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gautam buddha story | gautam buddha history

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gautam buddha story | gautam buddha history (गौतम बुद्ध स्टोरी | गौतम बुद्ध हिस्टरी) – हमारा भारत पुरातन समय से ही हज़ारो महान ,परम तेजस्स्वि , गुरुओं ,पीरो ,फकीरो  की धरती रहा है और आज भी है |

 

 

हमारे भारत की धरती उन महान महानपुरुषों, क्रांतिकारियों , और वीरांगनाओं की धरती रहा है जिन्होने भारत की इस महान धरती पर  जन्म लिया और  भारत की गरिमा तथा सम्मान की रक्षा के लिए खुद को बलिदान कर दिया  |

 

 

मुझे अपने भारत के इस  गौरवशाली इतिहास पर गर्व है | खुद को एक भारतीय बता कर मैं बड़ा ही गर्व महसूस करता हूँ |

 

मुझे खुद पर गर्व होता है खुद को भाग्यशालि समझता हूँ  की मेरा  जन्म  भारत मे हुआ है |

 

दुनिया मे शायद ही  कोई इंसान ऐसा होगा जो महात्मा बुद्ध (gautam buddha) के बारे मे या उनके नाम से अपरिचित होगा |

 

 

क्योंकि आज के दौर मे महात्मा बुद्ध (gautam buddha)  सिर्फ एक नाम नहीं बल्कि खुद  मे बहुत बड़ा इंसानियत का पाठ पढ़ाने वाला ऐसा धर्म है ,जिससे हमें न सिर्फ महात्मा बुद्ध के जीवन के अनमोल विचारों का ज्ञान मिलता है बल्कि उनके जीवन यात्रा से मिलने वाले अद्भुत ज्ञान को जान कर और पढ़ कर भी जीवन धन्य हो जाता है |

 

 

महात्मा बुद्ध (gautam buddha) गुरु नानक देव जी या साई बाबा की तरह ईश्वर का अवतार तो नहीं थे लेकिन उन्होने अपने जीवन मे एक ऐसे ज्ञान को प्राप्त  करने की दृढ़ इच्छा रखी जिसे पाकर इंसान ईश्वर का अवतार ही कहलाता है इस ज्ञान को “परम ब्रम्ह ज्ञान” कहते है” |

 

 

महात्मा बुद्ध (gautam buddha) जी ने इस “परम ब्रम्ह ज्ञान”  को   प्राप्त  करने के लिए किस मार्ग का चुनाव किया ?जीवन मे कितने कस्ट सहे ?  क्या होता है यह “परम ब्रम्ह ज्ञान” ? यह ज्ञान मिलने के बाद क्या होता हैं ?इन सब के बारे मे आपको आज इस आर्टिकल मे बताया जाएगा |

 

  तो आप भी महात्मा बुद्ध (gautam buddha) के जीवन की इस अद्भुत गाथा को पढ़ कर अपना जीवन सफल बना सकते है |gautam buddha story

 

ऐसे ही इन महान पुरुषों, मे एक भगवान गौतम बुद्ध (gautam buddha) थे |  जिनके उपदेश औए कहानियाँ दुनिया भर मे प्रसिद्ध है | दुनिया भर मे गौतम बुद्ध (gautam buddha) धर्म अनुयाइ है |

 

 

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चलिये भगवान गौतम बुद्ध के जीवन पर एक नज़र डालते है | 

 

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गौतम बुद्ध  की जीवनी और इतिहास Gautam buddha story | Gautam buddha history

 

गोतम बुद्ध का जीवन परिचय | biography of gautam buddha

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गौतम बुद्ध का जन्म (birth of gautam buddha) 563 ईसा पूर्व मे   यानि आज से लगभग 2 हज़ार 583 साल पहले  नेपाल देश के लुंबनी शहर मे हुआ था | उन समय मे नेपाल देश  भारत का हिस्सा हुआ करता था |

इसलिए यह माना जाता है की भगवान गौतम बुद्ध (gautam buddha) का  जन्म भारत मे ही हुआ  था | गौतम बुद्ध (gautam buddha)  के पिता का नाम शुद्धोदन था जो की नेपाल देश के एक महान शासक राजा थे |

शुद्धोदन  एक  कुशल राजा थे | अपनी प्रजा का खास ध्यान रखते थे | गौतम बुद्ध (gautam buddha)  की माता का  नाम  माया देवी  था |gautam buddha story

 

गौतम बुद्ध (gautam buddha) के बचपन का नाम सिद्धार्थ था | इनका  यह नाम इनके पिता शुद्धोदन ने रखा था | सिद्धार्थ शब्द का मतलब  होता है सिद्धि  का अर्थ जानने वाला अथवा सिद्धि के लिए जन्म बालक |

गौतम बुद्ध (gautam buddha) के जन्म के सातवें दिन बाद ही उनकी माता माया देवी का देहांत हो गया था | माँ के देहांत के बाद गौतम बुद्ध (gautam buddha) का लालन पालन उनकी मौसी गौतमी ने किया | 

जन्म से ही गौतम बुद्ध के मुख पर तेज़ था | सिद्धार्थ बचपन से ही बहुत शील और शांत स्वभाव वाले थे |

 

सिद्धार्थ के पिता शुद्धोदन सिद्धार्थ से बहुत प्रेम करते थे |  वह अपने पुत्र को किसी भी प्रकार की दुख तकलीफ नहीं होने देते थे और न ही किसी प्रकार की कोई कमी महसूस होने देते थे |

इस वजह से उन्होने राज महल मे ही हर प्रकार भोग विलास जैसी सभी चीज़ों का प्रबंध कर रखा था |

 

जब सिद्धार्थ कुछ बड़े हुए तब उनको उनकी शिक्षा के लिए गुरु विश्वामित्र के पास भेजा गया | सिद्धार्थ ने अपनी शिक्षा और अस्त्र शस्त्र तथा  घुड़ सवारी जैसी सभी विद्याएँ गुरु विश्वामित्र के पास पूरी की |

जब सिद्धार्थ अपनी  शिक्षा पूरी कर राज महल वापिस लौटे तो  उनके पिता ने उनका बहुत धूम  धाम से  स्वागत किया|gautam buddha story

 

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दूसरों के प्रति दया भाव –

सिद्धार्थ (gautam buddha) स्वभाव से बहुत दयालु  और शांत भाव वाले थे | उनसे किसी का दुख नहीं देखा जाता था | इनके दयाभव का  एक उदाहरण यहाँ से निकलती है की जब  राज्य मे महाराज शुद्धोदन द्वारा घुड़ सवारी की प्रतियोगिता करवाई जाती थी तब सिद्धार्थ भी इस प्रतियोगिता मे बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते थे |

 

एक बार ऐसे ही घुड़ सवारी की प्रतियोगिता मे घुड़ सवारी  करते हुए सिद्धार्थ (gautam buddha) की नज़र अचानक अपने  घोड़े के मुह की तरफ जाती है  जिसके मुह से काफी झाग निकलता देख सिद्धार्थ (gautam buddha) हार  जीत की परवाह किए बिना अपना घोड़ा बीच प्रतियोगिता मे ही रोक देते है

 

सिद्धार्थ (gautam buddha) समझ जाते है की घोड़ा बहुत प्यासा है वह तुरंत  घोड़े के लिए ताज़े पानी का बंदोबस्त करवाते है |  इस बीच सिधार्थ घुड़ सवारी की प्रतियोगिता हार  जाते है | लेकिन इसका सिद्धार्थ (gautam buddha) को कोई गम नहीं होता बल्कि उनको इस बात की खुशी मिलती है  की मैंने घोड़े की प्यास बुझाई | 

 

 

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कैसे पड़ा नाम ? सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध या महात्मा बुद्ध |कैसे और कहाँ मिला गौतम बुद्ध (gautam buddha) को ज्ञान ? गौतम बुद्ध को ज्ञान मिलने की पूरी कहानी |

 

 

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“गौतम” नाम उनके कुल के गौत्र  का नाम है | इसलिए उन्हे गौतम भी कहा जाता था | कुछ समय बाद सिद्धार्थ (gautam buddha) का विवाह राजकुमारी यशोधरा के साथ हो जाता है | उनके एक पुत्र का  जन्म होता है ,जिसका  नाम राहुल  होता है |

 

पुत्र के जन्म के बाद सिद्धार्थ (gautam buddha) यानि गौतम बुद्ध (gautam buddha) को बहुत इच्छा हुई के वह अपने पूरे नगर का मुआइना करे । लोगो से मिले | जीवन के सत्य को जानने को लेकर भी उनके मन मे बहुत से सवाल आते थे । जिसका जवाब वो खुद से ही खोजना चाहते थे |

अपनी यह इच्छा लिए गौतम बुद्ध (gautam buddha)रात के समय घुड़ शाला की ओर जाते है  | वहाँ से वह अपने घोड़े को घुड़ शाला से

 

बाहर निकालते है,  इतने मे एक मंत्री उनको देख लेता और इसकी सूचना तुरंत महाराज को दी जाती है | यह सुन महाराज तुरंत आदेश करते है की राजकुमार गौतम बुद्ध (gautam buddha) को इस समय बाहर जाने से रोका जाए |

 

महाराज की आज्ञा का पालन करते हुए सिपाही राजकुमार को बाहर जाने से रोकते है और महाराज ने अति शीघ्र आपको अपने कक्ष  मे बुलवाया है ऐसा बोल सिपाही वहाँ से चले जाते है |

राजकुमार गौतम बुद्ध (gautam buddha) अपने पिता के कक्ष मे पहुंचता है और खुद को रोके जाने का सवाल पूछता है |

तब राजा शुद्धोधन  ने बड़ी चतुराई से झूठ बोलते हुए कहा की  पुत्र आज के दिन रात को बाहर जाना सही नहीं माना जाता है  हमरे राज गुरु ने भी तुम्हारी कुंडली देखि है पुत्र उन्होने बताया की दो दिन तक सिद्धार्थ का  महल से बाहर जाना वर्जित है |इसी वजह से मै आपको बाहर जाने से रोक रहा हु |तुम कल प्रातः कल ही चले जाना | 

(राजा शुद्धोधन) पिता जी की यह बात सुन राजकुमार गौतम बुद्ध (gautam buddha)  अपने कक्ष मे सोने के लिए चले जाते है |

 

 

चलिये यह अब जानते है की  आखिर राजा ने पुत्र से झूठ क्यों बोला ? 

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झूठ बोलने का मुखी उद्देश्य फिलहाल राजकुमार गौतम बुद्ध (gautam buddha) को बाहर जाने से रोकना था इसलिए राजा ने झूठ का सहारा लिया |

अब दूसरा सवाल यह की – फिर इसकी असली वजह क्या है जो ! राजा सिद्धार्थ को   बाहर जाने से रोक रहे है ?

 

तो इसका जवाब  राजा का अपने पुत्र के प्रति प्यार है | जो की राजा की सबसे बड़ी वजह है |

राजा नहीं चाहते थे की सिद्धार्थ (gautam buddha) किसी  बहुत ही वृद्ध और लाचार महिला या पुरुस को देखे , या फिर किसी गरीबी या बीमारी से लाचार किसी इंसान को देखे जिससे सिद्धार्थ (gautam buddha) के मन मे विकारता पैदा हो दुःख हो  | राजा के मन मे डर था की इससे प्रभावित होकर सिद्धार्थ (gautam buddha) कहीं सनन्यासी न बन जाए | क्योकि वह सिद्धार्थ (gautam buddha) को एक राजा के रूप मे देखना चाहते थे |इसी वजह से पिता शुद्धोधन ने  ने पुत्र  सिद्धार्थ के लिए महल मे ही सभी भोग विलास के साधनो का प्रबंध  कर रखा था , 

 

 

अब रही बात ये की  ! राजा ने झूठ बोलते हुए आखिर दो दिन बाद ही महल से बाहर जा सकने  की बात क्यों कही?

तो इसकी मुख्य वजह ये थे की ! ताकि महाराज शुद्धोधन को दो दिन का समय मिल जाए वो  इन दो दिनो मे अपने पूरे नगर से हर उस इंसान को कुछ दिनों के लिए दूसरे नगर मे भेज सके जो बीमारी से ग्रस्त हो , जो बहुत वृद्ध हो , बहुत लाचार हो , |ताकि जब सिद्धार्थ  नगर मे भ्रमण करे तो उसे कोई भी ऐसा  व्यक्ति न दिखाई दे |

 

 

 पर वो  कहते है न की! होनी को कौन टाल सकता है | जो होना है वो होकर ही रहेगा |

शायद ईश्वर को कुछ और ही  मंजूर था

 

 

इधर पुत्र सिद्धार्थ (gautam buddha) अपने पिता की  इन सभी बातों  से अंजान !  पिता की बताई बातों से संतुस्त नहीं था | जैसे तैसे दो दिन पूरे हो जाते हैं | तीसरे दिन सिद्धार्थ (gautam buddha) के नगर मे भ्रमण करने की  तैयारी की जाती है रथ सजाया जाता है |

 

गौतम बुद्ध (gautam buddha) पूरे नगर मे घूमते है और लोगो से मिलते है, गौतम बुद्ध (gautam buddha) बहुत खुश होते है | राजकुमार को नगर आया देख वहाँ के लोग बहुत खुश होते है , राजकुमार को देखने और स्वागत के लिए वहाँ लोगो की भीड़ उमड़ पड़ती है |

 

सिद्धार्थ (gautam buddha) की इच्छा दूसरे नगर मे जाने की भी  होती है | सिद्धार्थ (gautam buddha) सभी सैनिको सहित दूसरे नगर पहुंच जाते है |

 

नगर वासियों को  जैसे  ही पता चलता है की राजकुमार सिद्धार्थ (gautam buddha)  नगर वासियों से मिलने आरहे है| वहाँ के लोगो की खुशी का ठिकाना नहीं रहता , सब अपना अपना काम छोड़ राजकुमार को देखने और उनके स्वागत के लिए आजाते है |

 

इसी के साथ पहले वाले नगर से भेजे गए सभी बीमार , वृद्ध , और लाचार लोग भी वहाँ राजकुमार को देखने के लिए जमा हो जाते है |

 

लोगो की भीड़ मे वह लोग इस कदर मिल जाते हैं जिस वजह से राजकुमार सिद्धार्थ की  नजर आसानी से उन लोगो पर जाती हैं.   उन लोगो को देखते ही सिद्धार्थ के चेहरे का रंग मानो उड़ ही जाता हैं. सिद्धार्थ के मन मे अब हज़ारो सवाल चीख चीख कर यह पूछ रहे थे की in लोगो की ऐसी दशा क्यों हैं यह लोग इस तरह से क्यों दिखाई दे रहे हैं. इनका शरीर ऐसा क्यों हैं.

 

राजकुमार सिद्धार्थ अपने इन सवालों का जवाब पाने के लिए रथ से नीचे उतर जाते हैं और उन लोगो की तरफ धीरे धीरे अपने कदम आगे बढ़ाते हैं.

इधर सैनिक लोगो की भीड़ को हटाती हैं ताकि राकुमार को कोई चोट ना पहुंचे.

 

राजकुमार उन वृद्ध लोगो के पास पहुँचते हैं तो देखते हैं की  इन के मुंह मे दाँत ही नहीं हैं उसका मुंह पूरा चिपका हुआ हैं और आंखे अंदर घुसी हुई हैं चेहरे पर  बहुत सी झुर्रिया हैं,सफ़ेद बाल, 

एक वृद्ध तो ठीक से खड़ा भी नहीं हो पा रहा था वो राजकुमार को हाथ जोड़े खड़ा था  और उसके हाथ कांप रहे थे.  एक वृद्ध औरत एक लाठी के सहारे खड़ी हैं. और उसकी शरीर कांप रही हैं. पेट पूरा अंदर घुसा हुआ हैं.

इतना सब देख राकुमार अंदर से बेहद दुखी अनुभव करते हैं फिर राजकुमार  उन वृद्ध लोगो की तरफ इशारा करते हुए  अपने मंत्री से पूछते हैं की इनकी ऐसी दशा क्यों हैं.

 

तब मंत्री बोलते हैं – राजकुमार ! यह लोग वृद्ध हो चुके हैं. इस लिए इनकी हालत ऐसी ही हैं.

इतना सुनते ही राजकुमार तुरंत दूसरा सवाल पूछते हैं –  “वृद्ध”   यह वृद्ध क्या होता हैं.?

मंत्री जी रकुमार के सवाल का जवाब देते हुए  बोलते है – वृद्ध पन (बुढ़ापा) इंसान के जीवन की वह अवस्था होती है जिस अवस्था पर आकार इंसान की हालत इन लोगों जैसी ही हो जाती है जिसमे शरीर का बल पहले के मुताबिक बहुत कम हो जाता है

 

जैसे जैसे इंसान वृधापन की चरम सीमा तक पहुंचता जाता है उसका शरीर उतना ही दुर्बल और लाचार होता चला जाता है | जिसके चलते ऐसा इंसान अनेक बीमारियों से ग्रस्त होना शुरू हो जाता है |

 

हनुमान vs बाली धार्मिक कथा 

 

उम्र के ऐसे पड़ाव पर जब इंसान पहुंचता है तो उसे वृद्ध (बूढ़ा) कहा जाता है |अक्सर इंसान को वृद्धा अवस्था मे एसी शारीरक तकलीफ़ों से होकर गुजरना पड़ता है |

 

इतना सुन राजकुमार सिधार्थ तरंत घबराहट भरे स्वर मे अगला सवाल मंत्री जी से पूछते है – तो क्या मेरा शरीर भी एक दिन ऐसा ही हो जाएगा ? क्या मुझे भी एसी शारीरिक तकलीफ़ों को भोगना पड़ेगा ?

जब राजकुमार ने मंत्री से यह सवाल पूछा तो मंत्री जी राजकुमार के चेहरे को खूब गौर से देख रहे थे – राजकुमार के घबराहट भरे स्वर मे पूछे गए सवाल का जवाब मंत्री जी से देते न बना | मंत्री जी सर झुका कर मौन हो गए |

 

यह देख राजकुमार सिधार्थ ने भारी स्वर मे मंत्री जी को आदेश देते हुए कहा -मंत्री जी यूं मौन खड़े रह कर मेरे सब्र की और परीक्षा न लें मेरे क्रोध न बढ़ाएँ , मैं आदेश देता हूँ आपको की मेरे सवालो का उचित जवाब दें |

राजकुमार का आदेश सुनते ही मंत्री जी राजकुमार से आखें तो नहीं मिला पा  रहे थे लेकिन अपनी चुप्पी तोड़ते हुए मंत्री जी धीमी आवाज मे सर झुकाए बोलते हैं – हाँ राजकुमार ! येही सत्य है, एक दिन आपका शरीर भी वृद्ध अवस्था तक पहुँच जाएगा |

इसके बाद मंत्री जी ने इसके बारे और कुछ अधिक बोलना उचित न समझा और चुप हो गए |

यह सुन राजकुमार नगर मे आगे की ओर जाते है पीछे पीछे सैनिक और मंत्री भी चल पड़ते है |

इसके बाद नगर मे कुछ लोगों के रोने पीटने की आवाज़े राजकुमार सिधार्थ के कानों मे पड़ती हैं | उस आवाज़ का पीछा करते राजुमर सिधार्थ वहाँ पहुँच जाते है जहां एक परिवार का वृद्ध मृत्यु को प्राप्त हो चुका होता है |

राजकुमार सिधार्थ देखते  हैं की उस मृत वृद्ध के चारों तरफ लोग घेरा बना कर बैठे है और विलाप कर रहे हैं | मृत वृद्ध का शरीर फूलों से ढके हुए थे और सफ़ेद कपड़े से शरीर को ढका हुआ था |

 

राजकुमार को कुछ समझ नहीं आरहा था की यह आखिर, हो क्या रहा हैं |

यह देख राजकुमार सिधार्थ मंत्री जी से पुनः सवाला करते है – मंत्री जी ! यह लोग उस सफ़ेद कपड़े के चारों तरफ बैठ कर विलाप(रोना पिटना) क्यों कर रहें हैं ? उन सब लोगों का चेहरा इतना दुखी और चिंतामय क्यों है ?

अब वक्त आगया था सिधार्थ को जीवन के ऐसे सच से रूबरू करवाने का जिससे वह अब तक अंजान थे |

 

इधर जीवन के इस सच का सारा खेल मंत्री जी  के जवाब पर टिका हुआ था | अब मंत्री जी राजकुमार के पूछे इन सवालों का जवाब देने से बहुत घबरा रहे थे और सोच रहे थे – यह क्या अनर्थ हो गया ! यदि मैंने राजकुमार के सवालों का  उचित जवाब दे दिया तो मैं तो महाराज शुधोधन का अपराधी बन जाऊंगा |

जिस सच्च  को महाराज ने अब तक राजकुमार सिधार्थ से छुपा कर रखा था-  वो सच्च आज अगर मेरे मुंह से निकले शब्दों से सामने आगया तो महाराज शुद्धोधन तो मुझे दीवार मे ज़िंदा चुनवा देंगे |

 

इतना सोच मंत्री जी राजकुमार से कहते हैं – हे राजकुमार ! क्षमा कीजिये मैं आपके इन सवालों का जवाब कल दे दूंगा | समय बहुत अधिक हो गया है , महाराज चिंतित हो रहे होंगे  | आपसे निवेदन है की आप रथ पर बैठ जाए और राजमहल लौट चले |

मंत्री जी के आग्रह को सुनते हुए राजकुमार सिधार्थ कहते हैं की – हाँ मंत्री जी क्यो नहीं | हम बिलकुल राजमहल वापिस चलेंगे आपके साथ | लेकिन अपने सवाल उचित उत्तर पाने के बाद |

 

राजकुमार सिधार्थ का सवाल अब एक जिद्द मे बदल चुका था | राजकुमार की इस ज़िद्द को देख मंत्री जी के आखो से अश्रु धारा बहने लगी |  मंत्री जी बोलते है-  हे राजकुमार ! किरपा जिद्द न करे |

राजकुमार सिधार्थ यह सुन क्रोधित हो जाते है और कहते हैं – मंत्री जी ! आपके आखों से बह रही यह  अश्रु धारा चीख चीख कर कह रही है की आप जरूर हमसे कोई बहुत बड़ा सच्च छुपा रहे हो | अब आपको मेरे सवालों का उचित जवाब देना ही होगा अन्यथा मैं अभी इसी क्षण यह राज्य त्याग कर यहाँ से चला जाऊंगा |

राजकुमार सिधार्थ की यह बाते सुन मंत्री जी राजकुमार के चरणों मे गिर जाते हैं और कहने लगते हैं – हे राजकुमार ! किरपा ऐसा अनर्थ न करे |

 

यह आज आपने मुझे किस दुविधा मे डाल दिया – आपको मेरे साथ राजमहल वापिस आया न देख महाराज शुद्धोधन मुझे क्षमा नहीं करेंगे और यदि मैंने आज आपको आपके सवालों का उचित जवाब दे दिया तो महाराज शुद्धोधन मुझे जमीन मे जिंदा ग़ाड़ देंगे |अब आप ही बताएं मैं क्या करूँ|

 

सबसे पहले तो राजकुमार मंत्री जी को सममानपूर्वक उठाते हैं और उनके असू पोचते हैं फिर बोलते हैं – हे मंत्री जी ! आप मेरे चाचा के समान है किरपा यूं मेरे चरणों मे गिर कर मुझे लज्जित न करे | और आप ऐसे कथन क्यों बोल रहे हो ? आप पिता जी से इतने डरे हुए क्यों हो भला वो आपके साथ ऐसा क्यों करेंगे ?

मंत्री जी बोलते हैं – आपके पिता शुद्धोधन ने जिस सच को आपसे बचपन से अब तक छुपा कर रखा था वो सच आपके द्वारा पूछे गए सवाल पर मेरे द्वारा दिये जाने वाले उचित जवाब पर आकार बैठ गया है | अब ऐसे मे अगर मैंने उचित उत्तर दे दिया तो आपके पिता श्री मुझे जीवित नहीं छोड़ेगें|

 

इतना सुन राजकुमार सिद्धार्थ बोलते है – यदि ऐसा हैं तो आप चिंता न करे | आप उचित जवाब दीजिये और मैं आपकी रखा का वचन देता हूँ की आपको कुछ नहीं होगा | यदि आपको किसी ने  ज़रा सा भी कस्ट पहुंचाने का दुस्साहस किया तो मैं पिता जी को त्याग कर चला जाऊंगा |

 

पहली बात तो हमारे बीच आज जो भी वार्तालाप हुई है उसके बारे कोई खबर राजमहल तक कभी नहीं पहुंचेगी इसका मैं आपको वचन देता हूँ यह बात सिर्फ आप और हमारे बीच रहेगी | इसलिए आप अब चिंतामुक्त होकर हमारे सवालों का उचित जवाब दीजिये |

 

राजकुमार की बाते और उनके दिये गए वचन को सुन मंत्री जी का मन बहुत हल्का हो जाता है | मंत्री जी अब राजकुमार के सवालों का जवाब देते हुए कहते हैं की – वो जो दृश्य आप देख रहे हैं वहीं जीवन का एक अंतिम सत्य हैं | उस   सफ़ेद कपड़े मे उस परिवार के वृद्ध आदमी को लपेटा हुआ है जो अब मृत्यु को प्राप्त हो चुका |

उस मृत शरीर के चारों तरफ बैठे हुए लोगो मे से कुछ उसके परिवार के लोग है और कुछ मित्र संबंधी है |

इसके आगे मंत्री जी कुछ और बोलते तभी राजकुमार सिद्धार्थ मंत्री जी से पुनः सवाल पूछते है – यह मृत्यु का अर्थ क्या है ?

मंत्री जी बोलते है – मृत्यु ही जीवन का अंतिम सत्य है | मृत्यु का अर्थ यानी एक ऐसी अवस्था जिसमे शरीर से प्राण यानी आत्मा निकल जाती है और शरीर पूर्ण रूप से बेजान हो जाता है इस अवस्थ मे शरीर  एक निर्जीव वस्तु के समान हो

 

जाता हैं जिसके अंदर की सभी क्रियाएँ रुक जाती है न तो शरीर अब कुछ सुन सकता है न ही कुछ बोल सकता है और न ही कुछ महसूस कर सकता है | इसी को मृत्यु कहते है | अब वह वृद्ध शरीर मृत हो चुकी है उसमे से आत्मा निकल चुकी है |

और यह लोग इसलिए विलाप  कर रहें है क्योकि अब वह वृद्ध आदमी उनके बीच नहीं रहा अब उस मृत शरीर को शमशान घाट ले जाया जाएगा और वहाँ उस मृत शरीर जो अग्नि मे जला दिया जाएगा |जलने के बाद उस शरीर की बनी

 

राख़ को एक मिट्टी के पात्र या किसी कलश मे भर कर उसे पूर्ण विधि विधान द्वारा गंगा जी मे विसर्जित कर दिया जाएगा | इस प्रकार पंच भूतो से बना यह शरीर पुनः पंच भूतो मे विलीन हो जाएगा |

 

 राजकुमार सिधार्थ पुनः सवाल करते है – तो क्या मेरा शरीर भी एक दिन ऐसे ही मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा ? क्या मेरे शरीर से भी आत्मा निकल जाएगी ?

मंत्री जी बोलते हैं – हाँ राजकुमार ! आपके साथ भी एक दिन ऐसा ही होगा | जो जन्म लेता हैं वह एक न  एक  दिन मृत्यु को प्राप्त होगा ही होगा क्योकि यही प्रकृति का नियम और  जीवन का अंतिम सत्य भी |

मंत्री जी की यह सब बाते सुन राजकुमार सिधार्थ अब और सवाल पूछने की हिम्मत नहीं जूता प रहे थे वह इस कदर मौन हो गए मानो उनके शरीर से आत्मा ही निकल गई हो | राजकुमार सिधार्थ चुप चाप जा कर रथ पर बैठ जाते है |मंत्री जी राजकुमार को  राजमहल वापिस ले जाते है |

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मंत्री जी की बाते  सुन राज कुमार के मन मे अपनी जिंदगी के बिताए बाकी के पल एक कच्चे सपने की भांति फीके नजर आरहे थे | राजकुमार की नींद अब उड़ चुकी थी उनको भूख भी नहीं लगती थी |

विकारता इस कदर सिधार्थ के मन मे अपना घर बना चुकी थी की वह हर पल मंत्री जी की कहीं गई बातों को बार बार सोचते और दुखी होते |

 

फिर अंत मे एक सवाल उनके मन मे सदेंव एक भयंकर रूप सामने आता की यदि ऐसा है तो जिंदगी मिलती ही क्यों है ? आखिर जीवन और मृत्यु के बीच का सच्च क्या है ? मरने के बाद आत्मा कहा जाती है ? यदि मृत्यु ही आनी है तो शरीर का जन्म होता ही क्यों है ? आखिर यह कैसा नियम है प्रकृति का ? क्या जीवन मृत्यु के इस चक्र से छुटकारा नहीं पाया जा सकता ?

 

अब राजकुमार सिद्धार्थ अपने इन सवालों का जवाब पाने के लिए बेचैन थे | कुछ दिनों तक अपनी इस शारीरक बेचेनी और मानसिक उथल पुथल के चलते राजकुमार सिधार्थ मन ही मन मे सच्च को जानने की तीव्र  इच्छा से राजमहल त्यागने का फैसला कर लेते हैं |

 

क्योकि राजकुमार अब समझ चुके थे की मेरे सवालों का जवाब मुझे इस राजमहल की चार दीवारी मे नहीं मिलेगा इसके लिए मुझे सा कुछ त्याग कर सत्य की खोज मे यहा से बाहर जाना ही होगा |

 

आधी रात के वक़्त राजकुमार सिद्धार्थ पत्नी और बेटे के पास जाते है और खूब प्यार दुलार करते है |

पत्नी बड़ी ताज्जुब से पूछती है – की क्या बात है ,आप इतनी रात को ? सब ठीक तो हैं ? राजकुमार मुस्कान भरे स्वर मे बोलते है हाँ सब ठीक है बस एसे ही आगया |

अगले ही दिन राजकुमार एक साधारण सी वेश भूषा डाल  कर अपने पिता के सामने प्रस्तुत हो जाते हैं और उनसे कुछ दिनों के लिए बाहर जाने की आज्ञा मांगते हैं?

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पिता जी राजकुमार को इस साधारण वेश भूषा मे देख बड़ी अचरज से पूछते है ? पुत्र ! यह कैसी वेषभूषा डाली है और कहाँ जाने की बात कर रहे हो ? 

राजकुमार बड़े ही शांत स्वभाव से जवाब देते हुए कहते है – पिता जी ! मेरे मन मे कुछ सवाल हैं जिनका उचित जवाब पाने के लिए हम यहाँ से कही दूर जाना चाहते हैं जैसे ही मुझे मेरे सवालों का उचित जवाब मिल जाएगा मैं राजमहल स्वयं लौट आऊँगा |

 

पिता जी बोलते है – पुत्र सिधार्थ!  आप हमे बताइये ईएसए कौन सा सवाल आपके मन मे हैं जिसके आप सब त्याग कर यहाँ से चले जाना चाहते हैं ? आप मुझसे वह सवाल पूछो हो सकता हैं हम आपके सवालों का उचित जवाब दे पाए|

 

राजकुमार बोलते हैं – नहीं पिता जी ! मैं अपने सवाल का जवाब स्वयम ही खोजुंगा अब किसी से कुछ पूछने की इच्छा नहीं | और आप किरपा मेरी चिंता न करे हम अपनी रक्षा के लिए स्वयम ही समर्थ हैं | किरपा मेरे साथ किसी भी सैनिक को न भेजें | 

पिता जी बहुत भारी मन से अपने पुत्र को जाने की आज्ञा दे देते हुए कहते है पुत्र जल्दी लौट आना अधिक विलंब मत करना | 

राजकुमार को देखने पूरा राजमहल वहाँ एकत्रित हो जाता हैं | राजकुमार अपनी पत्नी ओर बेटे को गले लगाते हैं और उन्हे अपना ख्याल रखने को कहते हैं | बोलते हैं की मेरी चिंता मत करने हम जल्दी ही  लौटेंगे | अब आज्ञा दें | पत्नी अश्रुधारा बहाते हुए राजकुमार के सीने से लग जाती है |

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राज कुमार सिधार्थ अब अपने सवालो का जवाब पाने के लिए अपनी यात्रा पर अकेले निकल पड़ते हैं |

 

यहीं से  शुरू होता हैं राजकुमार सिधार्थ यानी गौतम बुद्ध से महात्मा बुद्ध बनने का अद्भुत सफर –

 

राजकुमार सिधार्थ तीन से  एसे ही  भोखे प्यासे रह कर एक भिक्षु की भांति चलते जाते है | किसी ने कुछ दे दिया तो खा लेते नहीं तो सिर्फ चलते रहते थे | एसे ही चलते चलते गौतम बुद्ध को एक वृक्ष के नीचे एक तेजस्वी साधू ध्यान लगाते हुए दिखे |

 

गौतम बुद्ध (gautam buddha) उनके पास गए और उनको प्रणाम किया | साधू जी ने अपनी आखे खोली और आशीर्वाद दिया | गौतम बुद्ध ने साधू जी से अपने सवाल पूछे ? 

आखिर जीवन और मृत्यु के बीच का सच्च क्या है ? मरने के बाद आत्मा कहा जाती है ? यदि मृत्यु ही आनी है तो शरीर का जन्म होता ही क्यों है ? आखिर यह कैसा नियम है प्रकृति का ? क्या जीवन मृत्यु के इस चक्र से छुटकारा नहीं पाया जा सकता ?

किरपा मुझे इन सवालों का जवाब दें |gautam buddha story

 

साधू जी वेद पुराणों के अनुसार गौतम बुद्ध (gautam buddha) के सवालों का जवाब देने का  प्रयास करते   हैं – साधु जी गौतम बुद्ध (gautam buddha) को जीवन, मृत्यु, आत्मा और अंत मे जीवन मरन के चक्र से सदैव के लिए छुटकारा पाने के लिए मोक्ष का ज्ञान प्रदान करते हैं.

 

गौतम बुद्ध पूछते हैं – हम मोक्ष को कैसे प्राप्त कर सकते हैं?

 

साधु जी  बोलते हैं – मोक्ष प्राप्त करने के अनेक रास्ते हैं और सभी रास्ते सरल हैं. गरुण पुराण के अनुसार जिस इंसान ने अपने जीवन मे बहुत कम पाप किये होते हैं, जो इंसान सदैंव धर्म कर्म के रास्ते पर चलता हुआ निःस्वार्थ भाव से दान पुण्य, सेवा, और ईश्वर की भक्ति करता हैं. वह इंसान मोक्ष को प्राप्त करता हैं.

 

यह श्रीष्टि क्यो है क्या आस्तित्त्व है इसका ?सम्पूर्ण श्रीष्टि को चलाने वाली एक मात्र शक्ति का सच्च क्या है?  हम  कौन है  और इस शरीर मे क्यों है ?हमारा जन्म किस मकसद से हुआ जीवन का सत्य क्या है ? इन सब रहस्य को जानने के लिए तुम्हें परम ज्ञान की प्राप्ति करनी होगी |

 

इस पर गौतम बुद्ध (gautam buddha) बोलते है – हे महात्मा ! यह ज्ञान मुझे किस प्रकार हासिल होगा |

महात्मा जी बोलते है – इस ज्ञान को हासिल करने का रास्ता बेहद कठिन है इसमे मनुष्य को अपने जीवन से लोभ ,मोह ,,अहंकार ,काम  और क्रोध जैसे 6 निर्विकारों को त्याग कर भोखे प्यासे रह कर  शरीर को कस्ट देना पड़ता है | घंटो ध्यान और समाधि मे लीन रहना पड़ता है |

इतना बोल साधू जी  फिर से ध्यानमग्न हो जाते है |

गौतम बुद्ध  (gautam buddha)साधू जी की कहीं हुई बाटो पर विचार करते हुए वहाँ से अब अपनी आगे की यात्रा पुनः प्रारम्भ करते हैं |

इस यात्रा के दौरान गौतम बुद्ध को 5 ऐसे दुखी लोग भी मिले जिन्हे गौतम बुद्ध (gautam buddha) ने अपने उपदेश और विचार दे कर उनके दुखो को हर लिया |

यह पाँच लोग अब गौतम के शिस्य बन चुके थे यह भाई गौतम बुद्ध (gautam buddha) के साथसाथ एक भिक्षु के रूप मे यात्रा करने लगे |

 

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इस प्रकार अपनी कई दिनों की ह शिस्यों के साथ इस यात्रा के दौरान वह कई महान साधू संतों से मिले जिनसे उन्हे ध्यान लगाने के अलग तरीको के बारे मे  जानने को मिला |

इसके इलवा उन्हे जीवन के और भी कई ज्ञानवर्धक बाते और ज्ञान सीखने को मिला | जिसे सुन कर गौतम बुद्ध को बहुत अच्छा अनुभव हुआ |

 

इस बीच गौतम बुद्ध गौतम बुद्ध (gautam buddha) ने समाधि की अनेक विधियाँ सीखिए | हर विधि को किया लेकिन अभी भी उनको परम ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो पाई थी |

 

समाधि के अलग तरीके और भूखे प्यासे रह कर ध्यान लगाने को लेकर गौतम बुद्ध (gautam buddha) और शिस्यों के मत भेद होने लगा जिसके चलते सभी शिस्य एक के बाद एक करके गौतम बुद्ध को छोड़ कर अपने अलग मार्ग पर चले गए |

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गौतम भूद्ध (gautam buddha) भूखे प्यासे रह कर कई दिनो तक चलते रहते हैं और समाधि भी लगाते| लेकिन शरीर को पर्याप्त आहार न मिल पाने की वजह से शरीर पूरी तरह से सूख  चुका था  उनका शरीर अब एक हड्डियों का ढ़ाचा दिख रहा था |

 

समाधि मे जब ध्यान न लगा तो वह उठ खड़े हुए और पुनः यात्रा प्रारम्भ की  चलते चलते अब वह एक निरंजन नदी के पास पहुँचते है | वह नदी को पार करके दूसरी तरफ जाना चाहते थे नदी के उस पर बिहार राज्य की सीमा शुरू होती है | 

नदी के बहाव का अंदाजा लगाए बिना गौतम बुद्ध (gautam buddha) नदी मे जब कुछ आगे जाते हैं तो शरीर कमजोर होने वजह से वह अपना शरीर संभाल नहीं पा रहे थे | बुद्ध के पास एक पेड़ की 4 फुट की  लकड़ी थी जिसके सहारे वह उस नदी मे किसी तरह खुद को संभाले कुछ देर  खड़े रहे  अब शरीर मे एक कदम और बढ़ाने की हिम्मत न थी|| 

 

 

अपने जीवन के इस दुर्लभ समय मे वह शरीर से भले ही कमजोर थे लेकिन उनकी मानसिक सोच अभी भी बहुत मजबूत थे जिसके चलते वह अपनी आखे बंद कर लेते हैं तथा मन मे विचार करने लगते है की यह मैं क्या खोज रहा हूँ मैं जिस सत्य की खोज कर रहा हूँ जिस ज्ञान को हासिल करना चाहता हूँ वह तो मेरे अंदर ही विद्दमान हैं |

फिर कुछ देर बाद उन्हे यह अहसास हुआ की वह 

 

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की उन सभी कठिनाइयों को रोक देना चाहते थे जो उनके आत्म ज्ञान की प्राप्ति मे बाधक बन रहे थे | तभी उनमे अचानक से एक ऊर्जा का प्रवाह हुआ जिसके चलते वह नदी को पार कर आगे बढ़ते हैं और कुछ दूरी पर जाकर एक बोध वृक्ष के नीचे बैठ जाते है |

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वहीं पर वह बैठ कर प्रतिज्ञ करते हैं की या तो मैं अब परम ज्ञान को प्राप्त करूंगा या फिर एसे ही समाधि मे लीन रहते प्राण त्याग दूँगा | आंखे बंद कर ध्यान की मुद्रा मई बैठ कर समाधि लेते हुए ध्यान मग्न हो जाते है | उनकी इस प्रतिज्ञ और सोच ने उनको मृत्यु के भय से अलग कर दिया था  | 

 

तीन दिन अपनी इसी  समाधि मे लीन रहते हैं तीसरा दिन पूरन मासी की रात आती है | उसी दिन उनको परम ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है जिसके चलते उनके उनका पूरा शरीर अग्नि के समान पकश मान हो जाता है उनके पूरे शरीर के चारों ओर एक दिव्य प्रकाश का आभा मण्डल छा जाता है |

इस प्रकार तीन दिन की समाधि के बाद उन्हे परम ज्ञान (आत्म ज्ञान ) की प्राप्ति होती है | अब गौतम सिधार्थ – गौतम बुद्ध बन जाते है |

 

कहते हैं जिस वृक्ष के नीचे गौतम बुध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी वह वृक्ष आज भी बिहार के बोधगया मे  स्थित है | यह स्थान बोधगया के नाम से प्रसिद्ध है |

 

कहते हैं जब भगवान बुद्ध (gautam buddha) को ज्ञान की प्राप्ति हुई तब उनकी उम्र 30 साल की थी | वह 80 साल तक जिये और अंतत उन्होने निद्रा अवस्था मे अपना शरीर त्याग दिया |

 

ज्ञान मिलने के बाद भगवान बुद्ध (gautam buddha) ने अपने बाकी के जीवन मे खूब यात्राएं की और अपनी इन यात्राओं मे उन्होने अपने धर्म और उपदेश का खूब प्रचार प्रसार किया | उनके बहुत से शिस्य बने जिंहोने आगे चलकर बौद्ध धर्म का प्रचार और विस्तार किया |

 

यदि आज का समय देखा जाए तो गौतम बुद्ध (gautam buddha) के फोलोवर यानि बौद्ध धर्म को अपनाने वालो की संख्या अरभोन मे हैं जिसमे , चीन ,जापान ,भारत ,नेपाल ,दक्षिण कोरिया शामिल हैं |

आज भी गौतम बुद्ध (gautam buddha) के द्वारा दी गई शिक्षा लोगों को बहुत इनपायर करती है |जीवन के बहुत अनमोल ज्ञान सिखाती है |

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gautam buddha story|महात्मा बुद्ध hindi kahaniyanके जीवन की सीख 

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दुनिया मे शायद ही  कोई इंसान ऐसा होगा जो महात्मा बुद्ध (gautam buddha) के बारे मे या उनके नाम से अपरिचित होगा |gautam buddha story

क्योंकि आज के दौर मे महात्मा बुद्ध  सिर्फ एक नाम नहीं बल्कि खुद  मे बहुत बड़ा इंसानियत का पाठ पढ़ाने वाला ऐसा धर्म है ,जिससे हमें न सिर्फ महात्मा बुद्ध के जीवन के अनमोल विचारों का ज्ञान मिलता है बल्कि उनके जीवन यात्रा से मिलने वाले अद्भुत ज्ञान को जान कर और पढ़ कर भी जीवन धन्य हो जाता है |

महात्मा बुद्ध गुरु नानक देव जी या साई बाबा की तरह ईश्वर का अवतार तो नहीं थे लेकिन उन्होने अपने जीवन मे एक ऐसे ज्ञान को प्राप्त  करने की दृढ़ इच्छा रखी जिसे पाकर इंसान ईश्वर का अवतार ही कहलाता है इस ज्ञान को “परम ब्रम्ह ज्ञान” कहते है” |

महात्मा बुद्ध जी ने इस “परम ब्रम्ह ज्ञान”  को   प्राप्त  करने के लिए किस मार्ग का चुनाव किया ?जीवन मे कितने कस्ट सहे ?  क्या होता है यह “परम ब्रम्ह ज्ञान” ? यह ज्ञान मिलने के बाद क्या होता हैं ?इन सब के बारे मे आपको आज इस आर्टिकल मे बताया जाएगा |

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  तो आप भी महात्मा बुद्ध के जीवन की इस अद्भुत गाथा को पढ़ कर अपना जीवन सफल बना सकते है |

 

 

 

 

short story- महात्मा बुद्ध के अनमोल विचार – hindi kahaniyan

एक बार महात्मा बुद्ध अपने शिस्यों के साथ यात्रा करते हुए एक छोटे से गाँव मे प्रवेश करते है | वहाँ राह पर एक गरीब आदमी बैठा हुआ था | जो की बहुत परेशान था | महात्मा बुद्ध ने उस गरीब आदमी से पूछा – हे भले मानुस! इतने दुखी क्यों हो ? 

गरीब दुखी आदमी बुद्ध की तरफ देखता है महात्मा बुद्ध के उस तेज को हुआ कुछ देर बस बुद्ध जी को देखता ही रहता है फिर बोलता है – हे! साधू महात्मा , मैं अपनी गरीबी से बहुत तंग आगया हूँ मेरे पास कुछ भी नहीं इसलिए मेरा मन हमेशा दुखी रहता हैं | 

हे महात्मा ! आप ही कुछ राह दिखाए मैं क्या करू ?

तब बुद्ध जी बोलते है – तुम्हारे दुख की असल वजह तुम्हारी गरीबी नहीं,  तुम्हारी सोच है |यदि चाहो तो तुम्हारे पास देने को बहुत कुछ है – तुम चाहो तो किसी की तारीफ करके उसे खुश कर सकते हो | किसी को हसा सकते हो , किसी का हौसला बढ़ा सकते हो | किसी को उम्मेद की किरण दिखा सकते हो |

महात्मा बुद्ध की इन बातों को सुन गरीब दुखी इंसान के चेहरे पर मुस्कान आजाती है |

 

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