नमस्कार दोस्तों स्वागत है फिर से आपका ज्ञान से भरी एक और कहानी बल और विद्या moral story में.
चलिए आज की कहानी में जानते है की कैसे एक महात्मा ने अपने शिष्य की जिज्ञासा को एक सच्ची घटना बता कर शांत किया.
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बल और विज्ञा moral story
एक महात्मा अपने 5 शिस्यों के साथ पैदल यात्रा कर रहे थे . बहुत लम्बा सफर तय करने जे बाद महात्मा – अपने शिष्यों सहित थकान मिटाने के लिये एक पेड़ की छाँव तले बैठ गए.
उनमे से एक शिष्य ने बड़ी ही जिज्ञासा वश महात्मा जी से पूछा की,- गुरु जी! क्या ज्ञान को बल और हिंसा पूर्वक भी प्राप्त किया जा सकता है?
महात्मा जी उत्तर देते हुए बोले – ज्ञान को कभी भी बल पूर्वक प्राप्त नहीं किया जा सकता. फिर चाहे वो ज्ञान हम प्रकृति से प्राप्त कर रहे हो या मनुष्य से.
कोई गुरु अपने शिष्य को ज्ञान या कोई भी अनमोल विद्या देने के लिये तब तक तैयार नहीं होता ज़ब तक गुरु उस शिष्य की, विनम्रता, शिस्टाचार, बोल बाणी, चरित्र, से संतुष्ट नहीं हो जाता.
ज्ञान प्राप्त करने के लिये मनुष्य मे प्रेम, समर्पण की भावना ,जिज्ञासा व इच्छाशक्ति का होना अती आवश्यक है.
चलो मै आपको इससे सम्बंधित एक बहुत सच्ची घटना बताता हूं.
एक बार राजा के एक छोटे से मंत्री ने एक गरीब कुम्हार को सोने जैसे बर्तन मे खाना खाते देखा तो वह सोचने लगा की इस निर्धन दरिद्र के पास ये स्वर्ण की भाती चमकता हुआ बर्तन कैसे. चलो पता लगाए की ये बर्तन क्या वाकई सोना है या कुछ और.
पता लगाने मंत्री कुम्हार के पास गया और उससे वो बर्तन छीन लिया, हाथ मे पकड़ कर बर्तन को ज़ब ध्यान से देखा तो वो वाकई सोने का ही बर्तन था.
मंत्री को समझ नहीं आरहा था की ये सोने का बर्तन आखिर इस दरिद्र के पास कैसे.
मंत्री, उस गरीब कुम्हार पर क्रोधित लहज़े मे बोला, ये सोने का बर्तन तेरे पास कैसे?बता! कहाँ से चोरी किया.
ये बर्तन तो राज महल का जान पड़ता है, बता कैसे चुराया तूने राजा का ये बर्तन. चल राजा साहब के पास.
बिचारा कुम्हार हाथ जोड़े अपनी सफाई देता रहा लेकिन उस मंत्री ने एक ना सुनी और उसे घसीट कर राज दरबार ले गया.
वहाँ मंत्री ने सब राजा को बताया.
तब राजा के पूछने पर कुम्हार ने बताया की मै पीतल के बर्तन को सोने मे बदलने की विद्या जानता हूं.
यह सुनते ही राजा सहित वहां मौजूद सभी के कान खड़े हो गए.
राजा ने पूछा की ये विद्या तुम्हारे पास कैसे? किसने सिखाई तुम्हे ये विद्या?
कुम्हार बोला, राजा साहब, यह विद्या मुझे उस तेजस्वी संत ने सिखाई जो अभी कुछ दिन पहले हमारे राज्य मे आए थे.
यह सुन राजा तुरंत बोला की, यदि ऐसा है तो तुम्हे मुझे यह विद्या सीखनी होगी, और अब से तुम इस राज महल से बाहर नहीं जा सकते किसी से भी मिल नहीं सकते ज़ब तक मै तुमसे विद्या सीख नहीं लेता तुम आज से इसी राज दरबार मे रह कर मेरे लिये पीतल को स्वर्ण मे बदल कर दोगे.
कुम्हार बोला, क्षमा कीजिये महारज लेकिन ऐसा नहीं हो सकता, क्योंकि मै खुद नहीं जानता की यह विद्या क्या है और कैसे सिखाई जाती है, मैंने तो बस उसए महात्मा की मन लगा कर सेवा की थी, तो उन्होंने मेरी सेवा भावना से प्रसन्न होकर स्वयं ही उन्होंने मुझे यह विद्या सिखाई. उन्होंने मुझे अपनी आँख और मुट्ठी को बंद करने के लिये बोला फिर वो बस मेरे पास आए और मेरे कानो मे कुछ मंत्र बोले, उसके बाद उन्होंने मुझे मुट्ठी खोलने को कहा, मुट्ठी खुलते ही उन्होंने अपना हाथ मेरे हाथों पर रखा.
फिर उन्होंने बोला की अब तुम आँख खोलो, अब से तुम किसी भी पीतल की धातू को स्वर्ण मे बदल सकते हो बस तुम दिल से ज़ब भी अपना बाया हाथ किसी पीतल की धातू पर रखोगे तो वो सोने मे बदल जाएगी.
ध्यान रहे जैसे ही इस विद्या का जैसे ही दुरूपयोग होगा ये विद्या नष्ट हो जाएगी.
राजा ये सुन परेशान हो गया. उसने सोचा यह कुम्हार तो अब मेरे किसी काम का नहीं. मुझे जल्द से जल्द उस सन्यासी का पता लगाना होगा.
राजा ने अपने सभी सैनिको को उस सन्यासी को खोज कर अपने दरबार मे उपस्थित करने का हुक्म दिया.
24 घंटे मे सन्यासी को खोज कर राजा के दरबार मे उपस्थित किया गया.
राजा ने सन्यासी को बोला की तुम्हे मुझे इस कुम्हार की तरह पीतल की धातू को स्वर्ण मे बदलने की विद्या सिखानी होगी.
सन्यासी ने विद्या सिखाने से तुरंत मना कर दिया.
राजा बहुत क्रोधित हुआ और बोला लगता है तुम्हे अपनी जान प्यारी नहीं. इतने मे मंत्री चुपके से बोला राजा जी शांत हो जाए, गुस्से को काबू मे रखे आवेश मे आकर ऐसा अनर्थ मत करना वरना आप इस विद्या से वंचित रह जाएंगे. क्योंकि ये विद्या सिर्फ ये सन्यासी ही जानता है.
राजा ने कहा, मै तुम्हे 30 दिन का वक़्त देता हूं तब तक के लिये तुम इसी राज्य मे रहोगे मै तुम्हे राज्य से बाहर नहीं जाने दूंगा.
राजा रात को ज़ब सोने गया तो उसने सोचा की ये सन्यासी बहुत निडर है इसे मौत का ख़ौफ़ नहीं. बल पूर्वक मै ये विद्या कभी हासिल नहीं कर पाउँगा.
राजा भेश बदल कर सन्यासी के पास गया और मन लगा कर पूरी भावना से प्रेम से सन्यासी की सेवा की.
सन्यासी राजा की सेवा से बहुत प्रसन्न हुए. सन्यासी ने बोला कहो क्या इच्छा है तुम्हारी. राजा ने बोला मै धातू को स्वर्ण में बदलने की विद्या सीखना चाहता हूं.
सन्यासी बोला! क्या करोगे यर विद्या सीख कर.
राजा बोला! प्रजा की भलाई करूंगा. अपनी प्रजा को सुख शांति व समृद्धि प्रदान करने का प्रयास करूंगा.
तब जाकर सन्यासी ने राजा को ये विद्या दे दी और साथ मे कहा की, तुम जैसे ही इस विद्या का दुरूपयोग करोगे यर्ह विद्या नष्ट हो जाएगी.
महात्मा जी के शिष्य समझ गए की विद्या को बलपूर्वक प्राप्त नहीं किया जा सकता.
बल और विद्या moral story कहानी से सीख
तो दोस्तों इस कहानी से हमें सीख मिलती है की ज्ञान विद्या प्राप्त करने के लिये खुद को गुरु के सामने दिल से समर्पित करना पड़रा है. और मन साफ रखना पड़ता है.
उम्मीद करता हूं इस बल और विद्या moral story से बहुत सीख मिली होगी.
हम अपने blog पर ऐसी ही तमाम शिक्षाप्रद कहानियाँ लाते रहते है हमसे जुड़े रहे और अपने ज्ञान मे इज़ाफ़ा करते रहे.
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