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Hindi moral story भूकंप

नमस्कार दोस्तों! स्वागत है आपका आज एक और ज्ञान से भरी hindi moral story भूकंप मे. आज की यह कहानी आपको जीवन मे चल रही परेशानियों भरे भूकंप से छुटकारा दिलाने का ज्ञान देगी. इस कहानी से आपको सीखने को मिलेगा की की आप मन को विपरीत परिस्थितियों मे स्थिर रख कर मजबूत बन सकते हो.

Hindi moral story भूकंप 

एक समय की बात है एक जैन फकीर को उनके कुछ मित्रो ने  खाने पर बुलाया

यह घटना है जापान की.

 यह 7 मंजिला इमारत थी जहां वह लोग ठहरे हुए थे

 सातवीं मंजिल पर ही उस घर के मालिक यानी ग्रहपती ने ,  रहने खाने पीने की सारी व्यवस्था कर रखी थी

उस गृहपति ने दोस्तों और रिश्तेदारों को भी बुलाया था.

 सभी सातवीं मंजिल पर बैठकर उस जैन फकीर की बातें सुन रहे थे तभी अचानक भूकंप आ गया , भूकंप आते ही भगदड़ मच गई.

जैसे ही भूकंप के झटके महसूस हुए सभी उठकर बाहर की तरफ भागे. देखते ही देखते दरवाजे और सीढ़ियों पर बहुत भीड़ हो गई,  करीब 100 के आसपास लोग थे.

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सभी भाग रहे थे, वह गृहपति  भी भाग रहा था, ज़ब ग्रह पति लोगो कि भीड़ में फस गया तभी अचान,  उसे याद आया कि कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वे जैन फकीर तो कहीं दिख ही नहीं रहे हैं,  कहीं वह कमरे में तो नहीं फंसे रह गए,

 फिर ज़ब वह उन्हें देखने वापस कमरे में गया, तो उन्हें देख कर वह दंग रह गया…..

वह जैन फकीर एकदम शांति से बैठे हुए थे. 

ग्रह पति  ने मन ही मन हैरानी भरे भाव से बोला बोला-    सभी लोग अपनी जान बचाकर भाग रहे है लेकिन यह फकीर तो जरा सा भी विचलित नहीं हुए और ध्यान में मगन है.

ग्रहपति एक टक्क उस फकीर की तरफ ही निहारे जा रहा था….उस फकीर के चेहरे पर इतनी शांति थी की ये देखकर वह गृहपति भी आकर  फकीर के पास बैठ गया.

 कुछ देर बाद जैन फकीर ने अपनी आंखें खोली और भूकंप की वजह से जिस जगह बात रूक गई थी.उस जगह से उन्हनो अपनी बात ज़ब दोबारा शुरू की,,,,

तो गृहपति ने कहा महाराज अब मुझे कुछ भी याद नहीं कि हम क्या कर रहे थे हमारी कहां पर बात हुई थी….लोग अपनी  जान बचा कर भाग रहे थे,

इतना बड़ा भूकंप  आया  था की अब तो इसके बाद मुझे यह भी याद नहीं है कि हम किस बारे में बात कर रहे थे,      इसलिए आप कृपया करके वह बातें दोबारा शुरू ना करें और मै अब वह बातें पूछना भी नहीं चाहता….. 

इतना कहने के बाद ग्रहपति ने बड़ी ही जिज्ञासा व हैरानी भरे भाव से कहा -अब तो मैं आपसे कुछ और ही पूछना चाहता हूं.     महाराज! एक बात बताइए,  कि भूकंप आने पर हम सब बाहर की तरह भाग गए पर आप क्यों नहीं भागे, आप अंदर ही क्यों बैठे रहे.?वो भी इतनी शांति पूर्ण अवस्था मे.

जैन फकीर ने कहा-  भागा तो मैं भी था,  लेकिन तुम सब बाहर की तरफ भागे और मैं अपने भीतर की तरफ मन मे भागा, जिसे जहां सुरक्षित महसूस हुआ वह वहां भाग गया.

 लेकिन मैं कहता हूं तुम्हारा बाहर की तरफ भागना व्यर्थ था क्योंकि  भूकंप छठी मंजिल पर भी है और पहली मंजिल पर भी,

जो सड़कों पर है वह भी भूकंप के डर से भाग रहे हैं.

 जिसे जहां सुरक्षित लग रहा है वह वही भागा जा रहा है.

सारे लोग बाहर की तरह भाग रहे थे क्योंकि यह सब एक ही तरह भागना जानते हैं,  बाहर की तरफ भागना ही इनके लिए एक मात्रा भागना है, 

लेकिन मैं अपने मन में ही यानी भीतर की तरफ भागा,   क्योंकि मुझे अपने मन में ही भांगना सुरक्षित लगा.

मैं अपने मन के भीतर एक ऐसी जगह को जानता हूं जहां कोई भी भूकंप नहीं पहुंच सकता. 

 भूकंप तो छोड़ो, मन के उस स्तर पर कोई डर भी नहीं पहुंच सकता क्योंकि उस अवस्था में पहुंचने के बाद डर का, वजूद ही खत्म हो जाता है.

 

इसलिए मुझे जैसे ही असुरक्षित लगा,  मैं तुरंत ही अपने मन के भीतर चला गया, लेकिन मैं तुमसे यह भी नहीं कहूंगा कि मैं डरा नहीं- 

?बल्कि मैं भी बहुत डर गया, कि कहीं अपने भीतर पहुंचने से पहले ही मैं मर ना जाऊं

? कहीं मेरे भीतर पहुंचने से पहले ही यह बिल्डिंग गिर ना जाए, 

? मैं चिंतित था, कि कहीं ध्यान में पहुंचने से पहले ही यह इमारत मुझ पर गिर ना जाए.

 लेकिन जब मैं एक बार उस अवस्था में पहुंच गया,    फिर मुझे कोई चिंता और डर नहीं सता पा रहा था. मन का कौतूहल शांत होकर एक परम् शांति को महसूस कर पा रहा था…

उस भूकंप की वजह से तो केवल मेरा शरीर ही मरता क्योंकि मेरा मन तो ध्यान में था,

सच्च कहूं तो मैंने ध्यान में ही अपनी जिंदगी को जिया है और मैं ध्यान में ही मरना चाहता हूं. इसलिए जैसे ही मैं एक बार उस अवस्था में पहुंच गया मैं निश्चिंत हो गया. 

 

क्योंकि मैंने अपने लक्ष्य को पा लिया था की मरने को क्या मरना.

1 दिन तो सबको मरना है,  लेकिन कुछ नासमझ लोगों के लिए मृत्यु एक डर है,

 

वह इसे गलत समझते हैं और इससे पीछा छुड़ाना चाहते हैं,

जबकि सच्चाई यह है, कि ज़ब आप जन्म से पहले  अपनी मां के कोख मे पलना शुरू हुए थे तो उसी क्षण से ही आपने मरना भी शुरू कर दिया था यानि जन्म से साथ साथ मृत्यु का नाता भी आपसे उसी वक़्त जुड़ गया था.

और जैसे जैसे आपके जीवन का एक एक दिन बीतता जा रहा था उसी के साथ साथ आप मृत्यु के और ज़ादा नज़दीक पहुँचते जा रहे थे.

 ध्यान से देखा जाए तो हर दिन जिस प्रकार सूर्य उदय होकर अस्त हो जाता है उसी प्रकार मानव जीवन भी धीरे धीरे एक दिन इस सूर्य की भांति अस्त हो जाएगा.

इसके बाद उस जैन फकीर ने कहा – मैं तुम्हें कोई सिद्धांत नहीं सिखा रहा हूं बल्कि शराब पिला रहा हूं , पीओ!    खूब पियो,   नाचो गाओ और मुस्कुराओ, जीवन में जितने भी डर मिले अंदर की तरफ मन मे गिर जाओ.

जीवन मे किसी भूकंप का इंतजार मत करना क्योंकि भूकंप के समय वही अंदर जाते हैं जिनका रोज आना जाना मन में रहता है 

मैं अपने मन में अंदर जा पाया, क्योंकि मैं रोज अपने मन में अंदर जाता हूं और अंदर का यह रास्ता मेरे लिए परिचित था 

यह मत सोच कि जिस दिन मृत्यु  आएगी उस दिन ध्यान कर लेंगे, नहीं हो पाएगा….

अगर जीवन भर धन की चिंता की है तो मरते वक्त भी मन के अंदर उसी धन की ही  चिंता चलती रहेगी…

क्योंकि अपने पूरे जीवन में हम जो कुछ भी करते हैं मरते वक्त वही सारे विचार  मन मे होते हैं,

मरते वक्त एक बार हमारी पूरी जिंदगी हमारे आंखों के सामने गुजर जाती है, संक्षिप्त में कहूं,    तो जिंदगी भर हम जो भी करते हैं अंत समय में वही महसूस करते हैं,

 

अगर हमने पूरी जिंदगी भर किसी को दुख पहुंचाया है किसी का दिल से भला नहीं किया, तो अंत समय में हम दुख ही भोग रहे होंगे और दुखी मन से ही मर रहे होंगे.

 

और अगर हमने जिंदगी भर अच्छे काम किए हैं लोगो की निःस्वार्थ मदद की है तो अंतिम समय पर हमारे पास अच्छे विचार  होंगे और हम खुशी-खुशी अपना जीवन अलविदा कहेंगे.

 

आखिर मे फकीर ने उस गृहपति से कहा –

अगर तुम ध्यान में मरना चाहते हो तो ध्यान में जाना सीखो ताकि मरते वक्त तुम्हें अपने भीतर जाने में तकलीफ ना हो और तुम मौत से ना डरो.

 

तो दोस्तों ये hindi moral story भूकंप आपको कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताना. हम अपने ब्लॉग पर ऐसी ही तमाम ज्ञान से भरी naitik shikshaprad kahaniyan late rhte hai

 

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