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success का मूल मंत्र | जिंदगी के 24 घंटे

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कामयाबी (success) एक दिन मे हासिल नहीं होती. हर बड़ी कामयाबी (success) के पीछे छिपी होती हैं एक संघर्ष की दास्तां|

 

 हर इंसान की जिंदगी मे 24 घंटे ही होते हैं लेकिन हर इंसान कामयाबी (success) का इतिहास नहीं रच पाता, कामयाबी (success) का इतिहास वही इंसान रच पाता हैं जो अपनी लाइफ के हर एक सेकेंड की value को समझते हुए 24 घंटो का उपयोग इस प्रकार करता हैं की एक दिन समय उसके कदमो मे कामयाबी (success) की जन्नत बिछा देता हैं.

success का मूल मंत्र | जिंदगी के 24 घंटे

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यह हर कोई जानता है की समय का महत्व सफलता (success) के लिए  कितना अधिक है लेकिन हर कोई समय का सदुपयोग नहीं कर पाता|

जो इंसान समय के प्रति ईमानदार नहीं तो समय भी ऐसे लोगो की जिंदगी को एक दिन मज़ाक की कसौटी पर लाकर खड़ा कर देता है |

बिल गेट्स हो या अम्बानी या  वो हर कामयाब (success) इंसान जो अपने जीवन के लक्ष्य को बिना हार माने अपने अथक प्रयास से प्राप्त कर पाया हैं उसके जीवन मे भी 24 घंटे ही थे और आज भी उतने ही हैं.

 

 

उन लोगो की भी दो ही आँखे हैं जैसी आपकी हैं उन लोगो के पास भी काम   करने के लिए दो हाथ और चलने के लिए दो टांग तथा सुनने कर लिए वैसे ही दो कान हैं जैसे आपके हैं. उनके पास भी एक ही दिमाग़ हैं जो आपके पास भी हैं. तो फिर फर्क कहाँ पर हैं.

यदि वो लोग कर सकते हैं तो आप क्यों नहीं. क्या कभी इस पर  विचार किया?

 

जी हाँ एक फर्क  हैं ! और वो है मानसिकता का फर्क | एक सोच का फर्क | तो चलिए आपको दो ऐसी ही मानसिकता वाले इन्सानो की एक छोटी सी सफलता (success) की कहानी सुनाता हूँ |

 

जिसके जरिये आप समझ जाएंगे की ज़िंदगी के 24 घंटो का सही उपयोग करना लक्ष्य प्राप्ति तथा सफलता (success) के लिए किस प्रकार से एक मील का पत्थर साबित होती है | तो चलिए जानते है |

 

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ये कहानी है मुंबई के दो  ऐसे लड़को की जो एक सामान्य मिडल क्लास family से बिलोंग करते है | एक का नाम था  विशाल त्रिपाठी और दूसरे का नाम था मनोज गिलानी |

 

विशाल के दो छोटे भाई थे ,वहीं दूसरी तरफ मनोज की दो छोटी बहने थी |

 

दोनों के पिता जी नारियल पानी बेच कर और फलों के जूस वागेरा बेच कर घर का खर्च चलाते थे |

success का मूल मंत्र | जिंदगी के 24 घंटे

विशाल मनोज से 8 महीने बड़ा था | दोनों ही फीजीकली  एक जैसे ही थे दिमाग भी उतना ही था  |बस फर्क था तो समय के सदुपयोग को  लेकर उन दोनों की मानसिकता /सोच का |

 

इन दोनों की मुलाक़ात भी कॉलेज मे ही हुई एक दूसरे को जानते समझते हुए दोनों मे दोस्ती हो गई |

 

पढ़ाई की दुनिया मे जब दोनों collage के स्तर तक पहुंचे तो वहाँ पर होने वाले  मोटीवेशनल सेमिनार से दोनों की मानसिकता पर गहरा प्रभाव पड़ा जिसके चलते दोनों ने  ज़िंदगी मे कुछ करने की ठानी |

 

समय बीतता गया और कॉलेज लाइफ खत्म  हुई लेकिन अभी भी दोनों ने करियर का कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं किया था क्यो की परिवार मे बड़ा होने के नाते कॉलेज के बाद अब घर की जिम्मेदारियाँ भी कंधो पर आने लगी थी जिसके चलते दोनों का दिमाग प्राइवेट/सरकारी जॉब जैसे घटिया बातों पर सीमित रहने लगा |

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लेकिन सच तो यह हैं की मन दोनों का ही ज़िंदगी मे कुछ अपना करने का था |अपनी ही एक अलग पहचान बनने का |

 

लेकिन उस समय पिता जी का काम ठीक से चल नहीं रहा था जिसके चलते घर के हालत कुछ ऐसे बन चुके थे की उनको मजबूरन कोई छोटी सी प्राइवेट जॉब करनी पड़ी|

 

जॉब करते हुए हुए दोनों के मन मे बार बार आता था की हमने मेकेनिकल की पढ़ाई की है तो किसी मोटर गेरेज से काम सीख कर क्यों न अपना खुद का काम शुरू किया जाए |success का मूल मंत्र | जिंदगी के 24 घंटे

 

कुछ समय बाद दोनों ने जॉब छोड़ दी और एक बहुत बड़े मोटर गैरेज मे काम सीखने लगे | वो एक ऐसा गैरेज था जहां 24 घंटे काम चलता रहता था वहाँ पर काम करने के पैसे भी दिये जाते थे जितना काम करोगे उतने ही पैसे | लेकिन दोनों अभी काम सीख रहे थे |

 

दोनों मे काम को सीखने की प्रबल इच्छा थी | लेकिन दोनों मे आज भी समय के सदुपयोग को लेकर सोच अलग अलग थी |

 

विशाल समय की कीमत को समझता हुआ टाइम मेनेजमेंट के अनुसार काम करता था लेकिन मनोज टाइम के प्रति बहुत लापरवाह था जब जिसके चलते जब मन किया गैरेज चला गया या फिर नहीं जाता था फालतू के कामो मे उलझा रहता था |

 

इस तरह मनोज अपने जीवन के 24 घंटे ज्यादार सोने मे या इधर उधर मे निकाल देता था गैरेज बहुत कम ही जाता था |

काम तो पूरी ईमानदारी से करता था लेकिन वो इस बारे सोचता ही नहीं था की किस काम को अधिक समय देना चाहिए | लक्ष्य के प्रति सिरियस तो था लेकिन समय के प्रति बहुत लापरवाह|

 

विशाल को भी इधर एहसास हुआ की मैं गैरेज के लिए टाइम नहीं निकाल पा रहा हु जबकि विशाल की सोच टाइम के प्रति बहुत सजग थी |

जिसके चलते विशाल ने  सबसे पहले एक डायरी ली और अपने लक्ष्य को ध्यान मे रखते हुए अपनी लाइफ के रोज के उन 24 घंटो के बारे सोचने लगा की -अब तक मैं इन 24 घंटों मे क्या क्या करता था

उन सब को उसने लिख लिया  फिर इसके बाद अब वो  उन 24 घंटों मे किए जाने वाली सभी क्रियाओं की लिस्ट को 10 मिंट तक ध्यान से देखता रहा

 

इस 10 मिंट मे वो विचार कर रहा था की इन सब मे ऐसी  कौन सी क्रियाए है जो फालतू की है जिनका मुझे कोई लाभ नहीं है तो उनको मैं लिस्ट से निकाल देता हूँ, 

और इसके बाद जो बचेगा उनमे से मैं किन क्रियाओं को कितना समय दू ताकि मैं अधिक से अधिक उन क्रियाओं को समय दे पाऊ जिसके जरिये मुझे अपना लक्ष्य हासिल करना है |

 

फिर बहुत सोच विचार कर ऐसी लिस्ट बनाई की जिसमे सब कुछ था |

कब से कब तक सोना है कौन कौन से रोज मर्रा के जरूरी  काम कितने समय मे खत्म करना है लक्ष्य प्राप्ति की क्रियाओं पर कितना समय लगाना है

इसी के साथ अपनी सेहत को ध्यान मे रखते हुए समय से खाना और कसरत जैसी क्रियाए भी शामिल की |

 

तो इस तरह जब 24 घंटे मे किए जाने वाले क्रियाओं की लिस्ट तैयार की और प्रण /किया यानी संकल्प लिया की इस बनाई हुई लिस्ट का पूरी ईमानदारी से पालन करूंगा |

 

बस फिर क्या था वो इंसान लग गया अपने काम पर| सब काम सीखने के बाद अब विशाल ने अपना  खुद का गैरेज खोला लिया | 

 

उसे कई चुनौतियों का सामना भी  करना पड़ा असफलता  भी मिली लेकिन फिर भी वो पीछे नहीं हटा अपने हर असफलता के अपनी गलती को सुधरते हुए ,अपने संकल्प तथा लक्ष्य  को याद करते हुए फिर से अपने काम मे जुट जाता |

 

और देखते ही देखते सफलता (success) उसके नजदीक आती जा रही थी वो लक्ष्य की तरफ तेजी से बढ़ रहा था |

इधर मनोज गैरेज मे अधिक समय न दे पाने की वजह से अभी तक ठीक से काम नहीं सीख पाया था |

 

तो दोस्तो यही थी जीवन के 24 घंटो सदुपयोग करने की कहानी |

हमारी हमेशा से कोशिश रहती है की हम आप लोगों के लिए  motivation & inspiration से भरी speech – motivational stories और प्रेरणादायक विचार लाते रहें ताकी इन्हे पढ़ने के बाद आपके अंदर किसी भी मुकाम को हासिल करने का जुनून जाग उठे | ताकी इन्हे पढ़ने के बाद आप अपनी ताकत को पहचान सको और जीवन की मुश्किलों से लड़ कर आगे बढ़ सको तथा सफलता हासिल कर सको | 

 

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