hindi kahani moral stories in hindi | बुद्धा और मोहन दास (शिक्षाप्रद कहानियाँ) – दोस्तों स्वागत है आपका ज्ञान से भरी कहानियों की इस रोचक दुनिया मे। दोस्तों जीवन मे कहानियों का विशेस महत्तव होता है | क्योकि इन कहानियो के माध्यम से हमे बहुत कुछ सीखने को मिलता है | इन कहानियों के माध्यम से आपको ज़रूरी ज्ञान हासिल होंगे जो आपको आपकी लाइफ मे बहुत काम आएंगे | यहाँ पर बताई गई हर कहानी से आपको एक नई सीख मिलेगी जो आपके जीवन मे बहुत काम आएगी | हर कहानी मे कुछ न कुछ संदेश और सीख (moral )छुपी हुई है | तो ऐसी कहानियो को ज़रूर पढ़े और अपने दोस्तो और परिवारों मे भी ज़रूर शेयर करे |
तो चलिये शुरू करते है हमारी आज की कहानी
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मोहन दास की असीमित इच्छाए –
moral stories in hindi kahani |भगवान बुद्धा और मोहन दास
काशी के एक गाँव मे मोहन दास नाम का एक 10 साल का बालक अपने पिता के साथ रहता था | जिसका जन्म एक बेहद गरीब परिवार मे हुआ था | मोहन दास जब 5 साल का था तब उसकी माता किसी गंभीर बीमारी के चलते पैसो की कमी और आस पास कोई चिक्त्त्सा केंद्र न होने की वजह से चल बसी थी |
मोहन दास के पिता जी ठाकुरो के खेतों मे मज़दूरी किया करते थे जिससे मिलने वाले पैसो से मुश्किल से ही घर का खर्च चल पाता था |you read moral stories in hindi kahani |भगवान बुद्धा और मोहन दास
उन समय मे छोटे छोटे गुरुकुल हुआ करते थे जहां पर क्षिशा का ज्ञान दिया जाता था जिसकी मासिक फीस 100 रुपए थी | मोहन दास के पिता जी जैसे तैसे मज़दूरी करके रोज़ का मात्र 20 रुपया ही कमा पाते थे | यानी की महीने का 600 रुपया| जिसमे से 100 रुपए मोहनदास की फीस मे चले जाते थे और बाकी के पैसो से घर का गुज़ारा होता था |
मोहन दास पढ़ाई मे अच्छा था और साथ मे बड़ा ही जिज्ञासु भी था | गुरुकुल मे मोहन दस बहुत माँ लगा कर पढ़ता और अपने मास्टर से खूब सारे सवाल करता मास्टर जी भी मोहन दास के सभी सवालो जवाब दे देते इस तरह मोहन दास के मन मे चल रहे सवालो की जिज्ञासा शांत हो जाती थी |
गुरुकुल से छुट्टी होते ही वह तुरंत अपने पिता के पास उनके काम मे हाथ बटाने के लिए पहुँच जाता |
धीरे धीरे ऐसे ही समय बीतता गया | ठीक 6 साल बाद मोहन दास और उसकी पिता की ज़िंदगी मे फिर से दुखो ने दस्तक दे दी |
मोहन दास जब 16 साल का हुआ तब उसके पिता बीमार पड़ने लगे थे अब उनमे मज़दूरी करने की ताकत नहीं थी | पैसे न होने की वजह से मोहन दास का गुरुकुल भी छूट चुका था | इस तरह मोहन दास ने 7 साल की उम्र से 16 साल की उम्र तक ही गुरुकुल से शिक्षा हासिल कर पाता है |
मोहन दास पिता को लेकर बहुत परेशान था क्योकि मोहन दास के पास , अपने पिता का इलाज़ कराने के लिए अब पैसे नहीं थे |
जैसा की मोहन दास बड़ा ही जिज्ञासु बालक था जिस वजह से वह किसी भी अमीर इंसान को देखता तो अपनी ज़िंदगी के बारे सोचने लग जाता | इन सब हालातो के चलते मोहन दास के दिमाग पर ऐसा असर हुआ की वह मज़दूरी करने लगा | मोहन दास वो हर संभव प्रयास करने लगा जिससे उसके पास धन आए और वो अपने पिता की बीमारी का उपचार करवा सके | read moral stories in hindi kahani |भगवान बुद्धा और मोहन दास
मोहन दास ने दिन रात मेहनत की और अपने पिता का उपचार करवाया | मोहन दास के पिता की हालत सुधारने लगी और देखते ही देखते पिता जी स्वस्थ हो गए | पिता जी मोहन दास की मेहनत से बहुत खुश थे | मोहन दास के पास अब इतना धन हो चुका था की मोहन दास ने एक खेत और दो गाय कहरीद ली थी |
जिन हालातो के चलते मोहनदास ने यह कदम उठाए थे आज उसी की बदौलत मोहन दास के पास खूब धन था जिससे उसकी ज़िंदगी की लगभग सब जरूरते पूरी हो जाती थी | read continue moral stories in hindi kahani |भगवान बुद्धा और मोहन दास
मोहन दास जिज्ञासु होने की वजह से बड़े बड़े धनवान लोगो की ज़िंदगी (life style) के बारे जानने लगा जिसका असर मोहन दास के दिमाग पर यह हुआ – उसकी मानसिकता अब यह बन चुकी थी की अब धन ही सब कुछ है धन से कुछ भी खरीदा जा सकता है | मेरे पास जितना अधिक धन होगा मैं उतना ही खुश रहूँगा और मेरे पिता भी | अपनी इसी इच्छा को पूरा करने के लिए मोहन दास ने दूध का व्यापार शुरू कर दिया |
यहीं से शुरू हुआ सफर मोहन दास के धनवान बनने का |अब देखते ही देखते उसकी जरूरते इच्छाओ मे बदलने लगी| अपनी इच्छाओ को पूरा करने के लिए मोहन दास धन का सहारा लेता |
कुछ समय बाद मोहन दास के पिता अपनी इच्छा जताते हुए बोले – बेटा अब तुम जल्दी ही शादी कर लो , मेरी जिंदगी का अब कुछ पीटीए नहीं कब क्या हो जाए | मोहन दास अपने पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए शादी के लिए मान जाता है , मोहन दास का विवाह हो जाता है |
मोहन दास खुशी पाने के लिए एशों आराम के सभी भोग विलास समान खरीद लेता एक आलीशान हवेली भी बनवाई
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अब एक दिन ऐसा भी आया की सब कुछ होने के बावजूद भी मोहन दास दुखी सा रहता था क्योकिउस का मन सन्तुस्ट नहीं होता था | इधर एक तरफ उसकी इच्छाए जो खतम होने के नाम ही नहीं लेती थी |अब मोहन दास का मन कहीं भी नहीं लगता था |वह परेशान रहने लगा | you are reading moral stories in hindi kahani
जब से मोहन ने दास अपनी तमाम इच्छाओ को पूरा करने सफर शुरू किया था तब से मोहन दास सुख चैन की की नींद नहीं सो पाया था |
मोहन दास की हालत पागलों जैसी होने लगी थी उसे संतुस्टी नहीं मिल रही थी उसे समझ नहीं आरहा था की क्या करे |
इधर भगवान बुद्ध नेपाल से बौद्ध धर्म का प्रचार करते हुए भारत मे काशी की तरफ आरहे थे | भगवान बुद्ध काशी के एक गाँव मे रुक हुए थे | मोहन दास को इस बात का पाता चलते ही वह भगवान बुद्ध जी के पास पहुँच जाता है | भगवान बुद्ध अपने अनुयाइयों को प्रवचन सुना रहे थे | इतने मे मोहन दास बुद्ध जी के पास रोते हुए पहुंचा ओर बोला मैं इस ज़िंदगी मे बहुत परेशान हो गया हु ।
हे बुद्ध ! मैंने जीवन मे खूब धन कमाया ताकि अपने सुकून के लिए कुछ भी खरीद सकूँ | मुसीबत के समय मेरे यह धन मेरे बहुत कम आए | इनसे मैंने अपनी हर सुख सुविधा की वस्तुएं खरीदी जिनसे मुझे बहुत खुशी मिली |
तो ऐसी क्या वजह की जो मेरा मन संतुस्त नहीं हो रहा ?
आज मेरे पास सब कुछ है जिससे मैं खुश तो रहता हूँ लेकिन अधिक समय तक नहीं । सब कुछ होने के बाद भी मुझे सुकून क्यों नहीं मिल रहा मन को शांति और संतुस्टी नहीं मिल रही जो मिलनी चाहिए ? किरपा मेरी इस समस्स्या का समाधान करें अन्यथा मैं खुद को खत्म कर दूँगा |moral stories in hindi kahani |भगवान बुद्धा और मोहन दास
तब भगवान बुद्ध मुस्कराए और कहा ! तुम्हारे दुख का कारण तुम्हारी असीमित इच्छाए है | धन दौलत से तुम लंबे समय की खुशिया तो खरीद सकते हो लेकिन सुकून की ज़िंदगी नहीं | धन से इंसान सुकून का एक पल भी नहीं खरीद सकता है |
धन से तुम खुशियों का महल , मखमल के गद्दे और सोने चाँदी से बनी चार पाई तो खरीद लोगे लेकिन ! सुकून की नींद कभी नहीं खरीद सकते | क्योकि यह धन से नहीं ज्ञान से खरीदे जाते है |
सुकून खुद तुम्हारे अंदर मौजूद है , जो की , एक असीमित इच्छाओ वाले पहाड़ के नीचे दबा हुआ है | जिस दिन तुम अपनी असीमित इच्छाओ के विचारो को एक सीमित दायरे मे कैद कर लोगे तो उसी दिन से असीमित इच्छाओ वाले पहाड़ के नीचे दबा हुआ सुख और सुकून आज़ाद हो कर तुम्हारे जीवन मे बस जाएंगे |
बुद्ध की इन बातों का मोहन के मन पर सकारात्मक असर हुआ | मानो मोहन के सर से कोई बोझ उतर गया हो | अब मोहन के अंदर खुद को सुखी करने की कोई इच्छा शेस नहीं बची थी वो समझ चुका था की मेरी परेशानी का कारण मेरी यह असीमित इच्छाए ही है | जिस वजह से मैं सुख की नींद कभी नहीं सो पाया | कभी भी सुख के फल का स्वाद नहीं चख पाया था | अब मुझे कुछ नहीं चाहिए |
कुछ दिन बाद मोहन ने खुद यह अनुभव किया की अब सच्च मे कितना सुकून है मेरी जिंदगी मे | शुरू से मैं मूर्ख , सुकून पाने के लिए खुद पर धन दौलत लुटाता रहा बस धन कमाने के पीछे भागता रहा , जीवन के इस सत्य से अंजान रहा की सुकून तो मेरे अंदर ही था जो असीमित इच्छाओ के अंधेरे मे कहीं खो गया था |
और आज मन से मैं बहुत हल्का महसूस कर रहा हूँ | आज जा कर मेरे मन को सुख की संतुस्टी प्राप्त हुई है | जय हो महात्मा बुद्ध की जिंहिने मुझे यह ज्ञान दिया | अन्यथा मैं यूं ही सारी ज़िंदगी सुख चैन की तलाश मे भटकता रहता और अंततः मृत्यू को प्राप्त हो जाता |moral stories in hindi kahani |भगवान बुद्धा और मोहन दास
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तो दोस्तों इस कहानी से हमे यह सीख लेनी चाहिए की अपनी इच्छाओ की सीमित ही रखे तो ही जीवन मे सुख का अनाद ले सकते है |
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