नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका आज एक औऱ Moral story श्रेष्ठ कर्म का प्रभाव मे.जीवन की अनमोल सीख से भरी best moral story.
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Moral story श्रेष्ठ कर्म का प्रभावMoral story श्रेष्ठ कर्म का प्रभाव
प्राचीन समय में एक गाँव में एक साहूकार रहता था।
साहूकार बहुत संत सेवी और सत्संगी था। घर पर अक्सर साधु संतो का आवागमन लगा रहता था, श्रद्धा अनुसार साहूकार उनकी सेवा और ठहरने का प्रबंध भी अपने घर में करता था।
उसके पास कोई कमी तो थीं नहीं, प्रभु के दिये इस धन धान्य नौकर- चाकर से भरपूर जीवन में वह आसक्त बिल्कुल नहीं था, उसका विचार था कि पूर्व जन्मों के अच्छे कर्मों का फल उसे प्राप्त हुआ है, इस लिए हमेशा परमार्थ और परोपकार के लिए धन खर्च करता था।
सेठ की एक लड़की थी। यह लड़की भी श्रेष्ठ विचार रखने वाली थी। युवा होने पर इसका विवाह एक समर्थ परिवार में हुआ वह परिवार यद्यपी धन धान्य से भरपूर था पर सत्संग- प्रिय नहीं था।
एक दिन वह साहूकार की बेटी अपने ससुराल में सास के साथ बैठी थी कि बाहर से किसी एक फ़कीर ने आवाज लगाई कि “देवी!कुछ खाने को मिलेगा?”सास ने लड़की से कहा -“तू जाकर फ़कीर से कह आ कि यहाँ कुछ नहीं है। लड़की ने सास की आज्ञा मान कर बाहर आकर फ़कीर से कहा -“महाराज!यहाँ कुछ नहीं है “फ़कीर ने बड़े प्रेम से पूछा,” बेटी!फिर तुम लोग क्या खाते हो?
लड़की ने उत्तर दिया,”महाराज!हम बासी भोजन खा रहे हैँ। “फ़कीर मुस्कराते हुए पूछने लगा,”बेटी!जब बासा ख़त्म हो जायेगा तो फिर क्या खाओगे?”
लड़की ने विनम्रता से हाँथ जोड़ कर उत्तर दिया, “तो फिर महाराज हम आप की भांति दर ब दर की भीख मांगेगे।
इतना सुन कर साधु तो उचित उत्तर पा कर चला गया।
पर अंदर लड़की की सास जो सब बैठी बाहर हो रहा वार्तालाप सुन रही थी,आग बबूला हो उठी जब लड़की अंदर आई तो उसे डांटते हुए बोली,”कम्बख्त लड़की! तू अच्छी हमारे कर्मों में पड़ी!सबसे अच्छा खाना पहनना करते हुए भी बाहर हमारा अपयश करती फिर रही है।
जरा बता! कब हमने तुझे बासा दिया है खाने को,और तो और फ़कीर से कह रही है हम भीख मांगेगे, मनहूस!
सास ने अपनी बहु को बड़ा कोसा। लड़की ने अपनी सास को हाँथ जोड़ कर बोला, “माता जी!मेंने झूठ नहीं कहा हम बासा ही तो खा रहे हैँ। “
इतना सुन सास और लाल पीली हो गईं मारे क्रोध के। उसने पूरे घर को थोड़ी देर में अशांति और कलह का रूप बना डाला। शाम को लड़की का ससुर घर आया।
अपनी स्त्री को इस प्रकार ठन्डे श्वास भरते देख वो हैरान रह गया।
नववधु भी डरी सी एक कोने में दुबकी पड़ी थी, मन में सोचा क्या हो गया है घर में नीरवता क्यों छा गयी है।
स्त्री से पूछा तो उसने जले कटे शब्दों में कहा,’ ये आपकी बहु गली मुहल्लों में स्थान स्थान पर अपयश फैलाती फिर रही है कि हम बासा भोजन खाते है। और जब वो ख़त्म हो जायेगा तो हम दर दर की भीख मांगेगे।”
ससुर जी सतसंग के विचार तो नहीं रखता था पर था समझदार और धैर्यवान्।उसने अपनी बहु को बुलाया कहा बेटा तुमने ऐसे शब्द क्यों कहे हैँ इनका प्रयोजन क्या है बहु ने सारा वृत्तांत कहा। तब सेठ जी ने पूछा बेटा!”हमने तुम्हे बासा खाना कब दिया?”
बहु बोली, “पिताजी मेने जब से होश संभाला, उसी दिनसे आज तक मेरा जीवन सुख वैभव में व्यतीत हुआ, चाहे माता पिताजी के घर याँ फिर आपके पास। मुझे अपने अब तक के जीवन में किसी चीज का आभाव महसूस नहीं हुआ पर अब प्रश्न ये सामने आता है कि यह सब मुझे क्यों मिला?
मालिक की रचाई इस सृष्टि में ऐसे भी जीव होंगे जिनको भरपेट भोजन भी नसीब नहीं होता,न सर पे छत,न जिस्म पे पर्याप्त कपडे। आखिर ये असमानता क्यों?क्या कुदरत पक्ष पात करती है, नहीं पिताजी!ये सब हमारे पिछले जन्मो के कर्मो का फ़ल है जिनका जमा हम अभी खर्च कर रहे हैं, पिताजी जी! हम बासा भोजन और जमा किया फल खर्च कररहे हैँ।
हमारे वर्तमान में हम ऐसा कोई साधन नहीं बना रहे जिनका अगले जन्म में हमें सुफल प्राप्त हो जैसे भजन सिमरन. परोपकार, दान, महात्माओं की सेवा आदि। जब हम ऐसा कुछ भी कर ही नहीं रहे जो आगे हमें सुख, सम्पति, यश मान दिलाने का साधन बने तो ये आशा ही व्यर्थ हैं कि हमारा भविष्य सुखों से भरा हो।
तो हमें भिक्षा के ही सहारे जीवन बिताना पड़ेगा
बहु ने कहा,”पिताजी हमें हमारे प्रारब्ध स्वरुप जो भी धन मिला हैं उसे परमार्थ में लगाना चाहिए “।
सेठ ने अपनी बहु से प्रश्न किया,”तो फिर इस भिक्षा का क्या मतलब?”बहु बोली,”जिसने जीवन में श्रेष्ठ कर्म नहीं किये उसको प्रारब्ध के अनुसार जो मिले वही भिक्षा रूप में स्वीकार कर जो मिल जाये उसी में संतोष करना पड़ेगा।
जैसे भिखारी को भिक्षा में जो भी मिलता हैं उसी से गुजारा करना पड़ता हैं।
लड़की की बातें सुन सेठ हैरान हो गया। उसने अपनी बहु से पूछा,”तुम्हे इतना ज्ञान कहाँ से मिला?”
लड़की बोली, “मेरे पिताजी के घर प्रायः साधु संत पधारते थे।
उनके सत्संग और संगत में मेरा पूरा बचपन व्यतीत हुआ है।
हरि कीरत साध संगत है, सिरि करमन कै करमा।।
कहु नानक तिस भयो परापत, जिसु पुरब लिखे का लहना।।
सेठ की आंखे खुल चुकी थीं, उन्होंने कहा पुत्री!अमुक कमरे में जो गेहूँ और चना मिश्रित हैं उनका आटा पिसवा कर भिखारियों और अतिथियों के लिए भोजन करवा बनवाया करो (वास्तव में वो अन्न घुन लगा हुआ था और कई वर्ष से गोदाम में पड़ा था।)
बहु ने वैसा ही किया अन्न का आटा पिसवाया दूसरे दिन जब सेठ घर आये तो हाँथ मुहं धो कर खाना खाने बैठे। बहु ने खाना परोसा सेठ जी खाना खा रहे थे तो उनकी पत्नी आग बाबूला हो कर शोर मचाने लगी, खाना सेठ के गले से ही नहीं उतरे गला खुश्क़ हुआ जा रहा था, जैसे रोटी नहीं लकड़ी चबा रहे हो, सेठजी ने कहा आज रोटी ऐसी क्यों बनाई हैं सेठानी ने कहा ये लड़की आपको भिखारियों वाला खांना परोसे है, और करें दान पुण्य!
बहु ने विनम्रता पूर्वक जवाब दिया पिताजी इसमें हैरानी क्या, सीधी सी तो बात है इस जन्म में हम जैसा अन्न दान करेंगे वैसा ही भविष्य में हमें खाने को मिलेगा, हमें आज से ही अभ्यास करना चाहिए वरना फल प्राप्ति के समय हमें तकलीफ होंगी, आज घर में जो खाना भिखारियों के लिए बना वही हम सब ने भी खाया।
इस बात से सेठ जी को सब समझ पड़ गईं कि बहु क्या समझाना चाहती है, दूसरे ही दिन उन्होंने अच्छी ताजी गेहूँ पिसवा कर भोजन बनवाया और अपनी पूरे परिवार के साथ गरीब लोगों को भोजन करवाया। इस प्रकार एक भक्ति परायण, और साधु सेविका बहु के संग से सेठ जी भी महात्माओं की शरण में जाने लगे और सदगति को प्राप्त हुए
Moral story श्रेष्ठ कर्म का प्रभाव से सीख
प्रत्येक मानव को वर्तमान समय में श्रेष्ठ करम करने चाहिए क्योंकि इन्ही कर्मो से हमारा प्रारब्ध बनता है।
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