एक महात्मा अपने 5 शिस्यों के साथ पैदल यात्रा कर रहे थे . बहुत लम्बा सफर तय करने के बाद महात्मा - अपने शिष्यों सहित थकान मिटाने के लिये एक पेड़ की छाँव तले बैठ गए.
उनमे से एक शिष्य ने बड़ी ही जिज्ञासा वश महात्मा जी से पूछा की,- गुरु जी! क्या ज्ञान को बल और हिंसा पूर्वक भी प्राप्त किया जा सकता है?
महात्मा जी उत्तर देते हुए बोले - ज्ञान को कभी भी बल पूर्वक प्राप्त नहीं किया जा सकता. फिर चाहे वो ज्ञान हम प्रकृति से प्राप्त कर रहे हो या मनुष्य से.
कोई गुरु अपने शिष्य को ज्ञान या कोई भी अनमोल विद्या देने के लिये तब तक तैयार नहीं होता ज़ब तक गुरु उस शिष्य की, विनम्रता, शिस्टाचार, बोल बाणी, चरित्र, से संतुष्ट नहीं हो जाता.
ज्ञान प्राप्त करने के लिये मनुष्य मे प्रेम, समर्पण की भावना ,जिज्ञासा व इच्छाशक्ति का होना अती आवश्यक है.चलो मै आपको इससे सम्बंधित एक बहुत सच्ची घटना बताता हूं.
एक बार राजा के एक छोटे से मंत्री ने एक गरीब कुम्हार को सोने जैसे बर्तन मे खाना खाते देखा तो वह सोचने लगा की
इस निर्धन दरिद्र के पास ये स्वर्ण की भाती चमकता हुआ बर्तन कैसे. चलो पता लगाए की ये बर्तन क्या वाकई सोना है या कुछ और.?!
पता लगाने मंत्री कुम्हार के पास गया और उससे वो बर्तन छीन लिया, हाथ मे पकड़ कर बर्तन को ज़ब ध्यान से देखा तो वो वाकई सोने का ही बर्तन था.