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Life change moral story of buddha | जीवन बदल देने वाली कहानी

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नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका आज एक और life change moral story of buddha मे |बुद्धा जी की ये moral story आज आपको जीवन की एक बहुत अनमोल सीख देगी. इसलिए कहानी को आखिर तक पढ़ो और अनमोल ज्ञान प्राप्त करो.

आज की कहानी का नाम है – अधूरा ज्ञान

अधूरा ज्ञान | life change moral story of buddha 

यह सुनने के बाद से जीवन में कभी हार नहीं मानोगे 

एक समय की बात है, गौतम बुद्ध के हजारों शिष्य,उनके पास अध्ययन करने आते थे ,

गौतम बुद्ध से जब भी कोई चीज से ज्ञान प्राप्त कर लेता था, तो उसे किसी दिशा में लोगों को जागरूक करने  तथा शिक्षा देने के लिए भेज दिया करते थे.

बुद्ध का एक शिष्य,, बुद्ध के आश्रम में लगभग 6 सालों से था…वह शिष्य महात्मा बुध के पास आया, और बुद्ध से कहा,  मुझे यहां आए लगभग 6 साल हो गए,मेरे बाद कितने शिष्य यहां पर आए,

उनमें से सभी शिष्य को आपने, ज्ञान देने के लिए किसी ना किसी दिशा में भेज दिया, लेकिन मुझे  अभी तक नहीं भेजा,आखिर ऐसा क्यों? क्या मुझे आपका ज्ञान प्राप्त नहीं हुआ है?

बुद्ध मुस्कुराए और बोले,  यह तो तुम्हें खुद ही समझना पड़ेगा, कि मेरा ज्ञान तुम्हे प्राप्त हुआ है या नहीं.

 शिष्य बोला,  हे बुद्ध, आपने इन 6 सालों में जो मुझे उपदेश दिया है, वह मुझे सब याद है,

आपकी बताई हुई एक एक बात मुझे सब याद है, आप कुछ भी मुझसे पूछ सकते हैं मैं हर उत्तर देने के लिए तैयार हूं,

आप मुझे एक मौका तो दे, ताकी मैं किसी भी दिशा में जाकर, लोगों को अपने ज्ञान के बारे में बता सकूं,

इस पर बुद्ध  ने बोला, कि ज्ञान की बात  को याद रखने से कोई फायदा नहीं, जब तक तुम उस आदत को खुद नहीं अपनाओ|

शिष्य ने  कहा,   जो भी हो,कृपया मुझे एक मौका जरूर दें, आप मुझपर भरोसा रखें,  मैं सभी को अपने ज्ञान से प्रभावित कर सकता हूं…

मैं लोगों को ऐसी बातें बता सकता हूं, जिससे लोगो के जीवन में शांति आ जाएगी, और वह अपना शांतिपूर्ण जीवन जी पाएंगे.

तो फिर बुद्ध  ने कहा, अभी तुम तैयार नहीं हो, ज़ब तुम उसके लिए तैयार हो जाओगे, तो फिर मैं तुम्हें खुद  ही किसी दिशा में जाने के लिए बोल दूंगा.

moral story of buddha

Moral story of buddha

शिष्य ने  कहा,  – क्या  आपने मुझे इन 6 वर्षों में इतना भी ज्ञान नहीं दिया कि मैं किसी को प्रभावित ना कर पाऊं…

बुद्ध ने कहा-  ठीक है, तुम पूर्व  दिशा में चले जाओ वहाँ एक गाँव मिलेगा, वहाँ से भिक्षा मांग कर लाना और अपने ज्ञान से लोगो की मदद करना.

 कल सुबह तुम वहां अकेले जाना, और शाम में आकर मुझे बताना, कि तुमने लोगों की सहायता कैसे की..

शिष्य यह बात सुनकर बहुत खुश हुआ और आशीर्वाद लेकर चला गया,

वो रात भर ज्ञान समेटता रहा और मन ही मन सोच रहा था, कि मैं वहां ज्ञान का ऐसा छाप छोडूंगा, की हां के लोगों के साथ, बुद्ध भी मुझ से प्रभावित हो जाएंगे,

सुबह उठकर वह महात्मा बुद्ध को प्रणाम करने गया, उन्हें प्रणाम कर वह पूर्व दिशा की तरफ निकल गया.

 शाम को जब वह वापस आया,  तो  बुद्ध ने देखा की शिष्य के माथे पर चोट लगी है और खून बह रहा है,

 बुद्ध ने  उसे पट्टी की और पूछा,  तुम्हें चोट कैसे लगी?

शिष्य ने कहा – 

वहां के लोग बेहद ही दुष्ट हैं उन्हें जरा भी बुद्धि नहीं है…

 मैं उस गांव में भिक्षा लेने गया पर किसी ने मुझे भिक्षा नहीं दी, सब मुझे वहां गालियां दे रहे थे, 

 एक व्यक्ति ने भिक्षा तो दी थी, लेकिन नीचे फेंककर और कहा इसे उठा लो मैंने उन्हें काफी समझाया, 

 लेकिन मेरी बात सुनने को तैयार ही नहीं थे उन्होंने मेरे साथ हाथापाई की,जिससे मुझे चोट लग गई.

बुद्ध आप मुझे दूसरी जगह भेजिए, जहां के लोगों में ज्ञान हो वो इस तरह ना हो.

बुद्ध शिष्य की बात सुनकर मुस्कुराए और बोले,  अगर दूसरे गांव में भी,ऐसे ही गांव के लोग होंगे तब तुम क्या करोगे?

शिष्य ने कहा, हे बुद्ध, मै ऐसे लोगों को कोई ज्ञान नहीं दे सकता वह लोग अज्ञानी है, उन्हें कौन समझाए.

बुद्ध ने कहा, वह लोग अज्ञानी नहीं बल्कि ज्ञानी है उनके पास बहुत ज्ञान  है, परंतु उनके पास खुद का ज्ञान है.

अब अगर तुम किसी दूसरे के ज्ञान हो चोट  पहुंचओगे तो वह कुछ तो कहेंगे ही…

तुम्हें ऐसे लोग हर जगह मिलेंगे, तब तुम अपना ज्ञान उन्हें कैसे दोगे?

बुद्ध ने कहा आज तुम आराम करो कल शाम को मेरे पास आना.

शिष्य बुद्ध को प्रणाम करके चला गया,

अगली शाम जब वह वापस बुद्ध के पास आया,  तब वहां बुद्ध के एक और शिष्य मौजूद थे,  उनके हाथ में भी चोट लगी हुई थी 

बुद्ध ने शिष्य के हाथ पर चोट देख उस पर पट्टी की और उससे पूछा,  तुम्हें यह चोट कैसे लगी?

 शिष्य ने कहा-  आपने पूर्व की ओर एक गांव में मुझे जाने के लिए कहा था,तो वही मुझे चोट लगी.

 

 बुद्ध ने कहा-  वहां तुम्हारे साथ क्या-क्या हुआ तुम मुझे बताओ.

 ।

 शिष्य ने कहा-  वहां पर मैंने सब से भिक्षा मांगी, लेकिन किसी ने भी भिक्षा नहीं दी ,

एक व्यक्ति, जिसने भिक्षा दी भी, तो मुझे जमीन पर फेंक कर दी थी और कहा उसे उठा लो, तो मैंने उसे उठाकर अपने झोले  में रख लिया.

और मैंने उसे सफल होने का  आशीर्वाद दिया .

तब उस व्यक्ति ने मुझसे कहा – आप बड़े अजीब लगते  हो, मैं आपका अपमान कर रहा हूं और आप मुझे आशीर्वाद दे रहे हों.

तो मैंने उनसे कहा – कि आप दानी हो आपने मुझे दान दिया है इसलिए मैं आपको आशीर्वाद दे रहा हूं.

फिर मैं वहां से आगे गया, तो कुछ लोगों ने मुझे वहां से वापस  जाने के लिए कहा.

 उन्होंने मुझे कुछ अपशब्द  है और मुझ पर पत्थर भी फेंके, जिससे मुझे चोट लग गई.

 और जब मैं वापस आ रहा था,  तब रास्ते मे मैंने एक मा को रोते हुए देखा, वह अपने बीमार बच्चे को लेकर चिंतित थी.

मैं तुरंत जंगल  से जाकर उसके लिए जड़ी-बूटी लाया,  लेकिन वहां के कुछ  लोग जड़ी-बूटी देने नहीं दे रहे थे.

फिर मैंने उनसे विनती की वह मुझे उस बच्चे का इलाज करने दे.

 उसके बाद वह जैसा कहेंगे मैं ठीक वैसा ही करूंगा.

फिर जिस व्यक्ति ने मुझे भिक्षा दी थी, उसने गांव वालों को समझाया.

तब उन्होंने मुझे उस बच्चे को जड़ी-बूटी लगाने  दी, उसके कुछ देर बाद वह बच्चा ठीक हो गया.

फिर गांव के जिन लोगो ने मुझ से अभद्र व्यवहार किये थे, उन्होंने मुझसे माफी मांगी और धन्यवाद कहा.

 फिर मैं वहां से वापस आ गया, 

हे, बुद्ध,  मेरी आपसे एक विनती है, उस गांव के लोग बहुत  भोले भाले हैं, 

क्या मैं रोज उसी गांव में जाकर भिक्षा मांग सकता हूं.

यह सभी बातें पहला शिष्य खड़ा होकर, बड़े ध्यान से सुन रहा था.

उसने यह सुनते ही बुद्ध के चरणों में गिरकर कहा,   हे बुद्ध! मैं समझ गया हूं, कि अभी मैं उस लायक नहीं हुआ हूं कि मैं दूसरों को ज्ञान दे सकूं.

बुद्ध ने कहा,  हमें बाहर वैसे ही लोग दिखाई देते हैं जैसे हम अंदर से होते हैं.

जब तक स्वयं को नहीं बदल सकते, तब तक किसी को नहीं बदल सकते हैं , खुद में  बदलाव लाना ही जरूरी है

अपने आप में बदलाव लाकर ही इस दुनिया को आप जीत सकते हों.

तो दोस्तों ये life change moral story of buddha in hindi आपको कैसी लगी. उम्मीद करता हूं इस कहानी से प्राप्त ज्ञान से अब आपके जीवन मे सकारात्मक बदलाव जरूर आएगा.
हम अपने इस ब्लॉग पर ऐसी ही तमाम ज्ञान से भरी buddha moral and inspirational story लाते रहते है.

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