page contents

best Bhakti kahani रेत की 4 ढेरियां

Spread the love

नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका एक बार फिर से एक और bhakti kahani  मे. जीवन मे हर किसी को भक्ति कहानियाँ पढ़ते रहना चाहिए. क्योंकि जीवन के बहुत से  ऐसे अध्यात्म ज्ञान होते है जो  भक्ति कहानियों के माध्यम से ही आप तक पहुँचाना सम्भव हो पाता है. 

एक भक्ति का ही मार्ग, ऐसा होता है जिससे हमें अंतर्मन तक सुकून की अनुभूती होती है. 

भक्ति कोई भी हो सकती है यह जरुरी नहीं की ईश्वर का नाम भजन सुमिरन करना ही ईश्वर की भक्ति है, बल्कि निःस्वार्थ होकर ज़ब हम दूसरों की मदद करते है,

ईमानदारी के साथ अपने काम को करते है, सच्चाई और नेकी के रास्ते पर चलकर अच्छे कर्म करते रहते है, तो यह सब भी ईश्वर की भक्ति करने के समान होता है. यही भक्ति का सही अर्थ है. 

 

रेत की चार ढेरिया – bhkati kahani 

Bhakti-kahani

एक राजा था, उसके कोई पुत्र नहीं था। राजा बहुत दिनों से पुत्र की प्राप्ति के लिए ईश्वर से लगाए बैठा था,

वक़्त बीतता गया लेकिन पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई, 

तब राजा के सलाहकारों ने, राजा को तांत्रिकों से सहयोग लेने को कहा।

 

राजा तांत्रिको से मिला. तांत्रिकों की तरफ से राजा को सुझाव मिला कि यदि किसी बच्चे की बलि दे दी जाए, तो राजा को पुत्र की प्राप्ति हो सकती है।

 

राजा ने राज्य में ढिंढोरा पिटवाया कि जो अपना बच्चा बलि चढाने के लिये राजा को देगा, उसे राजा की तरफ से, बहुत सारा धन दिया जाएगा।

एक परिवार में कई बच्चे थे, गरीबी भी बहुत थी। उसी परिवार मे  एक ऐसा बच्चा भी था, जिसका जादातर समय सत्संग और साधू संतो की वाणी सुनने मे निकलता. इस वजह से बच्चे की ईश्वर पर बहुत आस्था थीं वो ईश्वर की भक्ति किया करता. 

 

ज़ब राज्य के सभी लोगो सहित इस गरीब परिवार को राजा के इस इनाम का पता चला तो 

परिवार को लगा कि क्यों ना इसे राजा को दे दिया जाए ? क्योंकि ये निकम्मा है, कुछ काम -धाम भी नहीं करता है और हमारे किसी काम का भी नहीं है हमारा तो पेट भरता नहीं, कहा तक इसे बैठा कर खिलाते रहेंगे,

और फिर एक बच्चा कम होगया तो क्या फर्क पड़ता है. इसे देने पर राजा प्रसन्न होकर हमें बहुत सारा धन देगा।

 

इतना सोचते हुए बच्चा राजा को दे दिया गया।

 

राजा ने बच्चे के बदले उसके परिवार को काफी धन दिया। राजा के तांत्रिकों द्वारा बच्चे की बलि देने की तैयारी हो गई।

राजा को भी बुला लिया गया,

राजा और तांत्रिक दोनों के द्वारा बच्चे से यह पूछा गया  कि तुम्हारी आखिरी इच्छा क्या है ? 

 

*बच्चे ने कहा कि, मेरे लिए रेत मँगा दी जाए, राजा ने कहा, बच्चे की इच्छा पूरी की जाये । अतः रेत मंगाया गया। बच्चे ने रेत से चार ढेर बनाए, एक-एक करके बच्चे ने तीन रेत के ढेरों को बुरी तरह से तोड़ दिया और चौथे के सामने हाथ जोड़कर बैठ गया और उसने राजा से कहा कि अब जो करना है आप लोग कर लें।

 

यह सब देखकर तांत्रिक डर गए और उन्होंने बच्चे से पूछा पहले तुम यह बताओ कि ये तुमने क्या किया है?और क्योंकि किया? 

 

*राजा ने भी यही सवाल बच्चे से पूछा ।

 

तो बच्चे ने कहा कि पहली ढेरी मेरे माता-पिता की थी। मेरी रक्षा करना उनका कर्त्तव्य था । परंतु उन्होंने अपने स्वार्थ और लालच मे अंधे होकर ममता की बलि दे दी. 

 

कर्त्तव्य का पालन न करके, पैसे के लिए मुझे बेच दिया, इसलिए मैंने ये ढेरी तोड़ी दी।

 

दूसरी ढ़ेरी मेरे सगे-सम्बन्धियों की थी, परंतु उन्होंने भी मेरे माता-पिता को नहीं समझाया। अतः मैंने दूसरी ढ़ेरी को भी तोड़ दिया और तीसरी ढ़ेरी, हे राजन आपकी थी क्योंकि राज्य की प्रजा की रक्षा करना राजा का ही धर्म होता है, परन्तु जब राजा ही अधर्म के मार्ग पर चलकर  मेरी बलि देना चाह रहा है तो ये ढेरी भी मैंने तोड़ दी।

 

 

और चौथी ढ़ेरी, मेरे ईश्वर की है। अब सिर्फ और सिर्फ अपने ईश्वर पर ही मुझे भरोसा है। इसलिए यह एक ढेरी मैंने छोड़ दी है।*

बच्चे का उत्तर सुनकर राजा अंदर तक हिल गया।मन ही मन राजा तर्क करने लगा विचार करने लगा की, ये मैं कैसा अधर्म  करने जा रहा था, भला अधर्म के रास्ते पर चल कर मुझे पुत्र की प्राप्ति कैसे हो सकती है. 

इतना सोचते हुए राजा ने अपने मन से बच्चे की बलि देने का विचार निकाल फैका. राजा ने बच्चे के बलि रुकवा दी. 

इतना करते ही तुरंत राजा के मन मे ये ख्याल आगया की ये बच्चा ! अरे क्यों ना ये बच्चा मैं पालू इसे अपना पुत्र बना लू अपने पास रखु. आखिरकार इतनी ज्ञानी और ईश्वरप्रेमी बच्चा मुझे कहाँ मिलेगा. 

इतना सोचते  हुए राजा ने बच्चे को सीने से लगा लिए और एलान कर दिया की आज से ये मेरा पुत्र है. मैं इसे गोद लेता हूं. 

राजा फूट फूट कर रोने लगा और खुद को कोसने लगा की में मूर्ख अपनी कामना मे इतनी लिप्त हो गया  था की धर्म अधर्म मे फर्क ही ना जान सका. 

इस पुत्र मोह मे मेरा मन इतना अंधा हो गया की ईश्वर ने मुझे पुत्र दे दिया है इस बात को समझ ही ना पाया देख ही नहीं पाया. 

 

इस bhakti kahani से हमे क्या सीखने को मिला 

  • इस bhakti kahani से हमने सीखा की यह एक अटल सत्य है। जो मनुष्य हर मुश्किल में, केवल और केवल ईश्वर का ही आसरा रखते हैं, उनपर आस्था, श्रद्धा, विश्वास रखते है, उनका कहीं से भी किसी भी प्रकार का कोई अहित नहीं हो सकता।
  • इस bhakti kahani से हमने सीखा की बस निःस्वार्थ होकर अच्छे कर्म करने की देरी है ईश्वर यानी  हमारे अच्छे कर्म हमारे सारे बिगड़े काम संवार देते है. 
  • संसार में सभी रिश्ते झूठे हैं। केवल और केवल एक प्रभु का नाम ही सत्य है।

 

भक्ति कहानियों से मिलने वाले अनेको महत्वपूर्ण ज्ञान जीवन को सुखदाई बनाने मे  बहुत बड़ी भूमिका निभाते है.

तो मित्रो, यह bhakti kahani आपको कैसी लगी? इस bhakti kahani से आज आप क्या सीखे?  कमेंट करके जरूर बताना. 

ऐसी ही और भी तमाम भक्ति कहानियाँ पढ़ने के लिए नीचे तमाम पोस्ट मे चुनाव करें.

इन्हे भी जरूर पढे

धार्मिक कहानियों का रोचक सफर

 

रोचक कहानियाँ 

 

moral-stories-in-hindi

 

महाभारत काल की अद्भुत ज्ञान से भरी  एक सच्ची ऐतिहासिक घटना – ? इस video को ?? लगाकर एक बार जरूर देखे.

 

 

तो दोस्तों ज्ञान से भरी यह video कैसी लगी? ऐसी ही और भी तमाम videos देखने के लिए नीचे दिये गए लाल बटन पर clik करो (दबाओ) ?

Hindi-moral-stories
Hindi moral stories videos

जरूर पढ़े – गरुनपुराण के अनुसार – मरने के बाद का सफर

religious-stories-in-hindi

Religious-stories-in-hindi

 


Spread the love

Leave a Comment

mauryamotivation