नैतिक कहानी – सुखी शासन – नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका आज की नैतिक कहानी मे, हमारी आज की कहानी है सूखी – शासन. ये कहानी है मनीराम की जो एक बड़े कबीके का शासक होता है.inspirational story
नैतिक कहानी – सुखी शासन
मनीराम रावल नदी के पार के जंगल में रहता था। उस जंगल मे एक बहुत ही बड़ा कबीला था.
मनीराम जब अपने कबीले का राजा बना तो प्रजा के पास पेट भर खाने को भी नहीं था ।
अधिकतर स्त्री और पुरुष प्रायः इधर-उधर भूखे ही घूमते रहते थे। उस जंगल के खेतों में न तो पूरी मात्रा में अन्न ही उगता था और न कहीं फल-सब्जिया उग पाती थी..
राजा बनते ही मनीराम ने सोचा- ‘किसी के पास और कुछ चाहे हो न हो, पर पेट भर भोजन तो सबको मिलना ही चाहिये । प्रजा का भरण-पोषण करना राजा का काम है । जो राजा ऐसा नहीं करता, उसके राज्य में लूट-मार और दंगे-फसाद होते रहते हैं ।
इतना सोच, मनीराम ने अपने राज्य के परिश्रमी लोगों को इकट्ठा किया। मनीराम ने सभी प्रेरित किया.
इसके बाद सभी ने मिल-जुलकर कई दिनों तक कठोर परिश्रम करके जंगल की बंजर जमीन साफ की । उसकी खूब खुदाई की और खाद-पानी डालकर उसे उपजाऊ बनाया । इसके बाद मोंठ, बाजरा, मकई आदि की फसल बो दी ।
मनीराम ने खेती का काम केवल अपने साथी कर्मचारियों पर न छोड़ा । वह जानता था कि सभी अपने ढंग से, अपनी इच्छा से काम करते हैं, पर हम यह चाहते हैं कि कोई काम वैसा ही हो जैसा कि हम चाहते हैं, तो उसमें जुटना होगा ।
खेती की देखभाल, गुड़ाई और सिंचाई में औरों के साथ-साथ मनीराम खुद भी रात-दिन लगा रहता था । जुहीरी को इस प्रकार जुटे रहते देखकर उसके सेवकों को भी प्रेरणा मिलती थी, वे तन-मन से लगे रहते थे ।
परिश्रम का फल सदैव मीठा होता है । जो जितनी अच्छी प्रकार श्रम करता है उसकी इच्छायें भी उतनी ही अच्छी तरह से पूरी हुआ करती हैं । परिश्रम करने वाले की
देवता भी सहायता करते हैं । इस वर्ष! वर्षा भरपूर हुई । फिर क्या था, मनीराम के सारे खेत कुछ ही दिनों में लहलहा उठे ।
अपने परिश्रम को यों सफल होते देखकर मनीराम और उसके साथी खुशी से फूले न समाये । मनीराम के साथियों ने सोचा कि यह सब उनके राजा का ही प्रताप है ।
न वह खेती को इतना महत्व देता, न इतना अधिक परिश्रम करता और न हम सबको भी काम करने की प्रेरणा मिलती । सब ने सोचा इस अवसर पर मनीराम का अभिनन्दन करना चाहिये ।
फसल काटकर सुरक्षित रखने के दूसरे ही दिन उसके सभी साथियों ने मिलकर एक उत्सव का आयोजन किया । सहभोज के इस अवसर पर जंगल के और दूसरे वर्गों को भी निमन्त्रण दिया गया था ।
भील, कोल, किरात, शबर, नाग आदि सभी के नेता भी उपस्थित थे । जब उन्हें पता लगा कि मनीराम ने वर्ष भर के लिये फसल उगाई है तो उन्हें बड़ा अचम्भा हुआ ।
क्योंकि अभी तक उस जंगल में कोई भी ऐसा परिश्रमी नेता नहीं आया था जिसने दो महीने से अधिक के लिये अन्न उगवाया हो । बाकी दस महीने वे इधर-उधर फल-फूल मिल जाते तो खा लेते, नहीं तो फिर भूखे ही सो जाते थे ।
शबर आदि सभी नेताओं ने मनीराम की बहुत प्रशंसा की । उसे अनेक बधाइयाँ दीं, राज्य की उन्नति के लिये शुभकामनायें दीं ।
सबसे अन्त में शुभकामनायें देने की बारी आयी-किरातों की बुड्ढी रानी गुल्लू की, वह बड़ी बुद्धिमान थी, सारा जंगल उसकी सलाह लेता था । गुल्लू ने खड़े होकर जुहीरी को फूलों का हार पहनाया और बोली–‘भाई ! तुम्हारे खेत की बंधानें ऊँची हों ।’
इतना कहकर वह अपने स्थान पर वापिस चली गयी ।
औरों की भाँति न उसने मनीराम की प्रशंसा की थी और न ही ढेरों शुभ कामनायें दी थीं । उसकी इस बात का अर्थ कोई भी न समझ पाया । सभी जंगली जातियाँ एक-दूसरे का मुँह देख रही थीं । जुहीरी के मन्त्री ने उठकर पूछा- ‘काकी ! हम इसका अर्थ नहीं समझ पाये ।’
‘सीधी-सी बात है’ गुल्लू काकी कहने लगी- ‘खेत की बँधान ऊँची होंगी तो उनमें पानी ऊँचा होगा, पानी ऊँचा होगा तो फसल भी ऊँची होगी । फसल ऊँची होगी तो सभी की खाने की चिन्ता दूर होगी । खाने की चिन्ता न रहेगी तो फिर सभी राज्य के विकास की और योजनाओं में लगेंगे, विकास के और कार्य किये जायेंगे तो फिर राज्य भी ऊँचा उठता जायेगा ।’
गुल्लू काकी की यह आख्या सुनकर सभी बड़े खुश हुए । शबरसिंहल कहने लगा-देखो ! बात कहना भी एक कला है । थोड़े से शब्दों में बड़ी बात कहना बुद्धिमानी है । क्योंकि बहुत बोलने वाले की शक्ति तो नष्ट होती है, उसकी वाणी का प्रभाव भी समाप्त हो जाता है ।’
मनीराम ने हाथ जोड़कर, सिर झुकाकर गुल्लू से कहा– ‘काकी ! मैं सदैव यह कोशिश करता रहूँगा ।’
इसके बाद सभी ने नई फसल से बनाये गये बढ़िया-बढ़िया पकवान खाये। फिर खुशी-खुशी सभी मेहमान विदा हुए ।
तो दोस्तों इस नैतिक कहानी से हमें 3 तरह की शिक्षा मिलती है…
नैतिक कहानी सुखी शासन से सीख
पहली ये की सभी ने मिल जुल कर पूर्णतः एक हो कर आपसी सहयोग से जो मेहनत की उससे बहुत अच्छे परिणाम सामने आए यानी एकता मे बहुत शक्ति होती है जिससे असम्भव कार्य को भी सम्भव बनाया जा सकता है.
इस नैतिक कहानी से दूसरी सीख ये मिलती है की ईमानदारी से की गई मेहनत का फल ईश्वर अवश्य देते है.
तीसरी सीख यह मिलती है की दूसरों को प्रेरित करने के लिए पहले स्वयं खुद को उस काम मे झोकना होगा और सफल होना होगा.
दोस्तों ऐसी ही और भी तमाम नौतिक कहानियाँ (naitik kahaniya) हम आपके लिए लाते रहते है. ताकी हम एक बेहतर इंसान बने और समाज को भी बेहतर बनाने मे अपनी बड़ी भूमिका निभा पाए.
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