एक बार एक बहुत ज्ञानी बौद्ध भिक्षु हुआ करते थे. उन्होंने अपने जीवन मे क़ई सारे बौद्ध भिक्षुओ को ज्ञान प्रदान किया, जीवन जीना सिखाया.

एक समय ऐसा आया की वें काफ़ी बूढ़े हों चुके थे. लेकिन उन्होंने अपनी योग विद्या से क़ई तरह की दिव्य विद्याए भी अर्जित की हुई थी जिनमे से एक था भविष्य देख पाना.

उनके आश्रम मे अभी भी कुछ शिष्य थे जिनमे से एक शिष्य उनका सबसे प्रिय था

क्योंकि उसमे वो काबिलियत थी की वो आगे चल कर उनके जाने के बाद इस बड़े आश्रम का कार्य भार संभाल सके.उस शिष्य का नाम था अष्टम.

एक बार वो बूढ़े बौद्ध भिक्षु गहरी ध्यान मुद्रा मे लीन थे तो उन्होंने देखा की की आज से 10 दिन बाद उनके सबसे काबिल शिष्य अष्टम की मृत्यु हों जाएगी.

यह देख भिक्षु जी अपनी ध्यान मुद्रा से बाहर आगए. वो बड़े घबराए लग रहे थे.

मृत्यु किस वजह से होगी ये तो पता लगा पाना तो सम्भव नहीं था पर वह अष्टम को बचा कर प्रकृति का नियम भी नहीं तोडना चाहते थे.

इस वजह से वें बहुत चिंतित रहने लगे. खूब विचार करने के बाद भिक्षु ने सोचा की अष्टम के जीवन मे अब जितने भी दिन शेष बचे है वो अपने परिवार वालों के साथ बिताए,

आखिर कार देर रात उन्होंने अष्टम को अपने पास बुलाया और कहा की अष्टम तुम 9 दिनों के लिये अपने घर हों आओ.

ध्यान रहे ठीक 10 वें दिन आश्रम वापिस आजाना.यह सुन अष्टम बहुत खुश हुआ.

अष्टम के मन मे ये सवाल भी आया की आखिर गुरु जी मुझे अचानक घर जाने को क्यों बोल रहे है.

लेकिन उसने गुरु जी से सवाल करना उचित नहीं समझा, इसलिए उनके आदेश का पालन करते हुए

सुबह सूर्य निकलने से पहले ही गुरु जी के पैर छू कर विदा लिया और घर की तरफ निकल गया.

कुछ दूर चलने के बाद अष्टम को बहुत प्यास लगी उसकी नजर एक बड़े से मिट्टी के ढेर पर पड़ी, तभी अचानक 

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