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लड़का बना दानवीर moral stories in hindi

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लड़का बना दानवीर  moral stories in hindi  – दोस्तों स्वागत है आपका ज्ञान से भरी  कहानियों की इस रोचक दुनिया मे। दोस्तों जीवन मे कहानियों का विशेस महत्तव होता है |

 

क्योकि इन कहानियो के माध्यम से हमे बहुत कुछ सीखने को मिलता है | इन कहानियों के माध्यम से आपको ज़रूरी ज्ञान हासिल होंगे जो आपको आपकी लाइफ मे बहुत काम आएंगे |

यहाँ पर बताई गई हर कहानी से आपको एक नई सीख मिलेगी जो आपके जीवन मे बहुत काम आएगी | हर कहानी मे कुछ न कुछ संदेश और सीख (moral )छुपी हुई है | तो ऐसी कहानियो को ज़रूर पढ़े और अपने दोस्तो और परिवारों मे भी ज़रूर शेयर करे |

 

तो चलिये शुरू करते है हमारी आज की कहानी 

लड़का बना दानवीर | moral stories in hindi

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दोस्तों यह कहानी है एक सच्ची घटना पर आधारित कहानी है | जिसे हम आपके लिए खोज कर लाए है ताकि इस कहानी से आप कुछ ज़रूरी बातें सीख सके जो आपके जीवन मे  बहुत कम आएंगी| तो चलिये शुरू करते है |

यह कहानी है  सन 1970 के दशक की | राजस्था मे वीरभान नाम का एक राजपूत रहता था | जिसकी एक बहुत बड़ी  हवेली थी  वह करोड़ो की जायदात का एक अकेला ही वारिस था |

वीरभान की एक बीवी एक पुत्र था जिसका नाम था सूरजभान | इसके इलवा परिवार मे और कोई नहीं था |

 

हवेली मे पचासों नौकर चकार थे | किसी चीज़ की कमी नहीं थी |  गहरी बीमारी के चलते सूरज भान की माँ का देहांत हो जाता है तब सूरज भान यही कुछ 12 साल की उम्र का होता है|  पूरी हवेली मे शांति और मातम छा जाता है |

अब सूरज भान का मन राजस्थान मे नहीं लग रहा होता | यह देख सूरज भान के पिता सूरज को मुंबई अपने दोस्त के यहाँ ले जाने का निश्चय करते है | जाने से पहले हवेली की ज़िम्मेदारी नौकरो के हवाले कर जाते है |

मुंबई पहुँच  सूरज भान बहुत  खुश होता है |  वीर भान सूरज का दाखिला वही एक स्कूल मे करवा देते है |वहाँ सूरज के बहुत दोस्त बन जाते है |  सूरज अपने स्कूल की पढ़ाई खत्म कर लेता है |

दिन बीतते जाते है सूरज जवान हो जाता है | वीर भान अब सूरज का दाखिला एक कॉलेज मे करवा देते है | जहां उसके और नए दोस्त बन जाते है |ड़का बना दानवीर | moral stories in hindi

इधर वीर भान अब बूढ़े होने की वजह से बीमार पड़ने लगते है | वीर भान सूरज से यह बोल कर की बेटा मुझे कुछ जरूरी  काम आगया है मैं राजस्थान  जा रहा हूँ जल्दी ही आऊँगा | इतना बोल वीर भान राजस्थान आ जाते है |

सूरज भान जानते थे की  अब मैं  अधिक समय तक नहीं जी पाऊँगा  | दिन पर दिन वीर भान की हालत खराब होते जा रही थी | वीर भान ने तिजोरी की चाभी निकाली और तिजोरी से वसीयत के कागज़ निकाले सारी वसीयत   अपने बेटे के नाम कर दी | 

वसीयत के इलवा वीर भान के पास गुप्त खजाना  यानि करोड़ो रुपयों की संपत्ति धन दौलत थी जो की किसी एक खूफिया तहखाने मे बंद थी जिसका पता सिर्फ वीर भान ही जानते थे |  टेखाने का रास्ता हवेली के अंदर से ही होकर जाता था| ड़का बना दानवीर | moral stories in hindi

सूरज भान तहखाने तक पहुँचने का सारा रास्ते का एक नक्शा बनाता है  और उस नक्शे को वह ऊपर अपने बेटे के कमरे मे रखी एक  पेटी के अंदर रख  देता है और पेटी मे ताला लगा देता है |

ताले  की चाभी और वसीयत लेकर वीर भान मुंबई अपने दोस्त और बेटे के पास वापिस  पहुँच जाता है |

वहाँ  उस समय उसका बेटा तो नहीं होता यह मोका देखकर वीर भान अपने दोस्त वो वसीयत और चाभी दे देता है और कहता है , जब मैं मर  चुका हुंगा तो यह वसीयत और यह चाभी मेरे बेटे को दे देना |

ड़का बना दानवीर | moral stories in hindi

कुछ दिन बाद वीरभान  की मौत हो जाती है | यह देख बेटा बहुत दुखी होता है |  कुछ दिन बाद उसके अंकल उसको वो वसीयत और देते हुए बोलते है की यह आपके पिता ने मुझे देने को कहा था |

सूरज उसे अपने पास रख लेता है  पर खोल कर नहीं देखता |  एक दिन सूरज थका हारा जब घर आता है तो वह उस कागज़ को देखता है वो एक वसीयत के कागज़ होते है जिसमे वह अपना नाम देखता है | यह देख कर सूरज बहुत खुश होता है | अब वो करोड़ो की संपत्ति का वारिस होता है |

इतनी संपत्ति का मालिक बंता देख सूरज उल्टे सीधे विचार आने लगते है | अब उसके मन मे आता है अब मुझे कुछ काम करने की जरूरत नहीं मेरे पास बहुत  पैसा है |ड़का बना दानवीर | moral stories in hindi

इसके बाद सूरज के  पैर तो अब जमीन पर नहीं रहते | सुरक राजस्था अपनी हवेली जाता है | वह पिता की दी हुई उस चाभी को अपने कमरे मे छुपा देता है सूरज को नहीं पता होता की यह चाभी किस लिए दी थी | 

सूरज अब खूब सारा धन ले कर मुबाई जाता और अपने दोस्तो के साथ खूब ऐयाशी करता | दारू की महफिले जमती | नाच गाना होता |

रोज़ ऐसा ही होता रहा | धीरे धीरे  सूरज ने ऐसे ही अपनी ऐयाशी मे अपना सारा धन उड़ा दिया | जैसे जैसे धन दौलत मे कमी आने लगी वैसे वैसे यार दोस्तो का जमावड़ा भी कम होने लगा |

चापलूस दोस्त गायब होने लगे | न तो अब नाच गाना होता और न ही मतलबी तथा चापलूस दोस्तो की महफिल जमती | हर कोई साथ छोड़ कर जा चुका था | जब तक पैसा  था  तब तक ही वो लोग साथ थे अब कोई नहीं था यह बात सूरजभान को बहुत देर बाद समझ आई |

फिर एक दिन ऐसा आया की सूरज भान अब अकेला ही रह गया था | उसका अब कोई दोस्त नहीं था और न ही पैसा | सूरज दुखी मन से  हवेली वापिस लौट जाता है | जहां अब कोई नौकर चाकर नहीं | हवेली पूरी सुनसान हो चुकी थी |

 

ऐसे मे अब सूरज को बहुत कुछ  सीखने को मिल रहा था उसे ज़िंदगी की असलियत और लोगो के असली चेहरे  साफ नज़र आने लगे  थे |

उसे अब पिताजी की कमाई गई सालो की दौलत को उड़ा देने का गम सता रहा था | अंदर ही अंदर अब सूरज बहुत परेशान था | उसे पछतावा था अपने किए पर |

सूरज के मन मे आया की वह यह हवेली बेच कर कोई कारोबार ही कर ले , लेकिन दूसरे ही पल फिर यह सोचने  लगता की! कारोबार सफल होगा या नही ,  साथ साथ यह भी  ख्याल मन मे आया की यह हवेली ही पिता जी की एक आखरी निशानी बची है कही इसे बेच कर मैं पूरा तरह दिशाहीन ही न हो जाऊ|ड़का बना दानवीर | moral stories in hindi

अगले ही दिन सूरज काम की तलाश मे इधर उधर जाता है | सूरज को एक होटल मे बर्तन धोने और साफ सफाई का काम मिल जाता है | अब सूरज कुछ दिन वहीं काम करता और शाम को थका हारा घर आजाता और सो जाता | सुरक को होटल मे ही  कुछ पैसे और  मुफ्त खाना खाने को मिल जाता था |

सूरज को अब मेहनत से कमाई गई दौलत की कीमत पता चल रही थी | 

 एक दिन ऐसे ही सूरज को होटल मे समय जादा ही लग जाता है | रात का अंधेरा होने लगा था | होटल से छुट्टी मिलते ही सूरज अब घर की तरफ जा रहा था की रास्ते मे सूरज की नज़र 3 गरीब  बच्चो पर पड़ी जिनके कपड़े बहुत ही गंदे और फटे हुए थे |

सूरज उनके करीब जाता है तो वो बच्चे सूरज से पैसे मांगते है | तीसरा बच्चा वहाँ कचरे के ढेर से  से निकाल कर  कुछ खा रहा था | सूरज समझ गया की यह बहुत भूके है | उन बच्चो की यह दशा देख सूरज की आंखो मे आसू  आ जाते है |

 

 सूरज मन मे सोचता है की भगवान के खेल भी निराले है लोगो को कितना लाचार बना देता है | शायद यह सब कर्मो के फल है |

सूरज तुरंत होटल वापस जाता है और वहाँ से बचा हुआ बसी खाना लेकर आता है औए उन बच्चो मे बाँट देता है | बच्चो को बड़े चव से उस भोजन को खाता देख सूरज को बहुत खुशी अनुभव होती है | अब सूरज बहुत कुछ सीख गया था ओर समझने लगा था |

सूरज भगवान का शुक्र अदा करता हुआ कहता है की आपने आछ किया जो मेरे जीवन मे इतनी मुश्किले दी यदि ऐसा न होता तो शायद ही मुझे इतना ज्ञान मिलता और लोगो के असलों चेहरो का पता चलता |

 

एक दिन ऐसे ही पुरानी  यादों को सोचते सोचते उसे अचानक  उसी चाभी के बारे याद  आजाती है जो उसे उसके अंकल ने यह बोल कर दी थी की पिता जी  ने मुझे यह देने को कहा था | 

वह भाग कर  अपने कमरे माय जाता है  और वह चाभी अपने कमरे से ले आता है | जब चाभी को ध्यान से देखता है तो उसे याद आता है की यह चाभी तो मेरे कमरे के पेटी की है|
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वह तुरंत अपने कमरे मे पहुँच जाता और पेटी खोलता है | पेटी मे एक कागज होता | सूरज कागज उठता है और खोलता है तो उस पर एक तरह का नक्शा सा बना हुआ देखता है |

 

ओहले तो सूरज कुछ समझ नहीं आता की आखिर ये है क्या | फिर कुछ देर बाद उसे समझ आता है की यह कोई नक्शा सा लगता है | वह उस  कागज़ को घुमा घुमा कर नक्शे को समझने की कोशिश करता है |

 

देखते ही देखते कुछ देर बाद माथा पच्ची करने के बाद नक्शा सूरज के समझ मे आने लगता है | वह यह समझ जाता है की  यह नक्शा तो इस हवेली का है |

सूरज उठ खड़ा होता है और धीरे धीरे कदमो से नक्शे के अनुसार चलना शुरू कर देता है | नक्शे की मदद से सूरज आखिर कर वहाँ पहुँच जाता है खजाने का तहखाना होता है | उसमे उस तहखाने को खोलने के बारे मे भी लिखा होता है |

जब  सूरज भान तहखाने का दरवाजा खोल कर अंदर जाता है तो वहाँ खूब धूल और मकड़ी के जाले लिपटे होते है | मकड़ी के जाले  बार सूरज भान के मुंह पर आकार गिर रहे थे चिपक रहे थे |

सूरज भान मकड़ी के जालो को मुंह से हटाता हुआ आगे बढ़ता है | अब सूरज भान के सामने जो दृश्य होता है उसकी आंखे फटी की फटी रेह जाती है | इतना खजाना देख उसका मुंह खुला रेह जाता है | लेकिन इस बार इतनी दौलत को लेकर सूरज भान के मन मे कोई उल्टे विचार नहीं आते |

सूरज भान अपने जीवन मे खाए धोखो और मुश्किलों की वजह से बहुत कुछ सीख चुका था | सूरज के मन मे तुरंत उन गरीब लाचार लोगो का ख्याल आता है जिंहे दो वक़्त की रोटी भी नसीब नहीं होती और न ही वो अपना इलाज कराने मे समर्थ हैं | यहीं से सुरण भान ने फैसला किया की यह सारी धन दौलत मैं ज़रूरत मंद लोगो की भलाई मे लगाऊँगा |

 

इस बार सूरज भान फिर से दौलत मंद बन चुका था लेकिन एक अच्छे बदलाव के साथ | क्योकि जिंदगी की आपा धापी ने उसे बहुत कुछ सीखा दिया था | सूरज भान पूरी हवेलों मे एक अस्पताल खोल दिया | नमी डॉक्टर उस अस्पताल मरीजो का मुफ्त इलाज किया करते | इसके इलवा दूर से आए रोगी और उसके स्सथ आए उसके परिवार के लोगो के रहने तथा खाने का भी उचित प्रबंध कवाया जाता |

 

दावा सर्जरी और कहना पीना सब मुफ़्त्त था | मरीजो  को ठीक होता देख वह मरीजो की संकज्ञा बढ़ने  लगी दूर से मरीज अपना  मुफ्त इलाज करवाने वहाँ पहुँचने लगे | इस तरह से वहाँ से जो भी मरीज ठीक हो कर जाता तो वह सूरज भान को अपना आशीर्वाद और खूब सारी दुआएं दे कर  जाता |

सूरज भान की इस तरह  गरीब तथा दीन दुखियों की मुफ्त  सेवा देख , बड़े बड़े कारोबारियों और सरकार की तरफ से भी खूब चंदा  आने लगा |

चंदे के इस पैसे से सूरज भान ने अस्पताल मे और उपकरण मँगवाए | जिससे मरीजो को बेहतर इलाज की सुविधा मिल सके |

इस तरह सूरज भान ने अपना  सारा धन लोगो की भलाई मे लगा दिया |

सीख – लड़का बना दानवीर moral stories in hindi

दोस्तों याद रहे धन दौलत की अहमियत वही जानता है जिसके पास उसका आभाव रहे |

दोस्तों हमारी  हमेशा से यही कोशिश रहती है की हम  इस blog पर आपके लिए ज्ञान और शिक्षा  से भरी ऐसी ही तमाम कहानियाँ लाते रहे जिससे आपका ज्ञान बढ़ सके , बौद्धिक विकास हो सके ,जीवन मे सही फैसले ले सके , आप जीवन मे आगे बढ़ सके , मन मे सकरत्म्क विचारो का जन्म हो और  आपके सुंदर चरित्र का निर्माण हो ताकि आप आगे चल केआर सुंदर परिवार और समाज का निर्माण कर सके |

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