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Chandra shekhar azad biography in hind | inspirational biography

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Chandra shekhar azad biography in hindi – आज हम आपके लिए चंद्रशेकर आज़ाद की जीवनी ले कर आए है. चंद्रशेखर आज़ाद कौन थे और उन्होंने देश की आजादी के लिए क्या योगदान दिया सब कुछ जानेंगे विस्तार से.

Chandra shekhar azad biography

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दुश्मन की गोलियों का सामना हम करेंगे, आज़ाद ही है और आजाद ही रहेंगे।

ऐसा कहना था महान क्रांतिकारी चंद्र शेखर आजाद का, जिन्होंने जीवित रहते अंग्रेजों के हाथ ना आने की प्रतिज्ञा ली थी।

वे ज़ब तक जिंदा रहे तब तक आजाद रहे, और मरने के बाद, हमेशा के लिए आजाद हो गए।

आज जब भी भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की बात की जाती है तो उसमें चंद्र शेखर आजाद का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है। चंद्र शेखर आजाद ने अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों से

“अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिलाकर रख दी थी।”

 चंद्र शेखर आजाद कभी भी अपनी फोटो नहीं खिंचवाते थे। उनकी सिर्फ एक फोटो ही ज्ञात है, जो आज हम देखते है। वह फोटो भी उनके एक दोस्त रूद्र नारायण ने धोखे से क्लिक कर ली थी।

आज के इस लिख में हम आपको मात्र 24 साल की उम्र में वीरगति को प्राप्त करने वाले चंद्र शेखर आजाद के बारे में, कई ऐसी बाते बताएंगे, जिनके बारे में आपने पहले कभी नहीं सुना होगा। साथ ही उनकी मौत के कुछ ऐसे रहस्य भी आपको बताएंगे, जो आजतक दुनिया से छिपाकर रखे गए है।

Chandra shekhar azad biography hindi 

23 जुलाई, 1906 को, मध्य प्रदेश के झाबुआ डिस्ट्रिक्ट के भावरा में,,  एक बच्चे का जन्म हुआ जिसका नाम था, चंद्र शेखर तिवारी । चंद्र शेखर के पिता का नाम सीताराम तिवारी और माता का नाम जगरानी देवी था।

वैसे तो चंद्र शेखर का परिवार उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले का रहने वाला था, लेकिन सूखा पड़ने के कारण वे मध्य प्रदेश शिफ्ट कर गए थे। 

चंद्र शेखर बचपन से ही विद्रोही प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। 

वे हमेशा सोचते थे,  कि आखिर हम अपने ही देश में गुलाम बनकर क्यों रह रहे है। उनके भीतर बचपन से ही आजादी की चिंगारी भड़कनी शुरू हो गई थी।

चंद्र शेखर एक ब्राहमड परिवार से ताल्लुक रखते थे। उनकी मां चाहती थी,  कि वे काशी जाकर संस्कृत की पढ़ाई करें।

काशी उस समय विद्या के साथ साथ क्रांति का केंद्र भी हुआ करता था। 

लेकिन चंद्र शेखर को पढ़ाई में ज्यादा रूचि नहीं थी। वे तो बस भारत को आजाद कराना चाहते थे। 

पढ़ाई छोड़कर 14 साल की उम्र में,  उन्होंने मुंबई के बंदरगाह पर नौकरी करनी शुरू कर दी।

लेकिन यहां पर चंद्र शेखर को अहसास हुआ, कि यदि उन्हें रोटी खाने के लिए ही कमाना है तो वे अपने गांव में रहकर भी ये काम कर सकते थे। 

19 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने, पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। हर किसी के मन में अब अंग्रेजों के विरूद्ध आक्रोश पैदा हो रहा था। इसी समय चंद्र शेखर के भीतर का क्रांतिकारी बाहर आया।

साल 1921 में मात्र 15 साल की उम्र में ,चंद्र शेखर,   महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे असहयोग आंदोलन से जुड़ गए।

आंदोलन के दौरान उनकी गिरफ्तारी भी हुई और कई देशभक्तों के साथ वे जेल भी गए।

जेल जाने के बाद कोर्ट में जज के सामने उनकी पेशी हुई।

जज ने 15 साल के बच्चे से पूछा कि तुम्हारा नाम क्या है, उन्होंने कहा मेरा नाम आजाद है। जज ने पिता का नाम पूछा तो चंद्र शेखर ने जवाब दिया स्वतंत्रता और पता पूछने पर चंद्र शेखर ने जवाब दिया कारावास.

आजादी की चाह रखने वाले लोगों ने, जब 15 साल के युवा के मुंह से ये बाते सुनी तो हर कोई हैरान रह गया था। लेकिन उनके जवाब से ब्रिटिशर्स और जज तिलमिला उठे और चंद्र शेखर को 15 कोड़े मारने की सजा सुनाई गई।

15 कोड़े की सजा आसान नहीं थी। अच्छे अच्छे लोगों की चमड़ी उधड़ जाया करती थी। लेकिन वे तो चंद्र शेखर थे, हर कोड़े के बाद उनके मुंह से आवाज आई वंदेमातरम, भारत माता की जय। 

जेल से बाहर आने के बाद चंद्र शेखर तिवारी को, अब हर कोई चंद्र शेखर आजाद के नाम से जानने लगा था। साथ ही कुछ लोग उन्हें पंडितजी कहकर भी सम्बोधित किया करते थे।

1922 में महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन बंद कर दिया। चंदर शेखर आजाद बचपन में आदिवासियों के साथ काफी रहे थे, और उन्हें तीरंदाजी का भी शौक था। इसी वजह से उनका निशाना अचूक माना जाता था।

कुछ समय बाद चंद्र शेखर आजाद की मुलाकात मन्मथनाथ गुप्त से हुई, जो महान लेखक हुआ करते थे। उन्हीं के जरिए रामप्रसाद बिस्मिल्ल और अशफाकुल्लाह खां जैसे लोगों से भी आजाद का मिलना हुआ।

उन दिनों रामप्रसाद बिस्मिल्ल, हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के संस्थापक हुआ करते थे। उन्होंने आजाद का कोर्ट वाला किस्सा सुना था, जिससे वे काफी प्रभावित हुए थे। एचआरए में आजाद को फंड इकट्ठा करने का काम सौंपा गया,

 जो अधिकतर ब्रिटिशर्स के सामान चोरी करके इकट्ठा किया जाता था। एक बार आजाद ने ट्रेन लूटने का प्लान बनाया, जिसे आज पूरा भारत काकोरी कांड के नाम से जानता है।

हालांकि सरकार ने इसका नाम बदलकर काकोरी ट्रेन एक्शन कर दिया है। इस कांड के बाद आजाद बच निकले थे, और अब उनका कद काफी बढ़ गया था। 

उसी दौरान भारत में साइमन कमीशन का जमकर विरोध हो रहा था और एक विरोध प्रदर्शन में लाठी चार्ज के दौरान, लाला लाजपत राय जैसे महान क्रन्तिकारी की मृत्यु हो गई थी।

 उनकी मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह के साथ मिलकर आजाद ने अंग्रेजी डीएसपी जॉन सान्डर्स की हत्या का प्लान बनाया और उसमें सफल भी हुए।

इसके बाद चंद्र शेखर आजाद ने, आगरा मे बम बनाने का कारखाना शुरू किया।

भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल 1929 को, असेंबली पर जो बम फेंका था, वह बम आजाद ने ही बनाया था।

असेंबली पर बम फेंकने के बाद भगत सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया.

राजगुरू, भगत सिंह और सुखदेव को फांसी की सजा सुना दी गई। इनकी सजा कम कराने के लिए आजाद ने बहुत प्रयत्न किए। पहले उन्होने दुर्गा भाभी को गांधी जी के पास भेजा, लेकिन गांधी ने कहा कि दोषियों को सजा दी जानी चाहिए। असल में गांधी जी भगत सिंह की क्रांतिकारी विचारधारा का विरोध किया करते थे।

 वहीं ब्रिटिशर्स अधिकारी चंद्र शेखर आजाद को ढूंढने की भी कोशिश कर रहे थे। उनके ऊपर 5000 रुपए का इनाम भी घोषित किया गया था। वह झांसी में अपने दोस्त के यहां एक सुरंग बनाकर रहने लगे। कभी सन्यासी के वेश में तो कभी स्त्री का भेष भी उन्होंने धारण किया।

(चंद्रशेखर आज़ाद का जीवन परिचय )

27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में जब आजाद बैठे थे, तभी अचानक किसी ने अंग्रेजी अधिकारियों को आजाद के होने की सूचना दी। वह मुखबिरी किसने की, इसके बारे में हम आगे बताएंगे।

 अंग्रेज जैसे ही अल्फ्रेड पार्क पहुंचे तो आजाद और उनके साथी से नाम पूछा। जवाब में आजाद ने गोलियां चलानी शुरू कर दी। वह अकेले ही काफी देर तक पुलिस अधिकारी नॉट बाबर और ठाकुर विश्वेश्वर का सामना करते रहे.

इस दौरान चंद्र शेखर घायल हो गए और उन्होंने देखा कि उनकी गोलियां भी खत्म होने वाली है। जब उन्हें बचने का कोई उपाय नहीं दिखा तो उन्होंने बंदूक की अंतिम गोली खुद को मार ली।

अंग्रेजों के हाथ जीवित ना आने की प्रतिज्ञा पर वह अडिग रहे और सदैव के लिए आजाद हो गए।

चंद्र शेखर आजाद ने अपनी पिस्तौल का नाम बमतुल बुखारा रखा था, जो आज भी इलाहाबाद के म्यूज़ियम में रखी हुई है।

जिस पेड़ के नीचे आजाद ने खुद को गोली मारी थी, कुछ दिनों में ही वहां रोजाना भीड़ लगनी शुरू हो गई। पेड़ पर गोलियों के निशान थे। लोगों ने उन निशान पर सिंदूर, चंदन लगाना शुरू कर दिया और पेड़ की पूजा भी करने लगे थे।

 असल मे वे सब आजाद को श्रद्धांजलि देने के लिए ये सब कर रहे थे। ब्रिटिशर्स को डर हुआ कि कहीं मामला बिगड़ ना जाए, उन्होंने रातोंरात वह पेड़ कटवा दिया और वहां पर मिट्टी भरवाकर उसे समतल कर दिया। 

अब सबसे बड़ा सवाल ये आता है कि आखिर चंद्र शेखर आजाद की मुखबिरी किसने की। इस बारे में कई किताबों में लिखा गया है। विश्वनाथ द्वारा लिखी अमर शहीद चंद्र शेखर आजाद और क्रांतिकारी यशपाल की आत्मकथा, सिंहावलोकन की जानकारी के अनुसार,  27 फरवरी के दिन भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव की फांसी की सजा को माफ कराने के लिए ,  आजाद इलाहाबाद के आनंद भवन में नेहरू जी से मिलने पहुंचे थे।

साथ ही उन्होंने कहा था कि वे रूस जाकर स्टालिन से मिलना चाहते है, और स्टालिन ने उन्हें न्यौता भी दिया है। इसके लिए उन्हें 1200 रूपए की जरूरत थी। लेकिन नेहरू जी ने इसके लिए मना कर दिया था।

असल में कांग्रेस के लोग क्रांतिकारी विचारधारा के विरूद्ध थे। आजाद के जाने के बाद नेहरू ने अंग्रेजों को खबर दी कि आपको जिसकी तलाश है, वह अल्फ्रेड पार्क में तीन बजे तक रहेगा। जिन चंद्र शेखर आजाद को अंग्रेज इतने सालों में नहीं ढूंढ पाए थे, नेहरू जी की मुखबिरी के कारण अंग्रेजों ने उन्हें ढूंढ लिया। जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि एक अनजान शख्स उनके पास आया था, जो अपना नाम चंद्र शेखर आजाद बता रहा था। मैंने असहयोग आंदोलन के समय 10 साल पहले उसका नाम सुना था। उसने मुझसे 1200 रुपए की मांग की थी और मैंने कुछ समय बाद मदद करने की बात कही थी। 

चंद्र शेखर आजाद की डेडबॉडी उनके घरवालों या रिश्तेदारों को सौंपी भी नहीं गई। कहा जाता है कि एक रिश्तेदार बहुत दिनों तक उनकी बॉडी ढूंढने की कोशिश कर रहे था.

कभी नेहरू के पास तो कभी अस्पताल में तो कभी मैजिस्ट्रेट के पास उन्हें चक्कर कटवाते रहे। और अंत में जब उन्हें चंद्र शेखर आजाद की बाडी का पता चला तो वे वहां पहुंचे, लेकिन तब तक अंग्रेज मिट्टी का तेल डालकर उनकी बॉडी जला चुके थे।

बची हुई बॉडी का संस्कार उन्होंने पूरी विधि के साथ किया और त्रिवेणी संगम में चंद्र शेखर आजाद की अस्थियां विसर्जित की गई।

जिस पार्क में चंद्र शेखर आजाद शहीद हुए थे, उसका नाम अल्फ्रेड पार्क से बदलकर चंद्र शेखर आजाद पार्क कर दिया गया। और साथ ही आजादी के बाद उनके गांव धिमारपुरा का नाम भी आजादपुरा कर दिया गया। 

तो दोस्तों ये थी चंद्र शेखर आजाद के जन्म से लेकर शहीद होने तक की पूरी कहानी। उम्मीद करते है कि Chandra shekhar azad biography आपको  अच्छी लगी होगी।

Chandra shekhar azad biography से आज आपने बहुत कुछ सीखा होगा और अब आप अपने देश भारत का सम्मान करेंगे.. आजादी की क़ीमत समझेंगे.

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