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प्रेरणादायक कहानी जीने की तमन्ना

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प्रेरणादायक कहानी जीने की तमन्ना | दोस्तों यदि कभी जीवन की विपरीत परिस्थितियों के चलते मन विचलित  हो उठे और आप मरने का फैसला कर ले तो यह कहानी आपके लिए ही है.. यह कहानी आज आपका जीवन बदल देगी.. कहानी को अंत तक अवश्य पढे. यह इतिहास मे घटी एक सच्ची घटना के रूप मे है जिसे हम कहानी के माध्यम से आपके समक्ष लिखित रूप मे प्रस्तुत कर रहे है.. ????????

प्रेरणादायक कहानी जीने की तमन्ना

रामदयाल इस बड़ी दुनिया में अकेले रह गए थे। उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई। वह दो-चार दिन ही बीमार रहीं। मोहल्ले वाले उन्हें अस्पताल ले गए। उन्होने ही भाग-दौड़ की। रामदयाल खुद बीमार थे। उनका लड़का मुंबई  में रहता है। कई वर्षों से घर नहीं आया था। मां की मृत्यु का समाचार मिलने पर उसने जवाब भेज दिया-‘बहुत उलझा हुआ हूं, फुरसत होने पर आऊंगा।‘

पत्र पाने वाली रात रामदयाल तकिए में मुंह गड़ाकर कितना रोए-कहना कठिन है। 

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उनकी खुद की उम्र पैंसठ वर्ष हो गई थी। अब उन्हें हरदम लगता था जैसे दुनिया में उनके लिए कुछ भी शेष नहीं रहा है। पड़ोसियों ने उनका बहुत ख्याल रखा। हर समय कोई-न-कोई उनके पास मौजूद रहता। लेकिन फिर भी रामदयाल की उदासी बढ़ती गई। वह जितना सोचते, यह विश्वास पक्का होता जाता कि अब इस दुनिया में रहना बेकार है। और एक सुबह घूमने के लिए निकले तो फिर लौटे नहीं। उनके कदम शहर से बाहर की ओर चलते चले गए।

एक बस आगे की तरफ जा रही थी। रामदयाल बस में बैठ गए। कई घंटे की यात्रा के बाद जब बस एक घने जंगल में से गुजर रही थी, तो वह पेशाब करने के लिए नीचे उतरे और एक दिशा में बढ़ गए। थोड़ी देर बाद उन्होंने बस के भोंपू की आवाज सुनी। ड्राइवर उन्हें जल्दी करने को कह रहा था, लेकिन रामदयाल बाबू वहीं खड़े रहे। उन्होंने न लौटने का फैसला किया था। वह वन में खो जाना चाहते थे।

उस घने जंगल में दिन में भी पेड़ों के नीचे हल्का अंधेरा था। हर तरफ सुनसान। पत्तों में सांय-सांय हवा। 

 

रामदयाल बाबू को जैसे होश नहीं था। झाडि़यों में अटकते, उलझते बढ़ रहे थे, पता नहीं किधर । धूप तेज हुई तो प्यास से गला सूखने लगा। अब वह एक ऊंचे कगार की ओर बढ़ रहे थे-आंखों के सामने एक दृश्य तैर रहा था-वह हवा में हाथ-पैर मारते हुए नीचे घाटी की ओर गिरे जा रहे हैं।

 

और फिर एकाएक उनके कदम रुक गए। जहां ढलान नीचे घाटी की ओर खुलता था, वहां दो लकडि़यां लगाकर रास्ता बंद किया था, वहां मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा था-‘सावधान।’ रामदयाल बाबू ने इधर-उधर देखा पर कोई नजर नहीं आया। उनकी समझ में न आया कि लोगों को सावधान रहने की बात किसने लिखी। 

 

उन्होंने जरा बढ़कर झांका तो देखा आगे गहरी खाई थी। वह पीछे हट आए-न जाने क्यों उनका मन कांप उठा। वह एक तरफ बैठ गए। कुछ देर पहले रामदयाल आत्महत्या के लिए तैयार थे, लेकिन अब कुछ-कुछ डर लग रहा था।

वह कुछ देर आंखें मूंदे बैठे रहे, फिर उठे। प्यास से गला खुश्क हो रहा था, लेकिन वहां भला पानी कहां मिलता। तभी उन्होंने देखा पास ही पत्थर की कूंडी में पानी भरा है। वहीं कुछ फल भी रखे दिखाई दिए। कुछ देर सोचते खड़े रहे-पिएं या न पिएं, फिर प्यास ने जोर मारा तो गटागट पानी पी गए। वहां रखे फल भी खा लिए। 

 

अब जाकर चित्त कुछ ठिकाने हुआ, लेकिन एक बात रह-रहकर परेशान कर रही थी-यह सब किसने किया है। यहां तो कोई नजर नहीं आता। कौन है वह?

रामदयाल के मन से आत्महत्या का विचार निकल गया। वह जंगल में घूमने लगे। जगह-जगह उन्होंने ‘सावधान’ लिखा देखा। कई पेड़ों पर ‘जहरीले फल’ भी लिखा था। 

 

उन्होंने पाया कि अगर वह सब न लिखा होता तो कोई भी गिरकर अपने प्राण गंवा सकता था। घास में छिपे हुए गहरे गड्ढे, खतरनाक मोड़, जहरीले फल-सबके बारे में सावधान किया गया था। अब तक दोपहर ढल चुकी थी। रामदयाल जी ने जोर से पुकारा, ‘‘मेरे प्राण बचाने वाले भाई, मैं आपके दर्शन करना चाहता हूं।’’

पत्तों के पीछे सरसराहट हुई और एक बूढ़ा हंसता हुआ सामने आ गया। उसने कहा-‘‘मैं बहुत देर से आपको देख रहा हूं, कहिए आप यहां कैसे आ गए?’’

‘‘सच कहूं, मैं आत्महत्या के इरादे से आया था लेकिन खाई के किनारे लिखे शब्दों ने मन बदल दिया।’’ रामदयाल कह गए।

उस व्यक्ति ने पूछा, ‘‘अब क्या इरादा है?’’

‘‘सोच रहा हूं क्या करूं।’’ रामदयाल ने कहा और उनकी आंखें भर आईं। बूढ़े के पूछने पर उन्होंने अपनी रामकहानी कह सुनाई।

 जब उन्होंने बात खत्म की तो उनकी आंखों से लगातार आंसू गिर रहे थे। एकाएक उन्होंने पूछा-‘‘लेकिन आपने अपना परिचय नहीं दिया।’’

 

बूढ़े ने कहा-‘‘जो आपका परिचय है वही मेरा भी है। मेरा नाम है नरसिंह। क्या सुनाऊं! अनेक वर्ष हो गए। एक दिन मैं अपने बेटे के साथ इस जंगल से गुजर रहा था। तभी बेटा घास में छिपे गहरे गड्ढे में गिर गया। वह इतना नीचे गिरा था कि मैं वहां पहुंच भी नहीं सकता था। 

मेरी दुनिया अंधेरी हो गई।

‘पत्नी पहले ही मर गई थी। अब तो कुछ भी नहीं बचा था जीवन में। मैंने तय किया कि मैं भी उसी गड्ढे में कूदकर जान दे दूं।’’रामदयाल जी ध्यान से सुन रहे थे।

 

नरसिंह ने आगे कहा-‘‘मैं कूदने जा रहा था, एकाएक मन ने कहा यह कायरता है। हो सकता है, इसी तरह लोग आकर इस छिपे गड्ढे में गिरते रहें। नहीं, यह ठीक नहीं। 

पहले इसका कुछ प्रबंध करना चाहिए। बस, मैंने गड्ढे के चारों ओर पेड़ की डालियां खड़ी करके उन्हें लताओं से बांध दिया।’’

‘‘फिर?’’ रामदयाल ने पूछा।

 

‘‘फिर मुझे लगा कि ऐसे खतरनाक स्थान तो इस जंगल में और भी होंगे। मैंने देखा, मेरे बेटे की जान लेने वाले गड्ढे के पास ऐसे ही दूसरे स्थान भी थे। बस, मैंने निश्चय  कर लिया कि जंगल में जब तक एक भी ऐसा खतरनाक स्थान रहेगा, मैं नहीं मरूंगा।’’ वह दिन था और आज का दिन है, मैं इसी जंगल में रह रहा हूं-अभी मेरा काम खत्म नहीं हुआ।

 

खतरनाक स्थानों पर मैंने चेतावनियां लिखकर लगा दी हैं। कौन-से फल जहरीले हैं और कौन-से खाने लायक यह भी जान लिया है। जंगल इतना खतरनाक नहीं रह गया है जितना पहले था। मैंने कई भटके लोगों को रास्ता बताया है। खाने-पीने की सामग्री दी है, नहीं तो शायद वे मर जाते। और हर बार मुझे लगा कि आत्महत्या न करने का मेरा निश्चय गलत नहीं था।’’

 

रामदयाल गंभीर होकर नरसिंह की बातें सुन रहे थे। एकाएक नरसिंह ने कहा-‘‘रात हो रही है, जंगली जानवरों का डर है। सुबह आपको जंगल से बाहर जाने का रास्ता बता दूंगा। आइए।’’

नरसिंह रामदयाल को एक गुफा में ले गया। उसके बाहर आग जलाकर दोनों लेट गए। रात को जंगली जानवरों की आवाजें सुनाई दीं, कभी दूर, कभी एकदम पास।

 

सुबह रामदयाल की नींद खुली तो नरसिंह ने कहा-‘‘चलिए, आपको जंगल से बाहर जाने वाले रास्ते पर छोड़ दूं।’’

‘‘लेकिन मुझे कहीं नहीं जाना।’’

‘‘तब कहां जाएंगे, क्या इरादा है?’’ नरसिंह ने आश्चर्य से पूछा।

‘‘मैं यहीं रहूंगा, आपके साथ।’’ रामदयाल ने कहा-‘‘अभी जंगल में ऐसे बहुत-से स्थान हैं जहां देखभाल की जरूरत है- मैंने मरने का इरादा छोड़ दिया है।’’

‘‘क्या सच।’’ कहते हुए नरसिंह की आंखें चमक उठीं।

‘‘हां, मैने देख लिया है जीवित रहकर दूसरों को मरने से बचाया जा सकता है।’’ रामदयाल ने कहा और मुसकरा उठे।

*मरने के लिए एक दुख है तो जीने के लिए सौ सुख भी कम हैं*’’ 

रामदयाल ने कहा और गुफा से बाहर आ गए। सूरज पेड़ों के पीछे से ऊपर उठ रहा था..!!

कहानी से सीख – दोस्तों इस प्रेरणादायक कहानी से हमें सिख मिलती है जीवन में कई बार ऐसी  परिस्थितियाँ बन जाती है की अक्सर मनुष्य   मरने तक का फैसला कर लेता है लेकिन ऐस करना बिलकुल गलत होता है क्योकि जीवन का अर्थ यह नहीं की आप अपने लिए जिए बल्कि जीवन का मकसद यह होना चाहिए की आप अपने जीवन से दुसरो को क्या दे सकते हो अतः जीवन तभी सार्थक मन जाता है जब हमारे जीवन से कोई प्रेरित होकर या हमारे कार्य से कोई प्रेरित होकर अपने जीवन में सकारात्म बदलाव लाकर स्वयं को बदल पाया हो | 

 

(Lesson from the story – Friends, we get a lesson from this inspirational story, many times such situations arise in life that often a person decides to die, but doing so is absolutely wrong because life does not mean that you live for yourself. Rather, the purpose of life should be what you can give to others through your life, hence life becomes meaningful only when someone gets inspired by our life or gets inspired by our work and is able to change himself by bringing positive changes in his life. |)

   

 

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