नमसकर दोस्तो स्वागत है आपका आज एक और dharmik katha नारद जी की जिज्ञासा मे | हम अपने इस ब्लॉग पर आप लोगो के लिए हमेशा धार्मिक और पौराणिक कहानियाँ लाते रहते है जिसे पढ़ने के बाद धर्म का ज्ञान तो बढ़ता ही है साथ मे ईश्वर के प्रति आस्था एवं श्रद्धा भी बढ़ती है |
हमारी आज की कथा है | मोक्ष प्राप्ति का मार्ग – जरूर पढ़े
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dharmik katha नारद जी की जिज्ञासा
अयोध्या का राजा बनने पर श्री राम जो ने एक राजा की सब जिम्मेदारी संभाल ली. एक बार की बात है वीणा बजाते हुए नारद मुनि भगवान श्रीराम के द्वार पर पहुँचे।
नारायण नारायण !! नारदजी ने देखा कि द्वार पर हनुमान जी पहरा दे रहे है।
हनुमान जी ने पूछा: नारद मुनि ! कहाँ जा रहे हो?
नारदजी बोले: मैं प्रभु से मिलने आया हूँ। नारदजी ने हनुमानजी से पूछा प्रभु इस समय क्या कर रहे है?
हनुमानजी बोले: पता नहीं पर कुछ बही खाते का काम कर रहे है, प्रभु बही खाते में कुछ लिख रहे है।
नारदजी: अच्छा?? क्या लिखा पढ़ी कर रहे है?
हनुमानजी बोले: हमें इसका कोई ज्ञान नहीं मुनिवर आप खुद ही देख आना।
नारद मुनि गए प्रभु के पास गए और देखा कि प्रभु कुछ लिख रहे है।
नारद जी बोले: प्रभु आप बही खाते का काम कर रहे है? ये काम तो किसी मुनीम को दे दीजिए।
प्रभु बोले: नहीं नारद, मेरा काम मुझे ही करना पड़ता है। ये काम मैं किसी और को नही सौंप सकता।
नारद जी: अच्छा प्रभु ऐसा क्या काम है? ऐसा आप इस बही खाते में क्या लिख रहे हो?
प्रभु बोले: आप क्या करोगे देखकर, जाने दो। नारद जी बोले: नही प्रभु बताईये ऐसा आप इस बही खाते में क्या लिखते हैं?
प्रभु बोले: नारद इस बही खाते में उन भक्तों के नाम है जो मुझे हर पल भजते हैं। मैं उनकी नित्य हाजिरी लगाता हूँ।
नारद जी: अच्छा प्रभु जरा बताईये तो मेरा नाम इस बही खाते मे कहाँ पर है?
श्री राम जी बोले लो आओ लहुड ही देख लो. नारदमुनि ने बही खाते को खोल कर देखा तो उनका नाम सबसे ऊपर था। नारद जी को गर्व हो गया कि देखो मुझे मेरे प्रभु सबसे ज्यादा भक्त मानते है।
पर नारद जी ने देखा कि हनुमान जी का नाम उस बही खाते में कहीं नही है? नारद जी सोचने लगे कि हनुमान जी तो प्रभु श्रीराम जी के खास भक्त है फिर उनका नाम, इस बही खाते में क्यों नही है? क्या प्रभु उनको भूल गए है?
नारद मुनि आये हनुमान जी के पास बोले: हनुमान ! प्रभु के बही खाते में उन सब भक्तों के नाम हैं जो नित्य प्रभु को भजते हैं पर आप का नाम उस में कहीं नहीं है?
हनुमानजी ने कहा कि: मुनिवर,! होगा, आप ने शायद ठीक से नहीं देखा होगा?
नारदजी बोले: नहीं नहीं मैंने ध्यान से देखा पर आप का नाम कहीं नही था।
हनुमानजी ने कहा: अच्छा कोई बात नहीं। शायद प्रभु ने मुझे इस लायक नही समझा होगा जो मेरा नाम उस बही खाते में लिखा जाये। पर नारद जी प्रभु एक अन्य दैनंदिनी भी रखते है उसमें भी वे नित्य कुछ लिखते हैं।
नारदजी बोले:अच्छा?
हनुमानजी ने कहा: हाँ!
नारदमुनि फिर गये प्रभु श्रीराम के पास और बोले प्रभु ! सुना है कि आप अपनी अलग से दैनंदिनी भी रखते है! उसमें आप क्या लिखते हैं?
प्रभु श्रीराम बोले: हाँ! पर वो तुम्हारे काम की नहीं है।
नारदजी: ”प्रभु ! बताईये ना, मैं देखना चाहता हूँ कि आप उसमें क्या लिखते हैं?
प्रभु मुस्कुराये और बोले मुनिवर मैं इनमें उन भक्तों के नाम लिखता हूँ जिन को मैं नित्य भजता हूँ।
नारदजी ने डायरी खोल कर देखा तो उसमें सबसे ऊपर हनुमान जी का नाम था। ये देख कर नारदजी का अभिमान टूट गया।
कहने का तात्पर्य यह है कि जो भगवान को सिर्फ जीव्हा से भजते है उनको प्रभु अपना भक्त मानते हैं और जो ह्रदय से भजते है उन भक्तों के वे स्वयं भक्त हो जाते हैं। ऐसे भक्तों को प्रभु अपनी हृदय रूपी विशेष सूची में रखते हैं।
इस dharmik katha नारद जी की जिज्ञासा से सीख
आप प्रभु को माने या ना माने | भले ही ईश्वर पर आपकी आस्था ना हो … फिर भी आप अगर अपने जीवन मे निःस्वार्थ भाव से अच्छे कर्म करते हो ईमानदारी रखते हो, ईमानदारी से जिम्मेदारियों को निभाते हो. तो ईश्वर ऐसे लोगो पर अपनी कृपा सदैंव बनाए रखते है.
यह धार्मिक कहानी आपको कैसी लगी कमेंट करके जरुर बताना. इन धार्मिक कहानियों के माध्यम से हम आप तक वो ज्ञान की बातें लें कर आते है जो जीवन मे भूत जाम आती है.
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