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इंसान को दुनिया मे जिन्दा रहने के लिए, पेट पालने के लिए, पैसे कमाने के लिए ना जाने कितने और जैसे कैसे पापड़ बेलने पड़ते हैं.
ख़ैर हम बात कर रहे हैं उस पापड़ की जिसने पूरे भारत मे धूम मचा दी थी. इसका नाम हैं लिज्जत पापड़. जी हाँ वही लिज्जत पापड़ जिसका नाम और टेस्ट हर किसी ने चखा हैं.
एक ज़माने मे 6 ओरतों ने मिल कर घर से शुरू किया था लिज्जत पापड़ का यह काम इसके बाद तमाम चुनौतियों के बाद लिज्जत पापड़ एक एक ब्रैंड बन कर सामने आया जिसके नाम से पूरा भारत वाकिफ हैं.
आज यही पापड़ लोखो घरों को रोजगार दे रहा हैं.
तो चलिए जानते हैं 6 ओरतों द्वारा बेले गए पापड़ से लेकर एक अद्भुत ब्रैंड बनने के पीछे चुनौती और संघर्ष भरी दास्तां.
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Success की motivational story लिज्जत पापड़ की शुरुआत
Success की motivational story – मुंह मे स्वाद घोल देने वाले लिज्जत पापड़ की शुरुआत किसी बड़े उद्योग या फिर पैसे कमाने के उदेश्य से नहीं हुई थी.
बल्कि 1959 मे मुंबई मे रहने वाली जसवंती बेन ने आपने परिवार की आमदनी को बढ़ाने के लिए यह काम शुरू किया था.
इस काम को करने वाली वह अकेली नहीं थी बल्कि उनके साथ थी 6 और महिलाए. इन महिलाओ के सामने सबसे बड़ी समस्या थी की वह आपने घर के खर्च को कैसे संभाले.
जिसके चलते पहले सामान मे कटौती की फिर कम खाना शुरू कर दिया. पर यह समस्या का हाल नहीं था यह महिलाए पढ़ी लिखी नहीं थी इसलिए नौकरी मिलना भी संभव नहीं था.
और जिन ओरतों को कुछ शिक्षा का ज्ञान था भी तो वह घर की जिम्मेदारी की बेड़ियों से बँधी थी.
Success की motivational story
तो अब एक ही रास्ता था की कुछ ऐसा काम किया जाए की घर से बाहर भी ना जाना पड़े और पैसे भी कमा पाए.
घर जा सब काम करने के बाद उनके पास काफ़ी समय बच जाता था जिसमे वह कुछ करना चाहती थी जिससे घर आमदनी बढ़े पर समस्या ये थी की क्या किया जाए.?
सभी महिलाए गुजरती परिवार से थी जिस वजह से उन्हें पापड़ और अन्य कई तरह की चीजे बनाने मे महारथ हासिल थी.
तब ऐसे मे जसवंती पोपटदास जी ने निश्चय किया की वह अब यही काम करेंगी. उनके साथ 6 औरते और भी यह काम करने के लिए तैयार हो गई.
इसके इलावा एक महिला और भी थी जिसे पापड़ बेचने का काम सौपा गया था.इस तरह व्यवसाय तय हो चुका था पापड़ बनाने की विधि भी सब को पता थी.
चूकी यह महिलाओ वाला काम था इसलिए परिवार वालों ने कोई रोक टोक नहीं की.
अब समस्या थी तो यह की पैसे कहा से जुटाए जाए.
जिसका इंतजाम करने के लिए यह महिलाए के सर्वेंट of इंडिया सोसाइटी के अध्यक्ष और सामाजिक कार्यकर्ता छगन लाल पारे के पास पंहुचे. चागल लाल जी को इन महिलाओ के व्यवसाय से ज़ादा इनके हौसलों को देख कर बहुत ख़ुशी हुई.
बिना देर किये छगन लाल ने इन महिलाओ को 80रुपए उधर दे दिये.
रूपए उधर देने के बाद छगनलाल ने इन महिलाओं को एक फर्म के बारे मे बताया जो की काफ़ी समय से घाटे मे चल रही थी. मशीने बहुत कम बिकती थी.
जिसके चलते छगनलाल के कहने पर महिलाओ ने उस फर्म से सस्ते दामों पर पापड़ बनाने वाली मशीन खरीदी तथा साथ मे उन सभी सामानो (इंग्रीडिएंट, मसालों) को भी खरीदा जो पापड़ बनाने के लिए जरुरी थी.
इसके बाद सभी महिलाए अपना रोज मर्रा का जाम जल्दी जल्दी ख़तम करके लग जाती.
पहले दिन पापड़ बेला गया फिर महिलाए मशीन लें कर आपने घर की छत पर पहुंची, दो महिलाए मशीन सेट कर रही थी. बाकि पापड़ बनाने के लिए आटा लगाने लगी, एक महिला ने पॉलीथिन तैयार की जिसमे पापड़ो को रखा जा सके.
दो घंटे मे यह काम ख़त्म करने के बाद आते की पहली लोई मशीन मे डाली गई और एक मिनट से भी काम समय मे पापड़ बन कर तैयार हो गया पहला पापड़ देख कर सातों महिलाओ के मुँह पर ऐसी मुस्कान आई जैसे कोई हीरा तराशा गया.
कुछ ही घंटो मे इतने पापड़ तैयार हो गए की चार पैकेट तैयार हो सके. यह पहला प्रयोग था इसलिए केवल 4 पैकेट जितना पापड़ तैयार होने पर ही काम रोक दिया गया.
इसके बाद इन सब पापड़ो को एक जाने माने व्यापारी भुलेश्वर दत्त को बेच दिया गया. भुलेश्वर ने कहा यदि पापड़ बिक गए और मांग बढ़ी तो पहला ऑर्डर हमारी तरफ से आएगा.
अब इंतज़ार अगली सुबह का की सारे पैकेट बिक जाए. आख़िरकार मेहनत रंग लाई.
बस फिर क्या था खूब ऑर्डर आने लगे और पापड़ के पैकेट की संख्या 4 से बढ़कर हज़ारो तक पहुँच गई.
खास बात यह थी की इन महिलाओ ने तय किया था की बह इस व्यवसाय के लिए किसी से चंदा नहीं लेंगे.
कुछ महीनों की मेहनत के बाद उन्होंने 80 रूपए का उधार भी चुका दिया था.
इसके बाद profit होने वाले पेसो से उन्होंने ने और भी सामान खरीद लिए.
छगनलाल को उनकी मेहनत पर पूरा यकीन था जिसके चलते छगन लाल ने उनका मार्गदर्शन किया. जिसमे सबसे दो प्रकार के पापड़ बनाए गए जो क्वालिटी के हिसाब से महंगे और सस्ते थे.
इसके बाद छगनलाल ने उन्हें स्टेंडर्ड किस्म के पापड़ बनाने के सुझाव दिये. जिसमे किसी भी स्थिति से क्वालिटी से समझौता ना किया जाए.
Success की motivational story
छगन लाल ने महिलाओ के इन समूह को व्यापार करने का हुनर भी सिखाया.
छगन लाल ने क्वालिटी के साथ समझौता ना करने तथा कस्टमर की जरुरत को समझने तथा कस्टमर से बात करने का हुनर बताया.
इसी के साथ घाटे से उबरने की तकनीक बताई. और उनके व्यापार का लेखा जोखा भी छगन लाल ही सँभालने लगे.
3 महीनों के बाद ही इन 7 सहेलियों के छोटे से समूह ने एक कॉपरेटिव सिस्टम का रुप लें लिया.
जिसमे और जरुरत मंद महिलाए तथ्य कॉलेज की लड़किया भी जुड़ती गई.
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एक साल मे पहली कमाई 6790 रुपए की हुई. आपको बता दे की यह रकम उस ज़माने मे बहुत हुआ करती थी.
अगले साल के 4 महीने तो व्यापार अच्छा हुआ लेकिन बाकि के 8 महीने बारिश की वजह से यह व्यापार ठप रहा क्यों की धूप ना निकलने की वजह से पापड़ नहीं सूख पाते थे. इस तरह एक साल तो यूँ ही निकाल गया.
पर अगले ही जब फिर ऐसे ही बारिश आई तो इस बार महिलाओ ने पापड़ सुखाने का नया तरीका इज़ात कर डाला.
वे पापड़ो को खाट पर सुखाती तथा उसके पास स्टोव जला देती थी. जिसकी गर्मी से पापड़ सीलन (नमी) से बच जाते थे और सूख जाते थे. इस तरह ये पूरा साल महिलाओ के पापड़ का काम चला.
आपने पापड़ो की सेल्स को बढ़ाने के लिए इनको किसी विज्ञापन की जरुरत नहीं पड़ी थी. क्योंकि इसका स्वाद ही ऐसा था जो लोगो मे बहुत लोकप्रिय हो गया.
अलगे दो साल के अंदर मुंबई के इलावा आस पास छोटे बड़े गांव कस्बों मे भी इस पापड़ की महक पहुँच गई.
इस लिज्जत पापड़ के स्वाद की तारीफ के साथ साथ लोगो को ज़ब इस लिज्जत पापड़ का इतिहास पता चला तो लोगो ने इसकी बहुत तारीफे की जो बाकि औरतो के लिए भी एक प्रेरणा बनी.
उस दौर मे लिज्जत पापड़ की यह कहानी और उसकी बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए newspaper तथा मेग्जीन्स मे लिज्जत पापड़ के बारे मे लिखा जाने लगा.
इधर देखते ही देखते कोरोपोरेशन यानी पापड़ बनाने वाली महिलाओ की संख्या मे तेजी से इजाफा होने लगा. प्रेरित हो कर बहुत सी महिलाए इस कॉर्पोरेशन के साथ जुड़ती गई.
जिससे संख्या 150 से हज़ार तक पहुंच गई. व्यापार इतना बढ़ गया था की एक छत भी कम पड़ गया था.
इसीलिए महिलाओ को सलाह दी गई की वो आपने घर से ही काम करे. इस प्रकार 500 महिलाए घर से ही पापड़ बनाने का काम करने लगी इन सब महिलाओ को जरुरत के सभी सामान घर पड़ ही उपलब्ध करवा दिये गए थे.
इसके बाद 1962 मे महिलाओ की इन पापड़ कॉर्पोरेशन ने पापड़ का नाम करण कर दिया नाम रखा गया लिज्जत पापड़.
इस नाम को रखने के पीछे की भी एक कहानी हैं. दरअसल महिलाए गुजरती थी और गुजरात मे लिज्जत का अर्थ होता हैं स्वादिस्ट.
पापड़ का यह नाम रखने से पहले एक प्रतियोगिता रखी गई थी जिसमे सभी महिलाओ ने एक पर्ची पड़ नाम लिख कर एक बड़े से बोक्स मे डाल दिया.
उन नामो को ज़ब पढ़ा गया तो सबसे प्रिय नाम यही निकला लिज्जत . जो की सब को प्रिय था. पर्ची पड़ यह नाम लिखने वाली महिला थी धीरज बेन रूपा रेन. इस प्रकार ये इस प्रतियोगिता मे विजई रही इस महिला को 5 रूपए इनाम मे दिये गए.
इस ऑर्गेनाइज़ेशन का नाम श्री महिला उद्योग लिज्जत पापड़ रखा गया. धीरे धीरे काम और भी बढ़ता गया . यह पापड़ अब महाराष्ट्र के सीमावर्ती राज्यों मे भी पहुँचाया जाने लगा.
जिससे 1963 मे इस लिज्जत पापड़ का कुल टर्नओवर बढ़कर एक लाख से ऊपर पहुँच गया.
1966 मे लिज्जत पापड़ कंपनी को रजिस्टर किया गया.
लिज्जत ने 70 के दशक मे आटा चक्की. प्रिंटिंग मशीन, पेकिंग की मशीने खरीदे.
इसके साथ ही महिलाओ ने पापड़ के इलावा खाकरा, मसाले, वादी और बेकरी जैसे प्रोडक्ट भी बनाने शुरू किये.
80 के दशक मे लिज्जत कम्पनी ने देश भर के मीलो मे आपने स्टॉल लगाने शुरू कर दिये.
इसके tv पर भी लिज्जत पापड़ के प्रचार के प्रचार आने लगे.
90 के दशक मे विज्ञापन बहुत मशहूर हुए. और देश विदेश मे भी लिज्जत पापड़ सेल किये जाने लगे.
साल 2002 मे लिज्जत का टर्नओवर 2 करोड़ो तक पहुँच गया.
15 मार्च 2009 को लिज्जत पापड़ ने अपनी 15वीं वर्षगाठ बनाई. तब तक इस ग्रुप ने पूरे भारत मे 62 हजार शाखा तैयार कर ली थी.
2005 मे देश के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ अब्दुल कलाम ने इस संस्थान को ब्रैंड equty के पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
2011 -12 मे लिज्जत पापड़ को पवार ब्रैंड के रूप मे चयनित किया गया.
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