गए तो वही पर बैठ कर प्रभु के चिंतन मे मगन हो गए. इतने मे सभी भैसे वही से कुछ दूर खेतो मे जा पहुंची. खेतो मे लगी लगभग सारी फसल को बुरी तरह से भैसों ने कुचल डाली था .
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किसानो ने खेतो मे हो रही भैसों की इस जोरदार हलचल को सुना तो दौड़ कर आए और किसी तरह अन्य किसानो की मदद से सभी भैसों को खेतो से निकाला.
सभी किसान नानक जी की शिकायत करने पिता महता कालू के घर जा पहुंचे.
पिता महता कालू किसानो के साथ जब खेत पहुचे तो वहाँ सब फसल बिलकुल सही सलामत थी मानो कुछ हुआ ही ना हो.यह नानक जी की भक्ति का चमत्कार था.
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एक बार की बात हैं दिन का समय था – नाना जी ईश्वर की भक्ति करते हुए एक पेड़ के नीचे लेट गए. कुछ समय बाद नानक जी गहरी नींद मे सो गए. नानक जी के चेहरे पर धूप पड़ने लगी इतने मे वहाँ एक बड़ा सफ़ेद रंग का सांप आता हैं और अपना फन फैला लेता हैं.
सांप अपने फन को इस तरफ से फैला कर खड़ा हो गया ताकि धूप नानक जी के चेहरे पर ना पड़े. चेहरे को धूप की गरम सेक से बचाने के लिए साँप धूप के अनुसार फन को हिलाता रहता जैसे जैसे धूप सरकती रही सांप भी उस धूप को अपने फन से रोके खड़ा रहा.
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उसी समय नगर का शासक राय दुलार उस मार्ग से घोड़े पर सवार हो कार अपने कलिंदो सहित वहां से गुजर रहे थे की उनकी नजर सो रहे नानक जी और उस सफ़ेद सांप पर पड़ी जो फन फैलाए उनके मुंह के पास खड़ा था.तो
यह देख राय दुलार चकित रह गया तब गुरु जी के तेज और सांप की इस हरकत को देखते हुए वह समझ जाता हैं की यह कोई आम बालक नहीं हैं.. तब राय दुलार अपने कालिंदों से कहता हैं की देखो यह कोई आम बालक नहीं हैं बड़ा होकर यह या तो सम्राट बनेगा या फिर कोई महान गुरु.
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नानक जी के बचपन के दोस्त जो की नानक जी से बहुत प्रभावित थे उनका नाम मर्दाना था | नानक जी मर्दाना को भाई मर्दाना कह कर बुलाते थे | भाई मर्दाना हमेशा नानक जी के साथ रहते थे |
नानक जी के बचपन की ऐसी ही कई चमत्कारिक घटनाओं को देखते हुए गांव के लोग उन्हें दिव्य पुरुष मानने लगे.
संन 1485 मे नानक जी का विवाह बटाला निवासी मूला की कन्या सुलखनी बाई से हुआ.
28 साल की उम्र मे नानक जी को पुत्र की प्राप्ति हुई जिनका नाम श्री चंद रखा गया और 31 साल की उम्र मे दूसरे पुत्र की प्राप्ति हुई जिनका नाम लखमी चंद रखा गया.
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नानक जी के पिता ने नानक जी को खेती और व्यापार मे लगाना चाहा. लेकिन सारी कोशिसे बेकार गई.
एक बार पिता महता कालू ने नानक देव जी को 20 रूपए देते हुए कहा की जाओ सच्चा सौदा कर आओ .
नानक जी भाई मर्दाना को साथ लेकर सच्चा सौदा करने निकल गए | वह एक मेले मे पहुंचे वह नानक जी ने बहुत से साधू सेंटो भोखे बैठे हुए देखा | नानक देव जी ने सभी भूखे संतो को लंगर खिलाया और दान पुण्य किया | और फिर वापिस घर लौट आए |
इधर पिता जी को जब यह बात पता चली तो पिता महता कालु जी ने गुस्से मे आकर नानक जी को एक थप्पर मारते हुए कहा , मैंने सौदा करने के लिए पैसे दिये थे यह क्या कर आए ?
नानक जी ने संतुस्टी भरे शब्दों से जवाद दिया – पिता जी यही तो है सच्चा सौदा |dharmik kahani
नानक जी ने संतो को जो भोजन कराया यहीं से शुरू हुई थी लंगर प्रथा | नानक जी की बड़ी बहन नानकी जी के पति जय राम जी ने नानक जी को अपने पास सुल्तानपुर बुला लिया | नवम्बर 1504 से अक्तूबर 1507 तक नानक जी सुल्तान पुर मे ही रहे |
जय राम जी के कहने पर नानक जी को दौलत खान लोधी के यहाँ काम पर रख लिया गया | वहाँ से वह अपनी कमाई का अधिकतर हिस्सा साधू और गरीबो मे दे दिया करते थे |
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नानक देव जी रोज सुबह बेई नदी मे नहाने के लिए जाया करते थे | कहते है एसे ही एक बार जब नानक जी बेइ नदी मे नहाने गए तो तीन दिन उसी नदी मे ही ध्यान मग्न हो गए थे |
तीन दिन बाद जब नानक जी नदी से बाहर निकले तो उन्हे देखने के लिए लोगो काका ताता लग गया | नानक देव जी के मुख से जपुजी साहिब की बानी निकल रही है थी | गुरु जी को ईश्वर ज्ञान की प्राप्ति हो चुकी थी \
इस घटना के बाद वह अपने परिवार यानि बीबी बच्चो का भार अपने ससुर जी के हाथ सौंप कर भाई मर्दाना , भाई लहना जी , और राम दास जी के साथ तीर्थ यात्रा पर चले गए |
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यहीं से नानक जी ने धरती पर अलग जगह पैदल यात्रा घूम कर लोगो को धर्म का पाठ पढ़ाया | लोगो के मन मे बैठे अंधविश्वास को दूर किया |जगह जगह जा कर लोगों को अपने उपदेश दिये |
अपने जीवन मे नानक जी ने कई यात्राएं पूरी की जिनमे भारत ,पाकिस्तान ,बांग्लादेश ,अरब जैसे देश शामिल है | इन यात्राओं को पंजाबी मे उदासीया कहा जाता है |
अपनी इन यात्राओं मे नानक देव जी बहुत लोगो से मिले | बहुत से लोगों का हिर्दय परिवर्तन किया अतः उन लोगो को धर्म के मार्ग पर लेकर आए | ठगों को साधू बनाया- एहंकारियों का अहंकार नस्ट किया और बुरे लोगों को इंसानियत का पाठ पढ़ाया |
गुरु जी की वाणी का लोगो पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता था |dharmik kahani
जाति गत दुश्मनी को खत्म करने के लिए गुरु जी ने संगत प्रथा शुरू की जहां हर जाति के लोग आते थे और मिल जुल कर कथा सत्संग सुनते थे |
अपनी यात्राओं के दौरान गुरु नानक जी ने हर उस शख्स के अतिथि सत्कार को स्वीकार करते हुए घर जा कर भोजन किया जिसने भी नानक देव जी को सेवा के लिए आमंत्रिक किया |
गुरु जी ने अपनी यात्राओं के दौरान बहुत से साधू संतो के साथ सत्संग किया और मानवता का पाठ पढ़ाया | बड़े बड़े महा
महागुरु साधू संत भी गुरु नानक देव जी की बातों से सहमत होते थे |सब लोग आपके संदेश से सहमत थे |
नानक जी का संदेश था की – कृत्तय कारों यानी जीवन यापन के लिए कमाओ , ईश्वर का नाम जपो , हमेशा सत्कर्म कारों और दान भक्ति की राह पर चलो कभी किसी का न बुरा करो और न बुरा सोचों | इससे जीवन सुधर जाएगा मानसिक सुख संतुस्टी प्राप्त होगी |
कई देश भर की यात्रा करने के दौरान गुरु नानक जी अपने अंतिम समय के दौरान अपने बीबी बच्चो सहित करतारपुर शहर बस गए|dharmik kahani
1521 ईस्वी से 1539 ईस्वी तक वहीं रहे | अपने अंतिम समय से पहले गुरु जी अपनी गद्दी का भार भाई लहना यानी गुरु अंगद देव जी को सौंप दिया |
22 सितंबर 1539 मे गुरु नानक देव जी शरीर त्याग परलोक सिधार गए | गुरु नानक देव जी की उपसाना का स्वरूप हिन्दू मुस्लिम दोनों को पसंद था |
गुरु नानक जी के मरणोपरांत सभी धर्म के लोग गुरु नानक देव जी के शरीर के अंतिम संस्कार को लेकर मतभेद करने लगे की नानक जी के शरीर का अंतिम संस्कार कौन करेगा |
कहते है जब उनके मृत शरीर से कपड़े को हटाया गया तो वहाँ सिर्फ फूल ही फूल नजर आए जो मानों यह संदेश दे रहे थे की सभी को आपस मे बिना किसी जाति भेद भाव के मिल जुल कर अखंडता और प्रेम के साथ रहना चाहिए |
जिस स्थान पर नानक देव जी ने शरीर त्यागा वह ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है \
इसके बाद सभी जानते है की सन 1947 मे भारत पाकिस्तान विभाजन की वजह से नन काना साहिब पाकिस्तान के हिस्से मे चला गया था |जिसके चलते भारत के लोगों के लिए ननकानासाहिब के दर्शन करना प्रशासीन रूप से बहुत मुश्किल हो गया \dharmik kahani
फिर भी एक साल मे एक बार भातरीय संगत को ननकाना साहिब दर्शन के लिए करतारपुर कोरीडोर खोल दिया जाता है |
फिर भी जो लोग ननकाना साहिब के दर्शन से वंचित रेह गए है उनको हम इस image कए मधाम से दर्शन करा रहे है \ dharmik kahani
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