success story – स्वागत है आपका ! मन मे सफलता की आग लगा देने वाली motivational/success stories की दुनिया मे|
आज हम आपके लिए एक ऐसी hindi success story लें कर आए है जिसे पढ़ने के बाद. आप जान जाएंगे की कैसे अपने जिद्द और जुनून के चलते कमजोर दिमाग वाला इंसान भी इतिहास रच सकता है |
तो चलिये शुरू करते है
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success story in hindi
success story – यह कहानी हैं स्वीडन के एक छोटे से गांव मे गरीब किसान परिवार मे जन्मे एक बच्चे की. जिसका नाम इंग्वार रखा गया. इंग्वार का जन्म 23 मार्च 1926 को जन्म हुआ.
यह स्वीडन के इतिहास का एक ऐसा दौर था जब स्वीडन बहुत गरीबी और बदहाली के दौर से गुजर रहा था | उस समय स्वीडन की अर्थव्यवस्था की हालत काफी खराब थी |
पिता जी किसान थे जिनकी अपनी ही जमीन थी उसी जमीन पर वो खेती करते और उसी मे अनाज सब्जियाँ उगा कर अपना और परिवार का पेट पालते थे.
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उनका घर भी खेत की जमीन पर ही था | बाकि घर के खर्चो को चलाने के लिए इंग्वार के पिता जी प्रायः जंगल जाते और वहां से अच्छी किस्म की लकड़िया काट लाते और उन्हें बाजार मे बेच कर कुछ पैसे कमा पाते थे |
इंग्वार जब कुछ बड़ा हुआ तो वह भी अपने माँ पिता जी के साथ खेत मे कुछ ना कुछ काम करने लगा. इस तरह पूरा परिवार खूब मेहनत करता.
इसके बाद इंग्वार ज़ब 5 साल का हुआ तो उनका दाखिला स्कूल मे करवा दिया गया. जिसमे इंग्वार को लेकर कुछ महीने बाद यह बात सामने आई की इंग्वार डिस्लेक्सिया नाम की एक ऐसी बीमारी से पीड़ित हैं यह एक ऐसी बीमारी है जिसमे शब्दों को पढ़ने तथा समझने मे परेशानी आती हैं.
इधर पिता जी इंग्वार के लेट उठने की आदत और डिस्लेक्सिया नाम की बीमारी से परेशान थे.
जिसको लेकर वह इंग्वार को अक्सर गुस्से मे बोल देते की तू इतना लेट सो कर उठता हैं और पढ़ाई मे भी कमजोर हैं. ऐसा ही रहा तो तू जिंदगी मे कुछ नहीं कर सकता.
पिता की यह बात इंग्वार को बहुत चुभती. इंग्वार, पिता की इस बात को गलत साबित कर दिखाना चाहता था की एक दिन वो जिंदगी मे जरूर कुछ बड़ा कर के दिखाएगा.
अपनी इस लेट उठने की आदत से अक्सर स्कूल लेट पहुँचता जिस वजह से मास्टर उसे खूब सुनाते.
मास्टर और पिता जी की डाट से इंग्वार एक दिन ठान लिया की अब खुद की आदत को सुधार कर रहूँगा. और मुझे अपने साथ के बच्चो से ज़ादा पढ़ना होगा ताकि मे उन तक पहुँच सकूँ.
जिसके चलते इंग्वार ने सुबह 5:30 का अलार्म लगाया और अलार्म को स्टॉप करने वाला बटन तोड़ दिया. अब अलार्म बजने से रोज इंग्वार 5:30 पर उठ जाता.
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एक दिन सेल ख़तम हो गया. सुबह अलार्म नहीं बजा फिर भी इंग्वार समय से पहले ही उठ गया. यह देख इंग्वार अचम्भा रह गया की यह कैसे हुआ, अलार्म भी नहीं बजा और मेरी आँख अपने आप खुल गई.
अब रोज सुबह जल्दी उठने की आदत के चलते इंग्वार खूब मन लगा कर पढ़ाई करता ताकि वो इस डिस्लेक्सिया बीमारी को भी हरा दे.
सरकंडो की कलाम बना कर बेची | success story in hindi
6 वर्ष की उम्र से इंग्वार पढ़ाई भी करता और अपने पिता के साथ लकड़िया लाने जंगल भी चला जाता.
हलाकि यह उसके खेलने कूदने की उम्र थी लेकिन अपनी जिद के चलते उसे अब खेल कूद मे कोई रूचि नहीं रह गई थी. उसके मन मे बस अब एक ही धुन सवार थी वो धुन थी कुछ बड़ा करने की.
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अब जब भी इंग्वार अपने पिता के साथ जाता तो वहां से लोटते हुए रास्ते से लकड़ी के कुछ अच्छे सरकंडे चुन कर उठा लाता. उन सरकंडो की कलम बना कर स्कूल के बच्चो को बेच कर खुद का जेब खर्च निकाल लेता था .
यहीं से इंग्वार अपनी इस छोटी सी उम्र से ही पैसा कमाने के और भी बेहतर अवसर तलाशने लगा.
जब वो 7 साल का हुआ तो अपने पिता जी द्वारा बनाई तीन पहियों वाली लकड़ी की साईकल पर माचिस बेचने जाने लगा. इससे वह अपने स्कूल के खर्चे निकाल लेता.
माचिस बेचने का कम शुरू किया | success story in hindi
10 साल की उम्र मे उसके पिता ने उसे साईकल दे दी जिस पर वह अपने आस पास के गांव मे भी माचिस बेचने जाने लगा.
उसी दौरान उसे पता चला की अगर यह माचिस स्टॉकोम शहर के होलसेल से खरीद ली जाए तो काफ़ी सस्ती पड़ेगी तो इस तरह मैं अधिक माचिस लोगो को बेच पाउँगा यानी अधिक मुनाफा कमाऊंगा.
वही स्टोकोम शहर मे अपने एक रिश्तेदार की मदद से इंग्वार ने बहुत सारी माचिस मंगवा ली.
अब वह इन माचिसों को पहले से भी कुछ कम दाम मे बेचने लगा इस तरह इसमें भी इंग्वार को सब खर्चे निकालने के बाद पहले के मुकाबले काफ़ी पैसे बच जाते थे.
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लेकिन जब इंग्वार 12 साल का हुआ तो अपनी इस आय से बड़ी कक्षा का खर्च निकालना मुश्किल हो गया.
तब इंग्वार ने अपनी आय को और बढ़ाने के लिए कुछ डेकोरेशन वाले प्रोडक्ट भी खरीद कर बेचने शुरू कर दिये साथ ही साथ बोल पेन और पेन्सिल भी बेचने लगा.
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बोल पेन बेचने से जब अच्छा मुनाफा हुआ तो इंग्वार ने होलसेल से बहुत मात्रा मे बोल पेन खरीदना चाहा लेकिन उसके पास इतने पैसे नहीं थे की खरीद सके.
तब इंग्वार ने बैंक से 63$ डॉलर का लोन लें लिया यह उसकी लाइफ का पहला और आखरी लोन था.
उसने अपने सभी सामान को स्टॉक करने के लिए एक छोटी सी झोपड़ी बना ली.
साथ ही वो अपने पिता के साथ जंगल जाकर कंस्ट्रक्शन मे काम आने वाली लकड़ियां लाने मे भी मदद करता. लेकिन इन सब कामों के बावजूद उसने पढ़ना नहीं छोड़ा.
बिज़नस बढ़ाने की ज़िद्द छोड़ दी पढ़ाई | success story in hindi
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लेकिन 20 साल तक आते आते इंग्वार अब अपने बिज़नेस को आगे बढ़ाना चाहता था जिसके लिए उसको अपने बिज़नेस के लिए अधिक समय देना अनिवार्य था इसी के चलते इंग्वार ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी.
अभी तक इंग्वार साईकल पर घूम घूम कर माचिस और डेकोरेशन जैसे कई अन्य सामानो को बेचने से उसके पास काफ़ी अच्छी जानकारी इकठ्ठा हो गई थी.
जिसमे उसने यह समझा की, उसके आस पास के इलाकों मे लकड़ी की बहुत सी चीजे बनाई जाती हैं और कौन सा सामान कहा से और कितना सस्ता मिलेगा इन सब बातो का ज्ञान इंग्वार को अच्छे से हो गया था.
अपने जमा किये गए पैसो से अधिक सामान खरीदने तथा उन सामान को स्टोर करने के जगह अब नहीं थी.
जिसके चलते इंग्वार ने जमा किये पैसो से मेल ऑर्डर बिज़नेस करने का फैसला किया जिसमे सामान को स्टोर करने की जरुरत नहीं थी.
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इंग्वार ने अपने आस पास लकड़ी का समान बेचने वाले कुछ लोगो से बात की जिसमे उसने अच्छे से उनके रेट जैसी कई अन्य जानकारियां इकट्ठा कर लीं.
इसके बाद इंग्वार ने आसानी से मिलने वाले ऐसे ही सामानो के लिए कैटेलॉग (पर्चा) छपवा लिए.
जिसमे शुरुआत मे पिक्चर फ्रेम, पर्स, बोल पेन जैसी कई छोटी छोटी चीजे शामिल की.
उस जमाने मे इस प्रकार का बिज़नेस आज के online बिज़नेस जैसा ही चलता था.
जिसमे दूर दूर तक केवल कैटेलॉग मे छपी जानकारी के माध्यम से ऑर्डर लिया जाता था फिर उसे मेल ऑर्डर से भेज दिया जाता था, और पैसा भी डाक के जरिये भेज दिया जाता था.
इंग्वार बहुत काम मार्जन पर बिज़नेस करने मे विश्वास रखते थे जिससे की ऑर्डर ज्यादा आए और मैनुफेक्चर से ज़ादा माल खरीदने पर अधिक डिस्काउंट लें से. धीरे धीरे इंग्वार की इसी रणनीति से बिज़नेस अच्छा चलने लगा. इसके बाद इंग्वार के कैटेलॉग मे फर्नीचर जैसे बड़े सामान शामिल होने लगे और बोल पेन जैसे छोटे सामान लिस्ट से गायब होने लगे.
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business खूब चलने लगा | success story in hindi
पिता जी के साथ काम करते करते इंग्वार को लकड़ियों की अच्छी किस्म की पहचान थी. जिसके चलते वो अपने पिता की मदद से लकड़ियों को लोकल मेनुफेक्चरिंग फैक्ट्री मे दे कर फर्नीचर तैयार करवाने का ऑर्डर देता. फिर उन फर्नीचर को कम मार्जन पर बाजार मे बेच देता.
इंग्वार के फर्नीचर की गुणवत्ता को देखते हुए बाजार मे इंग्वार के फर्नीचर की डिमांड खूब बढ़ने लगी. माल अब बड़ी बड़ी गाड़ियों मे जाने लगा.
इसी के चलते अब कई लोकल फैक्ट्रिया सिर्फ इंग्वार के लिए काम करने लगी इंग्वार के फर्नीचर बनाने लगी.
फर्नीचर की डिमांड गिरने लगी | success story in hindi
इंग्वार के कम्पीटीटर्स को यह बात गवारा नहीं थी क्योंकि उनका मानना था की इंग्वार यह नीति हमारे रेट खराब कर रही हैं. जिसके चलते डिमांड कम हो गई हैं.
इंग्वार के बढ़ते इस फर्नीचर्स की डिमांड से बाकि के नमी गिरामी कंपनियों के फर्नीचर्स की डिमांड बाजार मे गिरने लगी जिससे कंपनियों को बहुत नुकसान होने लगा.
इसी के चलते the स्वीडिश फर्नीचर of वुड इंडस्ट्री ने इंग्वार की कम्पनी का बायकट कर दिया जिसके चलते सबने इंग्वार के लिए मल बनाने तथा बेचने से माना कर दिये.
लेकिन कहते हैँ ना किसी ईमानदार इंसान के लिए जब एक रास्ता बंद होता हैं तो भगवान उसके लिए कई और रास्ते खोल देता हैं.
इंग्वार ने हार नहीं मानी उसने एक पोलिश सप्लायर से माल लेना शुरू कर दिया. जो उसे पहले से भी कम दाम पर मिलता था क्योंकि वहाँ कच्चा माल और लेबर दोनों ही बहुत सस्ती मिलती थी.
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इसके बाद इस बन्दे ने दूसरे देशों से कई ऐसे सप्लायर ढूंढ़ लिए जहाँ वो बहुत सस्ते मे माल बनवा सकता था. इंग्वार ने अपने फर्नीचर्स ब्रैंड का नाम रखा IKEA फर्नीचर्स यहीं नाम हैं कम्पनी का.
अब इंग्वार ने उन कंपनियों की वाट लगा दी जो सोच रही थी की फेडरेशन द्वारा मेरे ब्रैंड को बाहर निकाले जाने में कम्पनी बंद हो जाएगी. देखते ही देखते सस्ते फर्नीचर की वजह से इंग्वार के फर्नीचर के डिमांड तेजी से बढ़ने लगी.
इसी बढ़ती मांग को लेकर इंग्वार ने 1953 मे अपना पहला शोरूम खोला. 60 के दशक तक आते आते कुछ और शहरो मे भी अपने शोरूम खोल दिये|
फर्नीचर को लेकर लोगो की जरूरतों को देखते हुए इंग्वार के मन मे सबसे पहली बार फोल्डिंग फर्नीचर का क्रिएटिव आइडिया आया.
जिसके चलते इंग्वार ने जब पहली बार बाजार मे ऐसा फर्नीचर उतारा तो यह फर्नीचर लोगो मे बहुत लोकप्रिय हुआ और जबर्दस्त डिमांड हुई.
इसके बाद इंग्वार का बिज़नेस और भी तेजी से आग की तरह फैला. देखते ही देखते इंग्वार ने अपना बिज़नेस कई और देशों मे चलाना शुरू किया. इस तरह पूरे यूरोप मे इंग्वार के फर्नीचर बहुत पसंद किये जाने लगे.
इसके बद ऐसे ही कम मार्जिन वाली स्ट्रेटीजी पर काम करते हुए लोगो की जरूरतों और डिमांड के अनुसार कई प्रकार के बेहतर किस्म के के फर्नीचर्स बनाने शुरू के दिये वो भी कम दाम पर |
कहा जाता हैं की जिस देश मे भी इंग्वार के फर्नीचर के शोरूम खुलते थे तो उस देश के लोकल फर्नीचर मार्किट की वाट लग जाती थी.
इसकी कारण यह था की इंग्वार के फर्नीचर्स अच्छी कुअलिटी के और कम दाम पर होते थे. फर्नीचर्स की quality डिजाइन और रेट के प्रति लोग बहुत आकर्षित होते थे और यह देखते ही देखते लोगों मे बहुत लोकप्रिय हो जाती थी |
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तो दोस्तों यह वही इंसान था जो एक समय मे डिस्लेक्सिया बीमारी का शिकार था जिसे ताने मिलते थे की तू जीवन मे कुछ नहीं कर पाएगा. लेकिन आज उस इंसान की जिद्द की चलते उसके कई देशों मे हज़ारो स्टोर, शोरूम हैं. और लाखो लोग इनके अंडर काम करते हैं एम्प्लॉई हैं.
इंग्वार 91 साल की उम्र मे स्वर्ग सिधार गए. लेकिन आज इनके बेटे और पोते इनके इस बिज़नेस को अच्छे से आगे बढा रहे हैं. इंग्वार के फर्नीचर्स IKEA के नाम से जाने जाते हैं.
IKEA अब भारत मे भी अपने शोरूम और manufacturing units खोलने वाली है वाली है | 2020 मे यह हैदराबाद ,मुंबई ,और गुरुग्राम जैसे बड़े शहर मे अपने शोरूम खोल चुका है | अब तक यह कंपनी भारत मे 800 करोड़ की इनवेस्टमेंट कर चुकी है |
अब तक 43 देशों के अंदर IKEA के स्टोर खुल चुके है |
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Sach me Success ki ye story muje bhut pasnd aai kafi achhi jankari OR motivation story hai jisse kafi log kafi kuch Sikh skte hai
Thank u ji
nice really motivative article keep sharing
success story in hindi
Thank u
The blog was really good. Thank you for sharing your Knowledge…
Youtube Channel Rj Deepika
https://www.youtube.com/watch?v=MB8cskYntFQ
बहुत बहुत शुक्रिया दीपिका जी. हमने आपकी videos देखी. सच्च मे बहुत अच्छी बातें बताती हो. Great and keepitup
Very motivational stories. Keep sharing.
good
Very nice and motivational story, Really you are doing a such great work sir to spread positivity around us.