dharmik katha hindi धार्मिक कथा – दोस्तों स्वागत है आपका धार्मिक कहानियों की इस रोचक दुनिया मे | यहाँ पर आपको motivational stories के साथ moral stories से मिलने वाले ज्ञान से रुबारू करवाया जाता है |
dharmik katha मे हम आपको धार्मिक ज्ञान से जुड़े ऐसे तथ्यों से रूबरू करवाते है जिसके बारे मे बहुत कम लोग ही परिचित होते है |
आज कल इंटरनेट का जमाना है जिस वजह से किताबों का चलन अब इतना नहीं रहा तो इस aबात को ध्यान मे रखते हु हम उन्ही धार्मिक किताबों से उस ज्ञान को उठा कर आप तक लेकर आए है |
कुछ धार्मिक ज्ञान ऐसे होते है जिसे हम dharmik katha की मदद से आप तक पहुंचाते है |
दोस्तो ऐसी ही हजारो शिक्षा प्रद , लोकप्रिय और रोचक कहानियों का सफर हम आप तक लेकर आए है जिन्हे लोगों ने बचपन मे अपने दादा दादी – या नाना- नानी से सुनी होती है या फिर टीवी मे देखी होती है |
लेकिन यहाँ पर आपको ऐसी बहुत सी शिक्षा प्रद , लोकप्रिय और रोचक कहानियाँ मिलेंगी जिसे शायद ही आपने कही सुनी होंगी | तो पढ़ते रहिए ऐसी कहानियाँ और सीखते रहिए एक नई सीख ,साथ मे ऐसी शिक्षा प्रद कहानियाँ अपने दोस्तो को भी शेयर करते रहिए |
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dharmik katha hindi – कलयुग का अद्भुत भक्त हरिदास खान vsसुंदर वेश्या
दोस्तो सतयुग से त्रेता युग फिर त्रेता युग से द्वापर युग फिर द्वापर युग से कलयुग तक बहुत कम इंसान ही एसे हुए है जो संसार मे ईश्वर के प्रति अपनी परम भक्ति और श्रद्धा के सागर माने गए है |
सतयुग से कलयुग तक हमने महान शिव भक्त रावण ,श्री राम भक्त हनुमान जी ,विष्णु भक्त प्रहलाद , श्री कृष्ण भक्त सुदामा ,मीरा ,और राधा जी ,तथा ईश्वर के परम भक्त साई बाबा और गुरु नानक देव जी जैसे अवतारी पुरुषो के बारे जान कर अपना जीवन धन्य किया है |
लेकिन आज हम बात करेंगे कलयुग मे जन्म लेने वाले एक ऐसे महान ईश्वर भक्त की जो की एक मुस्लिम परिवार मे पैदा हुए थे | जी हाँ हम बात कर रहे है ईश्वर के महान भक्त “हरिदास” जी की जिन्होने भक्ति की की दुनियाँ मे एक बहुत ऊंचा नाम कमाया |
ऐसे महान भक्त धरती पर बहुत कम ही पैदा होते है | जिसे ईश्वर की सच्ची भक्ति का मोह लग जाता है उसके सामने संसार की हर मोह माया फीकी पड़ जाती है |
तो चलिये शुरू करते है भक्त हरिदास के जीवन की अद्भुत भक्ति की कहानी
हरिदास जी का जन्म यशोहर जिले के एक छोटे से गाँव बूड़न मे गरीब मुस्लिम परिवार मे हुआ था | यहाँ गाँव आज के समय मे बांग्लादेश मे है | जब हरिदास जी का जन्म हुआ था तब बांग्लादेश भारत का ही हिस्सा हुआ करता था |
इस गाँव मे एक गरीब मुस्लिम परिवार रहता था इसी परिवार हरिदास खां का जन्म हुआ था | कहा जाता है की हरिदास के पूर्वजन्म के ही स्वभाव तथा संस्कार ही थे जीके चलते बाल्यकाल से ही हरिदास खां की श्रद्धा हरी नाम जपने मे थी |
जैसे जैसे वह अपने उम्र की किशोर अवस्था तक पहुंचे तब अपनी भक्ति चलते उन्होने अपना घर और ग्रहस्थ जीवन त्याग कर वैराग्य ले लिया |
इसके वन ग्राम के समीप हरिदास खां ने एक छोटी सी कुटिया बना ली और उसी मे रहने लगे | हरिदास खां बहुत ही शांतिप्रिय और धैर्यवान साधू थे |कशा उनका गुण था तथा निर्भयता उनका आभूषण | हरिदास खां रोजाना 3 लाख हरी का नाम करते थे |
और जप भी ज़ोर ज़ोर से ऊची आवाज मे करते थे | एक दिन ऐसे ही वह ज़ोर ज़ोर से जाप कर रहे थे उनकी आवाज वहाँ से गुजर रहे एक आदमी के कानो मे पड़ी तो वह हरिदास खां के पास आया और कहने लगा की आप इस
इतना ऊचा बोल कर क्यो जप कर रहे हो ? आराम से भी तो कर सकते हो ? भगवान बहरे नहीं है मन मे भी जाप करोगे तो आपकी आवाज उन तक जरूर पहुंचेगी |
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यह सुन हरिदास खां मुस्कराए भारऔर बोले जी हाँ महानुभाव आप कदाचित सत्य ही कह रहे हैं किन्तु मेरा इस ऊची आवाज मे जप करने मकसद भगवान को आवाज सुनाना नहीं है |
वो व्यक्ति बोला – तो फिर क्यो इस प्रकार से हरी के नाम का गुणगान ऊची आवाज़ मे कर रहे हो ?
तब हरिदास खां बोले – हे महानुभाव! हरी नाम का जप ओर गुणगान बहुत ही अलौकिक पूर्ण प्रक्रिया है हरी नाम को बोलने वाला या सुनने वाला कई प्रकार के दुखो से मुक्ति पा जाता है तथा ईश्वर की किरपा प्राप्त होती है नरक से मुक्ति मिलती है |
इसी वजह से हरी नाम का जप और गुणगान ऊची आवाज़ मे करता हु ताकि आस पास जहां तक भी मेरी आवाज पहुँच सके वहाँ मौजूद हर छोटे बड़े जीव जन्तु तक पहुँच सके ताकि वह भी अपने इस दुर्लभ जीवन से मुक्त हो कर मोक्ष प्राप्त कर सके |
इस हरी के निरंतर तेज स्वर जाप से आस पास का तमाम वातावरण हरी नाम से शुद्ध हो जाता है और चरो तरफ सकारात्मक ऊर्जा काम करने लगती है |
हरिदास खां की इस बात को सुन कर वह व्यक्ति संतुष्ट हो गया | इस प्रकार धीरे धीरे हरिदास खां की ख्याति बढ़ती जा रही थी |
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बहुत से लोग उनसे इतने प्रभावित हुए की वह भी ईश्वर भक्ति मे लीन हो गए रोज जप करने लगे | बहुत से लोग ऐसे भी थे जो हरिदास खां के प्रति बढ़ते लोगो मे लोकप्रियता से बहुत जलते थे |
जिनमे से रामचन्द्र खां नाम का एक जमीदार था | उसने हरिदास खां की साधना और किर्ति को नष्ट करने के लिए एक क्षणयंत्र रचा और एक वेश्या को धन का लालच दिया |
वेश्या तो थी भी एसी जो धन के लिए कुछ भी कर सकती थी | वेश्या तुरंत रामचन्द्र खां की बातों मे आकार उसकी बात मान गई |
वेश्या बहुत ही खूबसूरत थी | वेश्या ने रात को खूब साज शृंगार किया और हरिदास खां की कुटिया की ओर चल देती है |
जब वेश्या कुटिया मे पहुंची तो हरिदास खां हरी की भक्ति मे लीन थे |
हरिदास खां के मुख के तेज और सौंदर्य को देख कर वेश्या मे तीव्र कामवासना जागी | वह पूरी तरह निर्वस्त्र हो गई और हरिदास खां के चारों तरफ नृत्य करने लगी हरिदास खां को स्पर्श करने लगी |
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इस प्रकार रात्री भर वेश्या निर्लज्ज हो कर हरिदास की समाधि भंग करने का प्रयास करती रही परंतु वह अपनी इस मंशा मे सफल न हो सकी |
सुबह होते ही वेश्या ने अपने वस्त्र पहने और जैसे ही चलने को तैयार हुई
तभी हरिदास खां ने बोला – देवी ! आप कौन हो और कब से यहाँ हो ? मैं क्षमा चाहता हूँ आपसे हरी भक्ति के आनंद मे लीन ररहने की वजह से मैं आप पर ध्यान न दे सका और बाते नहीं कर पाया | किरप्या बताएं आप यहाँ किस प्रयोजन से आई थी |
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उस समय वेश्या ने हरिदास खां की किसी भी बात का जवाब दिये बिना बस मुस्करा कर चली गई |
इस तरह वह वेश्या तीन दिनो तक अपनी इसी निर्लज्ज प्रक्रिया के द्वारा हरिदास खां के साधना को भंग करने का प्रयास करती रही |
लेकिन वह अपनी इस मंशा मे तनिक भी सफल न हो पाई |
चौथे दिन वेश्या कुटिया मे जाने की हिम्मत कर पाई और एक ही बात बार बार सोच कर वेश्या को अंदर से ग्लानि हो उठी की – जो मुझ तक परम सुंदरी का आभास तक नहीं करता तथा अपनी ही धुन मे लीन रहता है |
तो निश्चय ही इसे किसी अलौकिक आनंद की प्राप्ति हो रही है | अवश्य ही इसे कोई अन्य ऐसा आनंद प्राप्त हो रहा है जिसके समक्ष संसार का हर आनंद माया इसके सामने फीके लगते है |
इस विचारधारा के चलते अब वेश्या मे भी उस परम आनंद को पाने की तीव्र इच्छा प्रकट हुई |
इसके बाद वेश्या ने हार मान ली और उस वेश्या को खुद से ही नफरत होने लगी उसकी आखों से अश्रु धारा बहने लगी |
लगातार तीन दिनो तक वेश्या के कानो मे हरी नाम का जप जाता रहा जिसकी वजह से चौथे दिन दिन वेश्या पूरी तरह से बदल चुकी थी ,
उसके मन मस्तिष्क मे सिर्फ एक ही आवाज गूंज रही थी वो थी हरी के नाम की | तीन दिनो तक लगातार वेश्या के कानों मे हरिदास खां के द्वारा की जा रही हरी भक्ति नाम की अमृत धारा वेश्या के कानो से होते हुए उसके पूरे अन्तःकरण मे इस प्रकार बस चुकी थी की वेश्या का पूरा अन्तःकरण अब शुद्ध हो चुका था | वह हरिमय हो चुकी थी |
वेश्या ने तुरंत अपनी वेषभूषा बदली और एक साध्वी की वेश भूषा धरण कर हरिदास खां
समक्ष जा पहुंची और उनके चरणों मे खुद को समर्पित कर दिया | हरिदास खां ने उस स्त्री को उठाया और हरी नाम तथा भक्ति की दीक्षा देकर उसे तापिस्वनी बना दिया |
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अब वह स्त्री सदमार्ग पर चलने लगी तथा हरी भक्ति करने लगी अब वह स्त्री भी उसी आनंद की प्राप्ति कर पा रही थी जिस हरी भक्ति के आनंद रस मे डूब कर हरिदास खां जी गोते लगते थे |
हरिदास खां अब वह कुटिया और स्थान उस स्त्री को सौप कर स्वयं हरी नाम का प्रचार करने के लिए वहाँ से चले गए | इस प्रकार हरी नाम तथा भक्ति के परम अद्भुत प्रभाव के चलते एक वेश्या बहुत बड़ी साध्वी बन गई |
इधर हरिदास खां शांतिपुर नाम के एक नगर मे पहुंचे |
इस नगर मे मुस्लिम शासन था | वहाँ कई हिन्दू भी रहते थे | मुस्लिम शासन और क्रूर शासको की वजह से आए दिन वह हिंदुओं को धर्म और भक्ति के नाम पर प्रताड़ित किया जाता था |
अब ऐसे मे वहाँ हरिदास खां को हिन्दू ईश्वर की भक्ति करता देख कुछ मुस्लिम वर्ग बहुत क्रोधित हुआ जिसके चलते यह बात नगर के बादशाह तक पहुंची |हरिदास खां को बादशाह के सामने लाया गया | बादशाह ने हरिदास खां को कारागार मे डाल दिया |
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हरिदास खां के बहुत से हिन्दू भक्तो को जब यह बात पता चली तो वह सब इसे बादशाह का अन्याय बोलते हुए बादशाह को बुरा भला कहने लगे चारों तरफ बादशाह की बुराई होने लगी |
वहाँ कारागार मे भी हरिदास खां के मनमोहक रूप और हरी भक्ति से प्रभावित हो कर बहुत से कैदी उनके भक्त बन गए | इस प्रकार स्थिति काबू से बाहर होते देख कर अधिकारियों ने हरिदास खां पर मुकदमा चलाया | हरिदास खां को काजी के सामने लाया गया |
काजी साहब बोले – हरिदास! यह तुम्हारा बहुत अच्छा भाग्य है की तुम एक मुस्लिम परिवार मे जन्मे फिर भी तुम काफिरों(हिन्दुओ) के देवताओं का नाम क्यों जपते हो और उनके जैसा ही आचरण करते हो | हम तो हिन्दू के घर का पानी भी नहीं पीते |
और तुम हिंदुओं के साथ रहते हो खाते पीते हो और उन्ही के भगवान का नमा जपते हो |
यह सब करना बंद कर दो वरना जहन्नुम की आग मे जलोगे | इसलिए यदि खुदा के इस कहर से बचना चाहते हो तो यह अभी से छोड़ दो और कलमा पढ़ना शुरू कर दो इबादत करना शुरू कर दो |हो सकता है खुदा तुम्हें माफ कर दें |
यह सब सुन हरिदास खां बोलते है – हे काजी साहब ! आप इतने ज्ञानी होकर इतनी छोटी बातें क्यों करते हैं ? एसी बाते कर के आपने अपने सीमित ज्ञान का परिचय दे दिया हैं |
काजी साहब कौन हिन्दू और कौन मुस्लिम कौन किसका खुदा है और कौन किसका भगवान है इस किस्से को तो आप ही सुलझाएँ हम तो बस एक ही ईश्वर को जानते है जो समस्त संसार को चलाता है और हर इंसान के दिलों मे बसता है | हम तो बस उन्ही के हैं , हरी बोल हरी बोल ,हरी बोल , हरे कृष्णा हरे कृष्णा , कृष्णा कृष्णा हरे हरे |
यह सब बोल हरिदास खां फिर से अपनी भक्ति मे लीन हो जाते है | हरिदास खां की इस हरकत को देख कर वहाँ उपस्थित काजी साहब सहित सभी मुस्लिम अधिकारी गुस्से से आग बबूला हो जाते है |
काजी साहब गुस्से मे चिल्लाते हुए बोले – इस काफिर को पूरे बाजार मे घुमाओं और इसकी पीठ पर कोड़े बरसाओ |तब तक लगाओ जब तक यह अधमरा न हो जाए |
मुस्लिम सैनिको ने वैसा ही किया हरिदास खां को बाजार मे जया गया हरिदास खा ने हरी भक्ति की किरपा से अपनी प्राण शक्ति को केंद्र मे स्थिर कर लिया |
जिसके चलते चाबुक की मार से उनके मुंह से उफ तक न निकला | देखते ही देखते पूरा बाजार लोगो की भीड़ से भर गया |इस नजारे को देख बाजार मे उपस्थित सभी ने अपने दांतों तले उंगली दबा ली |
हरिदास खां को मार रहे सैनिक भी अब घबरा रहे थे की इस इंसान ने उफ तक न किया और सेहनशीलता की सारी हदे पार कर दी |
इस तरह यह सिन्सिला कुछ देर तक और चलता रहा फिर मरने वाले सभी सैनिक थक कर वहीं गिर गए |
इधर हरिदास खां जमीन मे एक जिंदा लाश बन कर पड़े हुए थे |
सैनिको ने हरिदास खां को मरा हुआ जानकर उन्हे नगर से बाहर नदी मे लेजाकर फेंक दिया और वहाँ से चले गए |
वो कहते हैं न की जाको राखे साइयाँ मार सके न कोए बाल न बाका कर सकै चाहे पूरा जग वैरी होए – जिसकी डोरी स्वयं जगन्नाथ जी ने थाम रखी हो उसे कौन मार सकता है |
केंद्र मे स्थिर प्राण शक्ति स्वयं ही हरिदास के पूरे शरीर मे समाहित हो उठी जिसके चलते कुछ समय बाद हरिदास खां फिर से चेतनन्य हो कर जीवित नदी से बाहर निकल आए |और फिर से हरी नाम का जाप करते करते वहाँ से चले गए |
तो दोस्तो यह थी कलयुग मे जन्मे ईश्वर के महान भक्त हरिदास खां की सच्ची कहानी |
यह dharmik katha hindi आपको कैसी लगी जरूर बताना |
इस dharmik katha hindi से हमने क्या सीखा |
इस dharmik katha hindi से हमे यह सीख मिलती है की जीवन मे हमेशा ईश्वर की भ्कती करे उनका नाम जपे चाहे आप किसी भी
धर्म से हो अपने धर्म और ईश्वर के प्रती पूरी श्रद्धा और विश्वश रखे |
इस dharmik katha hindi से हमने सीखा की कभी भी कसी के धर्म को गलत न कहे किसी भी दूसरे धर्म प्रती गलत बाते न बोले |
धर्म के प्रति गलत बाते बोलने वाले और झूठी अफवाह फैलाने वाले लोगो से हमेशा दूरी बना कर रखे क्योकि ऐसे
घटिया और गंदे विचारधारा के लोगो का मकसद धर्म को लेकर लोगो मे आपसी बैर करवा कर फूट डलवाना होता है |
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