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पानी वाली लिफ्ट moral story

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दोस्तों आज की कहानी पानी वाली लिफ्ट moral story आपको जीवन की अनमोल सीख देगी.

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पानी वाली लिफ्ट Moral story

एक बार की बात है एक गांव मे दो दोस्त रहते थे एक का नाम था रमेश और दूसरे का नाम था सुरेश.

दोनों बड़े पक्के मित्र थे. दोनों साथ पढे लिखें और बड़े हुए.

 

जैसे जैसे दोनों बड़े हो रहे थे वैसे वैसे दोनों ने अपने भविष्य के बारे सोचना शुरू किया.

अब वो दोनों जवान हो चुके थे घर की जिम्मेदारियां कंधो पर आ चुकी थी. दोनों ने आपस मे इस बारे विचार विमर्श किया.

 

रमेश बोला, यार सुरेश अब हम दोनों को कोई ना कोई काम खोजना होगा ताकि कुछ पैसे कमा सके माँ बाप बूढ़े हो चले है छोटे भाई बहनो की पढ़ाई लिखाई का खर्च भी उठाना है.

 

सुरेश भी हा मे हा मिला कर बोला की हा रमेश बात तो सही है. व्यापार करने के लिए हमारे पास इतनी जमा पूँजी नहीं है. तो चलो शहर चलते है वहा कोई ना कोई काम मिल जाएगा.

 

इस तरह दोनों ने शहर जाने का फैसला किया. शहर पहुँचते ही दोनों ने नौकरी खोजी. कुछ दिन बाद दोनों को एक सेठ के यहां काम मिल गया.

 

सेठ बोला आप दोनों को रोज उस पहाड़ी से पानी भर भर कर यहां मोटर तक लाना है. हर बाल्टी पानी पहुँचाने के के बदले मे 30 रुपए दूंगा.अब जितनी ज़ादा पानी से भरी बाल्टी आप दोनों यहां पहुँचाओगे. उतना ही ज़ादा पैसा मिलेगा.

 

दोनों दोस्त बहुत मेहनती थे उन्हें सेठ द्वारा बताया यह काम आसान और सही लगा इसलिए दोनों दोस्तों ने सेठ की बात तुरंत मान ली और उसी दिन से काम करना शुरू कर दिया.

 

दोनों रोज सुबह से शाम तक मजबूत लाठी मे दो बाल्टीयों को बांध लेते, इस दो दो करके वो सुबह से शाम तक 10 चक़्कर मे 20 बाल्टीयां पानी पहुंचा देते थे.

 

दोनों की ईमानदारी और कड़ी मेहनत देखकर सेठ ने दोनों को नौकरी मे पक्का कर दिया. 

 

समय बीतता गया एक दिन सुरेश के मन मे भविष्य को लेकर विचार आया की अभी तो हम जवान है लेकिन आगे का क्या आखिर कब तक हम ऐसे बैल की तरह मेहनत कर पाएंगे.रमेश ने खूब विचार करके एक आईडिया निकला की घर ऊपर पहाड़ी से मजबूत पगदण्डियों की एक लिफ्ट बनाई जाए जिसकी मदद से पानी ज़ब ऊपर से छोड़ा जाए तो सीधा नीचे आजाए.. रमेश ने अपना यह आईडिया सुरेश से साँझा किया.

 

सुरेश बोला तुम पागल हो चुके हो हमारे पास आखिर इतना वक़्त कहा है की इस आईडिया को सच्च मे बदलने के लिए अलग से वक़्त निकाल सके. और वैसे भी यह इतना आसान नहीं है ये सिस्टम बनाने मे हमें बहुत वक्त लग जाएगा.शाम तक हम लोग बहुत थक जाते है. इतनी हिम्मत नहीं रहती की तुम्हारे इस आईडिया पर काम करे.

 

दोनों के बींच बहुत देर तक कहा सुनी होती रही.लेकिन रमेश ने , सुरेश के इस आईडिया पर काम करने को मना कर दिया.

 

लेकिन सुरेश के मन मे जुनून सवार था इसलिए वो हिम्मत करके अकेला ही यह काम करने लगा. इसलिए अब सुरेश सिर्फ सुबह से दिन के 2 बजे तक ही पानी लाता और बाकी का समय और मेहनत बांस के मजबूत सरकन्डे काटने व छीलने मे लगा देता ताकि बाद मे वह उनसे एक मजबूत लिफ्ट का ढांचा तैयार कर सके.

 

इधर रमेश तो बस पैसा कमाने के चक़्कर मे अपने भविष्य को भूल चुका था. रमेश खूब मेहनत करता और खूब पैसा कमाता. इधर एक दिन सुरेश बीमार हो गया  इसलिए कुछ दिन काम नहीं कर पाया,बचे हुए पैसे भी खत्म होने लगे. सुरेश के तो तब खाने तक के लाले पड़ गए. और उधर रमेश नोट पर नोट छापे जा रहा था.

 

समय बीतता गया रमेश एक बड़ा सेठ बन गया. इधर रमेश अब भी वही लिफ्ट का ढांचा मुकम्मल करने मे लगा हुआ था जो की आधा बन चुका था. उधर रमेश ने बांग्ला गाड़ी सब खरीद लिया ऐशो आराम की जिंदगी जीने लगा.. लेकिन इधर सुरेश अब भी वही  साधारण सी जिंदगी जी रहा था.

 

करते करते 8 साल बीत गए दोनों की शादी हो चुकी थी.

 

समय बीतता गया इस तरह 10 साल बीत चुके थे.एक दिन सुरेश की मेहनत रंग लाई 2 से 3 किलोमीटर लम्बा पहाड़ से नीचे तक पानी आने वाला ढाँचा बन कर पूरी तरह से मुकम्मल हो चुका था. इतना लम्बा ढाँचा तैयार करने मे सुरेश को 10 साल का लम्बा वक़्त लग गया. जिस बींच कई मुश्किलें आई लेकिन सुरेश होने इरादों से टस से मस ना हुआ.

 

अब सुरेश को मेहनत करने की कोई जरूरत नहीं थी. अब तो वो बस ऊपर फाटक से बँधी रस्सी खोलता और पानी झर झरा कर लिफ्ट से होता हुआ नीचे पहुँच जाता. देखते ही देखते सुरेश ने कुछ ही दिनों मे इतना पैसा कमा लिया की वो बहुत अमीर हो गया.

 

लेकिन उधर रमेश अब भी पहाड़ पर जाता और बाल्टी से पानी भर का लाता. एक समय रमेश बीमार हो गया अब उसके बच्चे और बीवी बाल्टी से पानी भर कर लाने के काम करते, हालत बुरी.

 

लेकिन इधर सुरेश अब अपने बीवी बच्चो के साथ ऐशो आराम की जिंदगी जी रहा था.

 

इधर रमेश को अब बहुत पछतावा हो रहा था और सोच रहा था की काश मैंने सुरेश की बात मान ली होती.

 

पानी वाली लिफ्ट moral story कहानी से सीख  

 

इस कहानी से हमें सीख मिलती है की इंसान को अपने भविष्य को देखते हुए कार्य करना चाहिए. और हार्ड वर्क से ज़ादा स्मार्ट वर्क करना चाहिए.

 

बेहतर भविष्य बनाने के लिए आपको अपने वर्तमान से कई समझौते करने होंगे यानि आपको होना कम्फरटेबल जोन छोड़ना होगा.

 

जिस तरह कहानी मे सुरेश ने कुछ सालो तक समझौता किया रूखी सूखी खा कर एक साधारण सी जिंदगी जीता रहा और अपने प्रोजेक्ट आईडिया पर ईमानदारी और सच्ची लग्न से काम करता रहा. जिसका नतीजा ये हुआ की उसकी आने वाली पीढ़ियां भी बैठ कर खाएंगी.

 

 

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