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Best hindi story with moral | रास्ते का पत्थर

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best story with moral – नमस्कार दोस्तों स्वागत है आज आपका एक और ज्ञान से भारी best hindi story with moral मे. चलिए इस कहानी को पूरा पढ़ते है और जानते है कौन सा अनमोल ज्ञान छुपा है इस best story with moral मे.

 

Hindi Story with moral | रास्ते का पत्थर 

 

मोहन सेठ नाम का एक बहुत धनी व्यक्ति हुआ करता था. वह बड़ा ही धर्म कर्म वाला ईमानदार व्यक्ति था.

 

मोहन सेठ ने एक पहाड़ी पर स्थित बहुत बड़े गांव मे एक बहुत सुंदर विशाल मंदिर की स्थापना का कार्य शुरू करवाया.

 

दूर दराज से महंगे पत्थर, शिल्पकार और कारीगर बुलवाए. मोहनदास सेठ ने पैसे मे कोई कमी ना रखी, सभी ने जी तोड़ मेहनत की और देखते ही देखते महीने भर मे एक खूबसूरत मंदिर बन कर तैयार हो गया. मंदिर की नक्काशी देखते ही बनती थी.

 

दूर दूर तक उस मंदिर ख्याति प्रसिद्धि की चर्चा होने लगी, दूर दूर से श्रद्धांलू उस मंदिर को देखने व ईश्वर के दर्शन करने आने लगे.

 

मंदिर मे श्रद्धांलुओं की भीड़ बढ़ने लगी. मोहन सेठ मंदिर से कुछ दूर एक मकान की छत पर खड़ा हो कर देखता की इन श्रद्धांलुओं के लिए रहने खाने की व्यवस्था करवाई जानी चाहिए.

 

अब मोहन दास ने एक काबिल नेक और ईमानदार प्रबंधक की खोज करनी शुरू की. मोहन सेठ ने मंदिर की दीवार पर बड़ा सा इस्तिहर लगा दिया.

 

अब उस इस्तिहार की मदद से बहुत से लोग मोहन सेठ के पास प्रबंधक के काम के लिए आने लगे.

 

सभी यह सोच कर मोहन सेठ से नौकरी के लिए आने लगे की मंदिर बहुत भव्य व प्रचलित है पगार बहुत अच्छी मिलेगी.

 

सेठ  मोहन एक एक करके सबसे मिला लेकिन संतुष्ट ना हुआ, हालांकि की कई बहुत अच्छे व कुशल प्रबंधक थे लेकिन मोहन दास जी ने एक एक करके हर किसी को प्रबंधक का काम देने से मना कर दिया.

 

लोग भी चिड़चिड़ा कर मोहन सेठ को पागल कहने लगे और मन ही मन ना जाने क्या क्या बकते और गलियां देते.

 

मोहन दास पर इन सब का कोई फर्क ना था. उनका ध्यान बस एक ऐसा प्रबंधक खोजना था जो एक सही प्रबंधक की भूमिका निभाते हुए मंदिर की जिम्मेदारियों को बखूबी अपने कंधो पर उठा सके व श्रद्धांलुओं की सेवा कर सके.

 

एक दिन मोहन दास ऐसे ही मकान की छत पर बैठे टक टकी लगाए मंदिर की तरफ निहारे जा रहे थे, रोज की तरह श्रद्धांलू मंदिर दर्शन हेतु पहुँच रहे थे.

 

उनमे से एक लम्बे लम्बे उलझें बालों वाला मैले फ़टे कपड़े और ऊपर से कंबल लिए एक भिखारी जिसके दूसरे कंधे पर एक गठरी ठी छोटी सी. वो भी उस भीड़ मे ना जाने क्या गुन गुनाते हुए मंदिर की और बढा चला आरहा था.

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मोहन दास की नजर बस उस भिखारी पर ही टिक गई, कुछ देर भिखारी को देखने के बाद, मोगन दास तुरंत खड़े हुए और तेजी से मंदिर की ओर भागे.

 

मोहन दास श्रद्धांलुओं से उलझते टकराते हुए उस भिखारी तक पहुंचे. सेठ हांफ्ते हुए लीलबिलाती  जुबान मे बोला, मुझे इस मंदिर के लिए एक योग्य प्रबंधक की आवश्यकता है, क्या तुम प्रबंधक का काम करोगे?

 

भिखारी के रोंगटे खड़े हो गए. भिखारी को तो कुछ समझ नहीं आरहा था की ये क्या हो रहा है और वो सेठ को क्या जवाब दे.

 

भिखारी कुछ देर मन ही मन तर्क वितर्क करने के बाद कांपती आवाज़ मे बोला, अरे, मालिक, आप यह क्या बोल रहे हो, भला मै एक भिखारी, निर बुद्धि अनपढ़, इतनी बड़ी जिम्मेदारी कैसे संभाल सकता हूं. मैंने क्या, मेरे पूर्वजों ने भी कभी ऐसा कार्य ना किया होगा. मुझे कोई तजुर्बा तक नहीं इतने बड़े काम का.

 

क्षमा करना मालिक लेकिन आपको तो एक से एक योग्य प्रबंधक मिल जाएंगे तो फिर मुझे क्यों चुन रहे हो इस महान एवं जिम्मेदाराना कार्य के लिए.

 

अब इस पर सेठ मुस्करा कर भावुकता भरे अंदाज़ मे बोला,हाँ कई कुशल लोग मेरे पास प्रबंधक के काम के लिए आए, लेकिन मै उनसे  संतुष्ट ना था.

क्योंकि मुझे पढ़ा लिखा कुशल प्रबंधक नहीं अपितु एक योग्य, व ईमानदार व्यक्ति चाहिए था.

 

क्योंकि शुरू मे ज़ब मुझे प्रबंधक की आवश्यक्ता हुई, तब एक योग्य व्यक्ति की खोज मेरे लिए चुनौती थी.

इस बात को ध्यान मे रख मैंने मंदिर जाते हुए रास्ते पर रात के समय तीन स्थानों पर इस प्रकार से ईटे ज़मीन मे गड़वाई की उनका आधा हिस्सा जमीन मे और आधा हिस्सा जमीन के बाहर रहे ताकी मै यह देख सकू की कौन इस ईट की वजह से गिरने पर इन ईटो को निकाल कर फैकता है.

 

मै उस मकान की छत से यह दृश्य टक टकी लगाए देखा करता था,दुर्भाग्यवाश कई दिनों तक उन तमाम श्रद्धांलुओं मे से कोई भी ऐसा ना निकला जिसने ईटे छुई तक हो. 

 

ऐसे मे ज़ब आप, सभी श्रद्धांलुओं सहित मंदिर की ओर बढ़े आरहे थे तो आपने ज़ब जमीन से ऊपर की तरफ निकले हुए ईटो के कोने देखे, तो तुरंत आपने

जमीन खोदना शुरू किया और एक एक करके तीनो ईटो को खोद कर निकाल बाहर फैका.

 

ताकी कोई श्रद्धांलू अब इन ईटो से टकरा कर गिर ना जाए, कहीं चोट ना लग जाए.

आपका पैर उन ईटो से उलझा भी नहीं फिर भी आपने, निःस्वार्थ होकर दूसरों के हित का सोच यह कर्म कर डाला.

 

इस पर भिखारी बोला, सेठ जी, यह तो मेरा फर्ज़ था जो मैंने पूरा किया. इसमें कोई बड़ी बात नहीं.

 

सेठ तुरंत बोला की, मेरे लिए यह बहुत बड़ी बात है. क्योंकि मुझे जो योग्यता चाहिए थी वो आपमें मिली है.

 

आपने निःस्वार्थ होकर इस काम के प्रति अपनी जिम्मेदारी को इतनी ईमानदारी पूर्वक निभाया तो ऐसे मे एक प्रबंधक का कार्य आप कितनी जिम्मेदारी से निभाएंगे इसकी कल्पना हम स्पष्ट तौर पर कर सकते है.

 

इसलिए हाथ जोड़ कर बिनती है आप मना ना करें इस मंदिर को आपकी बहुत आवश्यकता है.

 

सेठ के हाथ जोड़ते ही, भिखारी ने तुरंत सेठ का हाथ पकड़ लिया, और बोला, बस मालिक बस, कृपया आप यूँ हाथ जोड़ कर मुझ तुच्छ को शर्मिंदा ना करें, आप बहुत बड़े सेठ है व अपनी गरिमा को बनाए रखे.

 

इतना बोलते बोलते भिखारी के आँखो से आंसू बह निकले वह बोला, आप बहुत नेक दिल इंसान है वरना मुझ भिखारी से आज तक किसी साधारण मनुष्य ने भी मुझसे इतने सम्मानपूर्वक बात की होगी.

 

मै प्रबंधक का कार्य अवश्य करूंगा. इतना बोल भिखारी ईश्वर का धन्यवाद करने लगा और कहने लगा यह सब ऊपर वाले की दया कृपा से हो रहा है.

 

Best hindi story with moral कहानी से सीख.

तो देखा दोस्तों, जीवन मे ईमानदार रहने का फल. भिखारी की जिंदगी ही पलट गई.

भिखारी ने किसी दिखावे के लिए ऐसा नहीं किया उसने जो सही समझा उसे किया वो भी ईमानदारी से और निःस्वार्थ होकर.

 

तब जाकर उसको ईश्वर ने इतना खूबसूरत तोहफा दिया.क्योंकि कोई देखे ना देखे लेकिन ईश्वर की नजरें आप पर 24 घंटे बरकरार है.

 

नेकी की रहा पर चलते रहो जिंदगी कभी भी करवट ले सकती है.

यकीन मानो ईश्वर कृपा बरसाने के लिए ही बैठे है, बस आप निःस्वार्थ होकर ईमानदारी के रास्ते पर चलना शुरू तो करो. आज नहीं तो कल जीवन मे सकारात्मक बदलाव देखने को जरूर मिलेंगे.

 

हालांकि बहुत मुश्किल और कठिनाइयों भरा होता है यह रास्ता लेकिन ईश्वर पर भरोसा रखो वो आपके संयम व हौसलों को परख रहे है और आपको हर परीक्षा मे सफल होना है. हौसला और हिम्मत कभी नहीं खोना वक़्त एक दिन जरूर बदलेगा.

 

तो मित्रो best hindi story with moral आपको कैसी लगी जरूर बताना. एक बेहतर समाज निर्माण और सुंदर चरित्र निर्माण के लिए मनुष्य को सही राह पर चलाती कहानियाँ हम लाते रहते है.

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