religious story hindi गुरु नानक देव जी की शिक्षाप्रद कहानी – दोस्तों स्वागत हैं आपका ज्ञान और शिक्षा से भरी गुरु नानक देव जी की religious story मे |
गुरु नानक देव जी की इन कहानियों मे हमे सदैव सदकर्म एवं सत्कर्म करने की प्रेरणा मिलती है |गुरुनानक देव जी के जीवन कर्मो को जान कर हमे अद्भुत ज्ञान की प्राप्ति होती है|
तो हम religious story गुरु नानक देव जी की महिमा का बखान करते हुए उनके ज्ञान को एक सच्ची कहानी के रूप मे आप तक लेकर आए है जिसे पढ़ने के बाद आपके जीवन मे सकारात्मक प्रभाव होगा |
तो चलिये जानते है religious story ज्ञान से भरे उनके जीवन की अद्भुत गाथा के बारे मे|
Table of Contents
religious story hindi दाने दाने पर लिखा खाने वाले का नाम
एक बार एक गांव मे बहुत ही प्रसिद्ध वैद जी रहते थे . उनके पास दूर दूर से बहुत से लोग अपनी बीमारियां लें कर आते थे और दवाई लें कर चले जाते थे. हर कोई वैद जी की दवाई से ठीक हो जाता था. कोई तुरंत ठीक हो जाता तो कोई कुछ दिन बाद.
एक दिन गुरु नानाना जी भाई मरदाना और भाई बाला जी के साथ अपनी धार्मिक यात्रा करते हुए उस गांव मे पहुंचे.
विश्राम करने के लिए तीनो एक पेड़ की घनी छाया के नीचे बैठ गए और प्रभु का गुणगान करने लगे.
बगल मे मक्का के खेत थे. हलकी हलकी हवा चल रही थी जिस वजह से मक्का की फसले हिल रही थी उनके हिलने से मधुर आवाज़ पैदा हो रही थी.
नानक जी ने मरदाना जी को भक्ति संगीत सुनाने को कहा.
तब भाई मरदाना जी अपनी सारंगी बजाते हुए अच्छी सी धुन निकालते हैं और संगीत गाते हुए कहते हैं.
*जीना कितना, सब तय हैं, मरना कब हैं वह भी तय,
सोना कब और जागना कब हैं वह भी तय,
सुख की घड़िया कब आएंगी दुख की घड़ियां कब जाएंगी वह भी तय हैं.
दाना दाना किसने खाना किसके भाग्य मे कितना खाना सब कुछ तय हैं
लिखा गया हैं.की जो जैसा कर्म कमाएगा वो वैसा ही भाग्य बनाएगा *
किसके भाग्य माय कितना कुछ है वह उसका कर्म बताएगा
यह संगीत सुन भाई बाला जी सोच मे पड़ जाते हैं और मन ही मन विचार करने लगते हैं की सब कुछ पहले से कैसे तय हो सकता हैं यह सवाल वह गुरु नानक जी से पूछते हैं.
हे ! नानक जी – भाई मर्दाना ने संगीत मे जो भी बोला हैं क्या वह सब सत्य हैं? क्या सब कुछ पहले से लिखा जा चुका हैं?
नानक जी मधुर वाणी मे बोलते हैं – हाँ भाई बाला जी – यह सब बाते सत्य हैं लेकिन कर्म के अनुसार.
भाई बाला जी – मैं कुछ समझा नहीं गुरु जी, जब सब कुछ पहले से तय हैं तो कर्म करके उसे कैसे बदला जा सकता हैं?
अब नानक जी बाला जी को समझाते हुए कहते हैं – भाई बाला जी ! यह सत्य हैं की सब पहले से तय हैं लेकिन जो पहले से तय हुआ था वह हमारा भाग्य ही तो था जो हमारे कर्मो से बना था. यानी की हम अपना भाग्य अपने कर्मो से बनाते हैं.
भाई बाला जी इतनी बात से संतुस्ट होने के बाद फिर से मन मे एक शंका लिए
नानक जी से पूछते हैं – *हे नानक जी ! दाने दाने पर लिखा हैं खाने वाले का नाम*
क्या यह भी सत्य हैं? इस मक्का के खेत मे जितने भी मक्का लगे हैं क्या उन पर पहले से खाने वाले का नाम लिखा हैं.
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तब नानक जी बोलते हैं – हाँ यह भी सत्य हैं. सिर्फ मक्का पर ही नहीं बल्कि एक एक दाने पर खाने वाले का नाम लिखा हैं.
इतना सुन भाई बाला जी तुरंत मक्का के खेत से एक मक्के से दाना निकाल कर लाते हैं और नानक जी से पूछते हैं- अब बताओ नानक जी यह दाना किसके पेट मे जाएगा.
नानक जी तो ब्रम्ह ज्ञानी थे वह भूत भविष्य सब जानते थे सब देख सकते थे.
इसलिए नानक जी मुस्कराते हुए बोलते हैं – भाई बाला ! यह दाना तुम्हारे पेट मे नहीं जाएगा.
यह सुन भाई बाला जी कहते हैं – नानक जी यह आप क्या कह रहे हैं, दाना मेरे हाथ मे हैं और भूख भी लगी हैं. फिर भी आप कह रहे हो यह दाना मेरे पेट मे नहीं जाएगा.
नानक जी फिर से मुस्कराते हुए बोले – हाँ भाई बाला, यह कुदरत का नियम हैं, की दाने दाने पर लिखा हैं खाने वाले का नाम और यह दाना तुम्हारे पेट मे नहीं जाएगा.
इतना सुन भाई बाला जी तुरंत दाने को मुंह मे डाल लेते हैं. और कहते है लो मैंने कुदरत का यह नियम तोड़ दिया |
भाई बाला जी ,दाना जैसे ही निगलने की कोसिस करते हैं तभी दाना उनके गले मे अटक जाता हैं और भाई बाला जी की हालत खस्ते खासते खराब हो जाती हैं. सांस लेने मे भी तकलीफ होने लगती है |
बड़ी मुश्किल से बोलते हुए बाला जी कहते हैं – गुरु जी कुछ करो बहुत तकलीफ हो रही हैं.
गुरु जी – भाई बाला को तुरंत गांव के वैद के पास लें जाते हैं.
वैद जी मुर्गियों को दाना डाल रहे थे.
गुरु जी वैद जी को सारी बात बताते हैं तब वैद्द जी भाई बाला को एक नकसीर सुंघाते हैं जिससे भाई बाला को जोर जोर से छीके आने लगती हैं.
छीको के इस दबाव की वजह से भाई बाला के गले मे फंसा हुआ मक्का का दाना निकल कर बाहर जमीन मे गिरता हैं.
दाना जमीन मे गिरते ही वहां एक मुर्गी आती हैं और उस दाने को खा जाती हैं इस तरह दाना मुर्गी के पेट मे चला जाता हैं..
यह देख भाई बाला जी को गुरु जी की बातो पर विश्वास हो जाता हैं की *दाने दाने पर लिखा हैं खाने वाले का नाम*
तब भाई बाला जी गुरु जी से माफ़ी मांगते हुए कहते हैं. गुरु जी मुझे माफ कर दें, मैं मूर्ख आपकी बातो पर शक कर रहा था.
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