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Hindi moral story on life | मृत्यु का भय

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आज क़ी कहानी Hindi moral story on life है मृत्यु का भय. ये कहानी आपको मृत्यु के भय से मुक्त कर देगी.

ये कहानी एक ऐसे व्यक्ति क़ी है जो एक लम्बी उम्र जीने क़ी इच्छा रखता है, जैसा क़ी लगभग हर कोई रखता है कोई नहीं ये चाहेगा क़ी वो जल्दी मरे. मुंबई के बोरीवली मे रहने वाले इस व्यक्ति का जीवन सामान्य ही था घर से ऑफिस आना फिर छुट्टी वाले दिन छोटे बड़े काम निपटाते रहना, परिवार के साथ समय बिताना.

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Hindi moral story on life

49 साल क़ी उम्र के इस व्यक्ति का नाम है रघुवरम ये ज़ादा उम्र तक जीते रहने क़ी इच्छा लिये सेहत को लेकर बड़े सजग है.

सुबह जल्दी उठना, अच्छा खाना, समय से खाना, समय से सोना,. लेकिन कई बार ज़ब ये बीमार होते तो बहुत डर जाते क़ी कहीं ये बीमारी मेरी उम्र कम ना कर दें, ऐसी और भी कई बातें मन मे चलती रहती.

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कई बार तो बाथरूम मे बिजली के बटन पर पानी पड़ जाने क़ी वजह से ज़ब स्विच मे हल्का फुल्का करंट उतर आता तो जैसे ही रघुवन को बिजली का हल्का झटका भी लगता तो ये जनाब तो उस दिन बाथरूम मे ही नहीं जाते. और तो और किसी चलते राहगीर या ऑफिस तक मे किसी से उलझते नहीं थे, ये सोच कर क़ी दुश्मनी मे कहीं ये जान ना लेले या मेरे नाम क़ी सुपारी ना देदे किसी को.अभी तो बहुत जिंदगी जीनी है.

कुल मिलाकर बड़ा ही डर डर कर जीवन जी रहे थे मानो!स्वयं को एक गलतफ़हमी मे रख कर सच्चाई से दूर भागते जा रहे हों.

एक दिन रघुवरम office से घर क़ी तरफ जा रहे थे सड़क क्रॉस करने क़ी ज़ब बारी आई तो ना जाने मन मे क्या सोचे जा रहे थे ,क़ी इतने मे आगे बढ़ने के लिये रघुवरम ने जैसे ही कदम आगे बढाए उतने मे हवा से बातें करती हुई सरसराती हुई तेज़ रफ़्तार कार रघुवरम के सामने से यूँ निकली मानो साक्षात् यमराज.

वहाँ आस पास मौजूद कुछ लोग  दौड़ते हुए रघुवरम के पास पहुंचे और एक आदमी ने रघुवंराम के हाथों को पकड़ लिया, इधर . रघुवरम को तो समझ ही नहीं आया क़ी ये हुआ क्या,?वो एक दम सन्न रह गए,

रघुवरम के तो मानो आधे प्राण ही सुख चुके थे, और ये महाशय बेचित्त होकर वहीं गिर पड़े,

आस पास के लोगो क़ी भीड़ ने उन्हें घेर लिया, उन्हें उठा कर एक सुरक्षित जगह पर लें जाया गया पानी पिलाया, फिर उन्हें उनके घर पहुंचा दिया गया ,

लोग रघुवंराम को लेकर घर के गेट तक पहुंचे ही थे क़ी पत्नी बच्चे सब दौड़ते हुए घर से निकले, पत्नी सारी का पल्लू तेजी से कमर मे कोचती हुई ये सोचते हुए आई क़ी आखिर इतने लोग इनको लेकर ऐसे क्यूँ आरहे क्या हुआ होगा भगवान.

पत्नी के पूछने पर एक व्यक्ति ने जवाब दिया, अरे आज तो मरते मरते बचे, एक सेकेंड क़ी देरी थी ये सड़क दुर्घटना का शिकार होने से बच गए आज.

पत्नी बच्चो ने रघुवरम को सहारा देते हुए अंदर लें गए और चार पाई पर लिटा दिया. पत्नी फटा फट निम्बू पानी का जूस बनाने लगी. जूस पी कार रघुवरम को कुछ अच्छा महसूस हुआ.

रात को खाना खा कर चुप चाप लेट गए.

रात भर सोने क़ी बहुत कोशिश क़ी रघुवरम ने,किन्तु नींद आँखो पर दस्तक ही नहीं दें रही थी मन बेचित्त था और सवालों से भरा.

आधी रात को रघुवंराम उठ कर बैठ गए और सोचने लगे क़ी ये मै कौन सी जिंदगी जी रहा हु,आखिर.

इतना सोचते हुए उठ कर अचानक चुपचाप छत पर चले गए.

घंटो छत्त पर इधर से उधर टहलते रहे उस घटना ने उनके दिमाग़ पर गहरा प्रभाव डाला था.

लगातार घंटो चलते रहने के बाद रघुवंरम के पाँव भी अब जवाब देने लगे बुरी तरह थक गए सांस फूलने लगी.

अब वही छत्त पर चौकड़ी लगा कर बैठ गए कमर सीधी क़ी, लम्बी सांस ली,और आँखे बंद कर ली, मानो कुछ समय के लिये सब कुछ भूल जाना चाहते हों. ऑफिस परिवार रिश्ते बच्चे सब कुछ….

अब मन मे अध्यात्म क़ी ऊर्जा ने अपना संचार करना शुरू किया. मन मे आवाज़ आई….

रघुवरम! आखिर किस का भय है तुम्हे, डरना है तो जन्म से डरो क्योंकि जन्म दोबारा नहीं हों सकता .

 किन्तु मृत्यु का साया हर वक़्त मंडराता रहता है. मृत्यु एक अटल सत्य है जो कभी भी आ सकती है. मृत्यु से दूर नहीं भागा जा सकता है. 

फिर भी मनुष्य अक्सर खुद को एक झूठ के साए मे रख कर जीवन जी रहा है,एक ऐसा जीवन जिसमे उसे हर बड़ी घटना के वक़्त मृत्यु का डर सताने लगता है.

मनुष्य स्वयं ही अपने मन मे जीवन को लेकर ऐसी गलत फेहमी का दायरा बना कर बैठा है क़ी उसे लगता है मौत मेरे काबू मे है ज़ब मै मरना ही नहीं चाहता तो मौत भला मुझे कैसे आ सकती है.

जबकि सच्चाई तो ये है क़ी एक जीवन काल मे दोबारा जीवन असम्भव है किन्तु एक जीवन काल मे मौत का डर लिये हम हर रोज मरते है, गर्भ मे विकसित होते ही शरीर क़ी मृत्यु से नज़दीकियां बढ़ती जाती है अब आप इसे एक मीठा सच्च मानो या कड़वा सच्च ये आपकी सोच पर निर्भर करता है.

यदि मृत्यु को आप एक अभिशाप क़ी तरह मानते हों तो ये बातें आपके लिये एक कड़वा सच्च है.

वहीं गर आप यह समझ जाते हों क़ी हम असल मे एक आत्मिक ऊर्जा है जो बस इस शरीर मे कैद है जिसकी कुछ सीमाए है. किन्तु आत्मा क़ी सीमा नहीं स्वयं मे स्वछंद है असीमित शक्तियों का भंडार है. कहीं भी आ जा सकती है.

मनुष्य यह जानते हुए भी क़ी शरीर तो एक किराए के घर क़ी तरह है जिसे एक दिन छोड़ना ही पड़ेगा मगर खुद को इस सच्चाई से कोसो दूर रख कर मनुस्य वो सब कुछ करने लगता है जिससे उसे लगता है क़ी वो मृत्यु से अभी बहुत दूर है.

आप ये समझ जाइये क़ी, खून मांस हड्डीयो से बना शरीर अमर नहीं होता एक समय ऐसा आता है ज़ब ये शरीर बूढ़ा जर्जर हों जाता है नई कोशिकाए, रक्त बनना एक दम बंद हों जाती है , कमर झुक जाती है,नज़रे कमज़ोर हों जाती है ,दाँत नहीं रहते, सुनने क़ी शक्ति खत्म हों जाती,याद दाश्त खत्म होने लगती है,

यहां तक क़ी चलने क़ी शक्ति भी नहीं बचती. यानी शरीर किसी काम का नहीं रहता, यह किसी भी शरीर के जीवित रहने क़ी अंतिम स्टेज होती है इसके बाद तो शरीर को हर हल मे पंच महा भूतों मे मिलना ही होता है.

रघुवंराम उठो, स्वयं को पहचानो, तुम एक आत्मिक ऊर्जा हों जो इस शरीर मे हों. और ज़ब तक इस शरीर मे हों तब तक जीवन का आनंद लो खुल कर जियो.

रघुवरम ने आँखे खोली तो सुबह हों चुकी थी सूरज क़ी पहली किरण सीधा रघुवरम क़ी आँखो पर आ चमकी.

अब रघुवरम पूरी तरह से बदल चुका था, वो तैयार था एक नए जीवन क़ी शुरुआत के लिये. मन संतुष्ट और सुकूनमय हों चुका था मानो सब कुछ पा लिया हों. रघुवरम के चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान थी.

उम्मीद करता हु hindi moral story on life रघुवरम के जीवन क़ी इस अद्भुत  घटना ने आपको एक सकारात्मक ज्ञान दिया होगा.मै हरजीत मौर्या कल फिर से मिलूंगा जीवन को एक नई दिशा देने वाली एक और कहानी के साथ.

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