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Hindi moral story लालच के रूप

    नमस्कार दोस्तों! स्वागत है आपका आज की एक और गतान से भरी moral story लालच के रूप मे. Best hindi moral story naitik kahani shikshaprad kahani |

ज्ञान से भरु कहानियों का रोचक सफर

Hindi moral story लालच के रूप

एक  गाँव में एक महात्मा जी का आश्रम था। जहाँ गाँव के लोग रोज़ सतसंग सुनने आया करते थे। प्राचीन समय में लोगों का जीवन बहुत ही सादा और शांति से भरपूर था। घर के पुरुष अपना दिन भर मेहनत कर धन अर्जित किया करते थे और थके हुए जब सांझ में घर लौटते तो भोजन आदि कर अपने परिवार समेत महात्मा के आश्रम में प्रवचन सुनकर मन को आनंदित करते थे।

 

उसी आश्रम में एक सेठ जी भी आते थे। वो पेशे से जोहरी थे। उनका जीवन बहुत धन विलास से पूर्ण था। वे रोज़ महात्माजी का सत्संग अपनी पत्नी के साथ सुनने आया करते थे।

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एक रोज़ सांय काल का समय था, महात्मा जी का सत्संग चल रहा था सत्संग का मूल विषय था”लोभ। “लोभ एक ऐसा विकार है जो इंसान के विवेक को ख़त्म कर देता है और उसे नीच से नीच कर्म भी करने में इंसान सोचता नहीं है।”, महात्मा जी ने कहा। हमें कभी किसी वस्तु और सांसारिक सुख के पीछे पागल नहीं होना चाहिए। प्रभु जिस बिधि रखे उसमें ही संतोष करना चाहिए 

 

   काम क्रोध अरु लोभ की, जब लग घट में                 खान।  

   तुलसी पंडित मूर्खा, दोनों एक समान।

 

महात्मा जी ने कहा कि लालच बुरी बला है,लालच के बस आकर इंसान अपने इंसान होने का आभास भी विसार देता है और विचारहीन हो कर कुछ भी कर जाता है।

 

सेठ को ये बात कुछ जची नहीं उसने महात्मा जी से कह दिया,”महाराज!आप जो कहते है,,” लालच बुरी बला है “सो मुझे बताएं ये लोभ है क्या, कोई वस्तु?इसका कोई सीधा रूप दिखाएं।महात्मा नेकहा पुत्र फिरकभी आपको इसबला का सीधा दर्शन कराएँगे।

कई दिन बीत गये, महात्मा को सेठ का प्रश्न भूला नहीं था। उनके आश्रम में एक कुत्ता रहता था।गाँव के कई समर्थ और अमीर सेठ साहूकार सत्संग में आया करते थे। एक दिन महात्मा ने अपने एक श्रद्धालु जो साहूकार था उनसे कहा,”मुझे कुछ समय के लिए एक कीमती लाल रूबी चाहिए।उस भक्त ने बिना कुछ पूछे ही दुसरे दिन पर महात्मा को कीमती लाल रूबी लाकर दे दिया जो लाखों की कीमत का था।महात्मा ने वो लाल रूबी उस कुत्ते के गले में एक धागे में डाल कर पट्टे के समान बाँध दिया 

रोज की तरह जब सारे गाँव केलोग सत्संग सुनने आश्रम में  पधारे,सेठ भी सेठानी के साथ आया। महात्मा जी ने सत्संग आरम्भ किया। कुत्ता भी सत्संग में सब लोगों के पीछे एक कोने में बैठा था।

 

सत्संग के बीच में ही जोहरी सेठ की पत्नी की नज़र उस कुत्ते के गले में बंधे लाल रूबी पर पड़ी वो आश्चर्य चकित हो गईं। सेठानी ने अपने पति को इशारा किया कि वो कुत्ते के गले में पड़े लाल रूबी को देखा।उन दोनों की आँखों में लाल रूबी को देख कर चमक आगई।वो लोभ के जाल में फँस चुके थे।

सत्संग समाप्त हुआ। सेठानी ने एक कोने में सेठ को लेजाकर कहा, ” कितना सुन्दर लाल है काश ये आप मुझे लाकर देते ये मेरे गले में कितना सुशोभित होगा।”

सेठ बेचैन हो गया, उसे समझ नहीं आरहा था कि कुत्ते के गले से लाल रूबी कैसे उतारे।

उसने सीधे जाकर महात्मा से कहा महाराज ये कुत्ते के गले में क्या  बांध रखा है? महात्मा जी उस समय एकांत में बैठे थे सारे श्रद्धालु अपने अपने घर चले गए थे महात्माजी जो उन दोनों के मन की हालत समझ गए था।

 

महात्मा बोले, “पुत्र!आश्रम के सेवदारियों को साफसाफाई करते हुए यहीं कहीं मिल गया होगा मुझसे पूछा तो मैंने उनको आदेश दिया कि मामूली सा पत्थर ही होगा कुत्ते के गले में बाँध दो “

 

जोहरी बोला, ” महाराज मैं इससे भी सुन्दर पत्थर आपको ला दूंगा आप उसे इस कुत्ते के गले में बाँध देना। ये आप मुझे देदो।

इसे कौन सा नुमाइश में जाना है। “

 

महात्मा ने बोला, “यही बंधे रहने दो इसे, घर पर ही तो बैठना है तुम क्यों तकलीफ करते हो, साधारण सा पत्थर ही बंधा रहने दो।”

 

जोहरी ने हर तरह की बाते बनाने का प्रयास किया कि कुछ करके रूबी उसे मिल जाये, उसे क्या पता था कि ये सब महात्मा जी की योजना है उन्हें समझने के लिए।

 

अंत में सेठ ने महात्मा से आक्रोश में कहा, “महाराज अगर किसी उपाय से आप मुझे ये दे सकते हो तो वो अवस्था मुझेबताएं।

 

महात्मा जी बोले,”ये  मैं तुम्हे एक ही अवस्था में दे सकता हूँ।”महात्मा का इतना कहना था कि सेठ सेठानी की चेहरे पर ख़ुशी मंडराने लगी वो दोनों तो कुछ भी करने को तैयार थे। उन्होंने कहा जल्दी बताएं।

 

महात्मा बोला,”तुम को इस कुत्ते के साथ उसके बर्तन में भोजन ग्रहण करना होगा।”

 “सेठानी ने कहा बस इतनी सी बात उसने सेठ को कहा,” थोड़ी देर की तो बात है जैसे तैसे हम ये कार्य करलेंगे, बदले में हमारा कितना लाभ होगा।”उन्दोनो ने महात्मा की शर्त स्वीकार कर ली।

 

थोड़ी देर में एक श्रद्धांलु ठंडी खीर बना कर एक थाली में परोस कर ले आया।जैसे ही थाली कुत्ते के सामने रखी उसने मुँह डाल कर उसे झूठा कर दिया।

 

अब जोहरीसेठ सेठानी भी शर्त के मुताबिक थाली में से खीर खाने को तत्पर हुए।जैसे ही वो दोनों खीर मुहं में डालने वाले थे,महात्मा जी ने झट से उन्दोनो के हाँथ पकड़ लिए और कहा,”लो पुत्र आप देखलो!यह है लालच का सीधा और प्रत्यक्ष प्रमाण,तुम स्वयं ही लोभ का रूप बन गए हो इस घड़ी।”लाल रूबी की लालसा में कुत्ते की झूठी खीर खाने के लिए भी तैयार हो गए।”क्या यह लाल रूबी! जिसके लिए तुम दोनों इतना नीच कर्म करके अपने मनुष्य पद से गिरने को तत्पर हो गए मरण उपरान्त साथ जायेगा? जोहरी के मस्तिष्क में एका एक अपना पूछा गया सवाल आगया जो उसने अहंकार वश महात्मा जीसे पूछ लिया था। वो बहुत लज्जित हुआ। वो और उसकी पत्नी शर्म के मारे नज़रेँ नहीं उठा पा रहे थे उनकी आँखों से लज़्ज़ा और अपराध भावना के आंसू ज़ारोज़ार गिर ने लगे।उन्होंने महात्मा से माफ़ी मांगी और उनके चरणों में गिर गए।

महात्मा जी ने उनके सिर पर प्यार और करुणा से हाँथ रखा निर्मल और स्वच्छ हृदय के कारण उनकी स्थिति देख कर महात्माजी की आँखों में भी आंसू आगये।उन्होंने उन्दोनो को प्यार से समझाया और और सद मार्ग पर चलने की शिक्षा दी.

       

 Hindi moral story लालच के रूप | कहानी से सीख 

        ”   लालच बुरी बला है “

जब इसका आक्रमण मानुष पर होता है तब उसके विवेक का नाश कर उसे बुद्धिहीन बना देता है इस कारण लालच कभी नहीं करनी चाहिए।

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