नमस्कार दोस्तों ! स्वागत हो आप सभी का एक बार फिर से akbar birbal ki kahani मे. यहां हम रोज बीरबल की चतुराई से भरे वो किस्से लेकर आते है जिसे पढ़ने के बाद मुंह से “वाह” निकलता है.
तो चलिए पढ़ते है आज की कहानी –
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राजा और अतिथि की पगड़ी – akbar birbal kahani
एक बार बादशाह अकबर ने बीरबल की चतुराई को परखने के लिए अकबर भरे दरबार मे एक साधारण सि पगड़ी लें कर आए जो दिखने मे बहुत सुंदर लग रही थीं.
अकबर ने बीरबल को पास बुलाया और यह पगड़ी उनके हाथो मे थमाते हुए बोले की, बीरबल
जाओ और इस पगड़ी को किसी दूसरे राज्य के राजा को 1 हज़ार स्वर्ण मुद्राओ मे बेच कर आओ. तुम्हारे पास 24 घंटे का वक़्त है.
अब बादशाह अकबर की बात कैसे काट सकते थे तो बीरबल ने कहा ठीक है जहाँपना. अकबर घर जाता है और विचार करता है की इस पगड़ी को इतने महंगे दाम मे कैसे बेचा जाए.
तब बीरबल के मन मे एक युक्ति आई.बीरबल ने उस पगड़ी को और सुंदर बनाने के लिए उसमे दो तीन कुछ कीमती चमचमाती मोती लगा दिये.
बीरबल तुरंत एक व्यापारी का भेस बदल कर दूसरे राज्य के राजा के दरबार मे हाजिर हुआ.
बीरबल के हाथ मे सुंदर पगड़ी को देख राजा बोला की आप कोई व्यापारी लगते हो.
। सारे दरबार के लोग उसकी तरफ देखते ही रह गए । उसने एक बड़ी शानदार पगड़ी पहन रखी थी ।
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वैसी पगड़ी उस देश में कभी नही देखी गयी थी । वह बहोत रंग – बिरंगी छापेदार थी । ऊपर चमकदार चीजे लगी थी । राजा ने पूछा – अतिथि ! क्या मै पूछ सकता हु की यह पगड़ी कितनी महंगी है और कहा से खरीदी गयी है ? बीरबल ने कहा – यह बहुत महंगी पगड़ी है ।
एक हजार स्वर्ण मुद्रा मुझे खर्च करनी पड़ी है ।
वजीर राजा की बगल में बैठा था । और वजीर स्वभावतः चालाक होते है , बजीर ने राजा के कान में कहा – सावधान ! यह पगड़ी बीस – पच्चीस रुपये से जादा की नही मालूम पड़ती । यह हजार स्वर्ण मुद्रा बता रहा है । इसका लूटने का इरादा है ।
बीरबल ने भी उस वजीर को , जो राजा के कान में कुछ कह रहा था , उसके चेहरे से पहचान लिया ।
वजीर ने जैसे ही अपना मुह राजा की कान से हटाया , बीरबल ने अपनज चाल चली, बीरबल शब्दों से खेलने लगे. बीरबल राजा की गरिमा का फायदा उठाते हुए.
नवांगतुक बोला – क्या मैं फिर लौट जाऊ ? मुझे कहाँ गया था की इस पगड़ी को खरीदने वाला सारी जमींन पर एक ही सम्राट है ।
एक ही राजा है । क्या मै लौट जाऊ इस दरबार से । और मैं समझू की यह दरबार , वह दरबार नही है जिसकी की मै खोज में हूँ ? मै कही और जाऊ ? मै बहुत से दरबारों से वापस आया हु ।
मुझे कहा गया है की एक ही राजा है इस ज़मीन पर , जो पगड़ी को एक हजार स्वर्ण मुद्राओं में खरीद सकता है । तो क्या मै लौट जाऊ ? क्या यह दरबार वह दरबार नही है ?
राजा झन्ना कर बोला बस चुप हो जाओ..
दो हजार स्वर्ण मुद्रा दो इसे और पगड़ी खरीद लो ।और इसे यहां से चलता करो.
वजीर बहुत हैरान हुवा । वहीं बीरबल एक हज़ार स्वर्ण मुद्राए लेकर वहाँ से चलता बना.
इस बीरबल ने 24 घंटे जे अंदर अपने तेज़ बुद्धि चतुराई का सहारा लेकर पगड़ी को एक हज़ार स्वर्ण मुद्राओ मे बेच कर बादशाह अकबर के दरबार मे हाजिर होगया.
बादशाह अकबर इस बार फिर से बीरबल की चतुराई से हैरान थे..
बादशाह अकबर एक बार फिर से बीरबल को भरी सभा मे सम्मानित किया खूबसूरत तारीफे की.
तो देखा दोस्तों ये थीं बीरबल की चतुराई. Akbar birbal ki ये kahani सभी दोस्तों को शेयर करें. ताकी वह भी बीरबल ki चतुराई का आनंद उठा सकें.
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