दोस्तो आज की यह कहानी एक सच्ची घटना पर आधारित है जो की एक साधू के इर्द गिर्द घूमती है | इस कहानी से आप यह समझ जाओगे की कर्म कभी पीछा नहीं छोड़ते |

एक बार मौजी साधू ऐसे ही अपनी धुन मे मगन एक दिन दिल्ली शहर पहुँच जाते है |

शाम का समय था , और काले बादलों  ने भी आसमान को ऐसा घेरा हुआ था की बस अभी मानो सारा पानी  उसी शहर मे बरस जाएगा | उधर साधू जी गुनगुनाते हुए अपनी मस्ती मे चले आरहे थे |

इतने मे ज़ोर से बादलों के गरजने की आवाज़ आनी  शुरू हो जाती है फिर कुछ ही देर बाद ठंडी हवाए चलनी शुरू हो जाती है

जिस वजह से मौसम काफी  ठंडा हो जाता है | फिर कुछ ही देर बाद बारिश की बूंदे ज़मीन पर अपनी दस्तका  दे देती है |

इधर मौजी साधू  एक बाज़ार मे पहुँच जाते है ,

बाज़ार मे सभी लोग बारिश की बूंदों से खुद को  बचते बचाते  आस पास की दुकानों मे शरण ले लेते है और बारिश के निकल जाने का इंतज़ार करते है |

उधर हमारे मौजी साधू   जी  अपनी ही धुन मे मगन खुले आसमान के नीचे हाथ फैलाए बारिश की बूंदों का आनंद उठा रहे होते है

वहाँ खाने पीने की इतनी सारी दुकाने थी की वहाँ से बन रहे  स्वादिस्ट पकवानों की खुशबू मौजी साधू के नाक से  होती हुई पेट तक पहुँच जाती है

मौजी साधू  की भूख इस कदर बाहर आती  है मानो उन पकवानो मे डूब ही जाए |

पर साधू के पास पैसे तो थे नहीं,  इसलिए एक टक टकी  लगाए  सामने की दुकान पर पकवानो की तरफ देखें जा  रहे  थे..इतने मे बारिश  भी थम जाती है

उधर जलेबी बना रहे आदमी की नज़र भी उस साधू पर जाती है  |तभी अचानक उस आदमी ने 

चलिये नीचे बटन को दबा कर जानते है की आगे क्या हुआ क्या मोजि साधू ने चोरी की या दुकानदार ने उसको मारा आखिर किस कर्म की सजा मिली और क्यो